Sunday, November 17, 2024
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जब CM अखिलेश के गाँव में रात भर पिटी पुलिस और सैफई महोत्सव पर उड़ाए गए ₹300 करोड़, कुछ ऐसा था सपा का शासन काल

मुजफ्फरनगर के अस्थायी शिविरों में ठंड से ठिठुरते दंगा पीड़ित का सवाल जब यूपी के तत्कालीन मुख्य सचिव के सामने उठा तो उन्होंने भी कहा था, “ठंड से कोई नहीं मरता। ठंड से निमोनिया हो सकता है और कोई निमोनिया से मर सकता है, लेकिन ठंड से कोई नहीं मरता। अगर लोग ठंड से मरते तो साइबेरिया में कोई जिंदा नहीं रहता।”

उत्तर प्रदेश में 10 फरवरी से 7 मार्च के बीच 7 चरणों में विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (UP Chief Minister Yogi Adityanath) एक बार फिर सूबे में कमल खिलाकर इतिहास रचेंगे या सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की साइकल रेस जीतेगी? इस सवाल का सटीक जवाब तो 10 मार्च को मतगणना के बाद मिलेगा, लेकिन हालिया सर्वेे मुख्यमंत्री योगी को ही वापसी बता रहे हैं।

सी वोटर और एबीपी न्यूज के ताजा ओपिनियन पोल के मुताबिक यूपी में एक बार फिर योगी सरकार बन सकती है। बीजेपी का कमल 223 से 235 सीटों पर खिल सकता है। अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी 2017 के मुकाबले बढ़त हासिल करती दिख रही है, लेकिन सत्ता से दूर दिख रही है। सर्वे के मुताबिक, सपा इस बार 145 से 157 सीटें जीत सकती है।

सत्ता पाने की होड़ में जुटी समाजवादी पार्टी के शासनकाल में अपराधों की स्थिति और कानून-व्यवस्था पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। इस बीच लगभग 7 साल पुरानी एक खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। यह खबर बताती है कि आज से तकरीबन 7 साल पहले 2014 में यूपी के सैफई (तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के गाँव) में पुलिस के साथ क्या बर्ताव किया गया था और सरकारी फंड का इस्तेमाल किस तरह से किया जाता था।

सीएम योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी ने इस वाकया को ताजा करने के लिए सोशल मीडिया पर दैनिक जागरण की खबर का स्क्रीनशॉट शेयर किया है। उन्होंने याद दिलाया कि नई नहीं, वही सपा है। इस खबर के मुताबिक, सैफई में होने वाले महोत्सव में हंगामा होने पर परिस्थिति थोड़ी विपरीत दिखी। यहाँ ग्रामीणों ने ही पुलिसवालों को पीट दिया था। दरअसल, हंगामा भड़कने पर पुलिसकर्मियों ने परिस्थिति को नियंत्रित करने के लिए थोड़ी सख्ती दिखाई। उन्होंने हंगामा कर रहे लोगों को शांत करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें कहाँ पता था कि अखिलेश की सरकार में जनता पुलिस पर हावी हो जाएगी। उन लोगों ने ही उलटा पुलिस को पीटना शुरू कर दिया। पुलिस ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इसकी शिकायत की, लेकिन मुख्यमंत्री का गाँव होने की वजह से उनके हाथ भी बँधे थे।

जानकारी के मुताबिक, तत्कालीन सरकार ने इस महोत्सव पर 300 करोड़ रुपए फूँक दिए। खूब नाच-गाने हुए। सभी सरकारी अधिकारियों ने इसका लुत्फ उठाया। बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान और अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को भी प्रोग्राम में शिरकत करने के लिए बुलाया गया था। 

मालूम हो कि सितंबर 2013 में मुजफ्फरनगर में दंगे हुए थे और उसी साल दिसंबर में सैफई में खूब नाच-गाने हुए थे। मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ितों को लेकर सरकार पर सवाल उठे तो भीषण ठंड के बाद भी शिविर उजाड़ दिए गए और दूसरी ओर सरकार के ‘घर’ सैफई में महोत्सव के बहाने हुए जश्न के नाम पर सैकड़ों करोड़ बहा दिए गए। पीड़ितों के आँसू पोंछने के लिए अगर सरकार महोत्सव का खर्च बचा लेती तो उसके आधे में ही हर एक दंगा पीड़ित को छत नसीब हो जाती। वहीं, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह का कहना था कि अखिलेश ने जितना खर्च सैफई महोत्सव और विदेश यात्रा में किया, उतने में यूपी की योगी सरकार ने दो मेडिकल कॉलेज बना दिए।

दंगा पीड़ितों का नाम लेकर विपक्ष ने मुलायम और अखिलेश को टारगेट किया और मीडिया ने भी सवाल पूछे। सवालों के जवाब में मुलायम सिंह ने जो कहा था वो जख्मों पर सिर्फ नमक नहीं, मिर्च मिलाकर छिड़कने जैसा ही था। तब मुलायम सिंह ने कहा था, “शिविरों में एक भी दंगा पीड़ित नहीं है, सब लोग लौट चुके हैं। अब जो बचे हैं वे कॉन्ग्रेस और बीजेपी के लोग हैं, जो सरकार की छवि खराब करना चाहते हैं।”

दरअसल दंगों के बाद पीड़ितों के लिए कुछ ही दूरी पर कैंप लगाए गए थे और भारी ठंड के चलते वहाँ रह रहे लोगों का बुरा हाल था। लोगों की हालत को लेकर वही सवाल जब यूपी के तत्कालीन मुख्य सचिव के सामने उठा तो उन्होंने भी समाजवादी राग ही सुना दिए, बस शब्द अलग थे। तत्कालीन मुख्य सचिव ने कहा था, “ठंड से कोई नहीं मरता। ठंड से निमोनिया हो सकता है और कोई निमोनिया से मर सकता है, लेकिन ठंड से कोई नहीं मरता। अगर लोग ठंड से मरते तो साइबेरिया में कोई जिंदा नहीं रहता।”

अखिलेश के सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद मुजफ्फरनगर दंगे ने एक बदनुमा दाग लगा दिया था। प्रतापगढ़ में सीओ जियाउल हक की हत्या की घटना हो या फिर मथुरा का जवाहर बाग कांड… इनसे अखिलेश की सरकार कठघरे में ही रही।

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