पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। हिंसा के लिए कुख्यात वामपंथी दलों ने इस ‘संस्कृति’ को पाला-पोसा और अब राज्य की सत्ताधारी तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) इसे बढ़ावा दे रही है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले TMC के गुंडों पर लगातार बीजेपी कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के आरोप लग रहे हैं। गुरुवार (10 दिसंबर 2020) को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमला हुआ। इसके अगले दिन ABVP के जुलूस को निशाना बनाया गया।
हाल ही में नड्डा ने बताया था कि तृणमूल कॉन्ग्रेस की राजनीतिक हिंसा के कारण भाजपा के 130 कार्यकर्ता अपनी जान गँवा चुके हैं, जिनमें से 100 कार्यकर्ताओं का तर्पण उन्होंने स्वयं किया है।
बावजूद इन सबके, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राजनीतिक हिंसा को लेकर गंभीर नहीं दिखतीं। उलटा उन्होंने राज्य के डीजीपी और मुख्य सचिव को नहीं भेजने की बात कह केंद्र से टकराव का रास्ता अख्तियार कर लिया है। नड्डा के काफिले पर हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दोनों शीर्ष अधिकारियों को तलब किया था।
वैसे केंद्र से टकराव लेना, संघीय ढॉंचे को चुनौती देना ममता के लिए नई बात नहीं है। सत्ता में आने के बाद से ही वह लगातार ऐसा करती रही हैं। लेकिन राजनीतिक हिंसा की तो वह किसी दौर में खुद पीड़ित रह चुकी हैं। लोकसभा में एक भाषण के दौरान दिवंगत सुषमा स्वराज ने भी उनके साथ वामपंथी गुंडों के द्वारा की गई हिंसा का जिक्र किया था।
सुषमा स्वराज ने 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार की विश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान कहा था:
“मुझे वो दृश्य जस का तस याद है। मेरी आखों में वो दृश्य बसा हुआ है। मैं राज्यसभा की दीर्घा में बैठी हुई थी। इसी सदन में नरसिंह राव की सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास पर मतदान हो रहा था। एक व्हीलचेयर के ऊपर ममता बनर्जी को लाया गया। यहीं बैठी हुई थीं वो। चोटों से आए बुखार के कारण काँप रहीं थीं। बराबर में बैठी दो सांसद महिलाओं ने उन्हें लाल कंबल ओढ़ाया था। वहाँ बैठी हुई मैं कम्युनिस्टों की हिंसक प्रवृत्ति को कोस रही थी। मुझे मालूम है कि ममता बनर्जी के विरोध के स्वर मुखर होते हैं। लेकिन हम उनके विरोध के अधिकार को मान्यता देते हैं। हम उनके विरोध के अधिकार को स्वीकृति देते हैं। आप उनकी आवाज को कैद करने के लिए उन पर हमला नहीं करते, इसलिए पूछना चाहती हूँ आज कि इस सदन में बैठ कर सीपीएम के साथ बैठकर मतदान करेंगी और पश्चिम बंगाल में उनकी विरोध की राजनीति करेंगी। यह कैसी साँझ है, यह कैसा गठबंधन है।”
राजनीतिक हिंसा की शिकार हो चुकी ममता आज उसी सीपीएम के स्थान पर जब खुद बंगाल पर विराजमान हैं तो उनसे इस घटना पर दो शब्द नहीं निकल रहे। वह हमले की निंदा करने की बजाय उसी पार्टी पर इल्जाम मढ़ रही हैं जिसके नेताओं पर पत्थरबाजी हुई। उनकी असंवेदनशीलता देख भाजपा नेता समेत सब हैरान हैं कि वो एक हमले को नेताओं की नौटंकी बता रही हैं। उनके शब्द पढ़िए:
“उनके (बीजेपी) पास कोई और काम नहीं है। अकसर गृह मंत्री यहाँ होते हैं, बाकी समय उनके चड्डा, नड्डा, फड्डा, भड्डा यहाँ होते हैं। जब उनके पास कोई दर्शक नहीं होता है, तो वे अपने कार्यकर्ताओं को नौटंकी करने के लिए कहते हैं।”
कल की घटना पर प. बंगाल मुख्यमंत्री को अपने बड़प्पन का ध्यान रखते हुए कार्यकर्ताओं की निंदा करनी चाहिए थी। उल्टा उन्होंने नड्डा जी पर आरोप लगा दिया और जिन शब्दों और दरिद्र भाषा का उपयोग किया, ये बहुत ही शर्मनाक है। एक मुख्यमंत्री से हम ऐसी अपेक्षा नहीं करते: भाजपा,कैलाश विजयवर्गीय https://t.co/Zo7hy6G9cS
— ANI_HindiNews (@AHindinews) December 11, 2020
याद दिला दें कि ये पहली दफा नहीं है जब ममता बनर्जी हिंसा का या किसी आरोपित का बचाव कर रही हैं। इससे पहले शारदा चिट फंड घोटाले में फँसे पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के लिए ममता बनर्जी ने सड़क पर उतर कर रेल रोको प्रदर्शन कर दिया था।
इसके अलावा CAA/NRC के खिलाफ़ भी ममता ने केंद्र के ख़िलाफ़ अपना जहर उगला था। हाल में जब बंगाल में तूफान आया तब भी केंद्र को नेगेटिव दिखाने के लिए उन्होंने मीडिया में झूठ कह दिया था। कोरोना महामारी के बीच भी उनका रवैया केंद्र सरकार की ओर आक्रमक था।
कुल मिलाकर हर स्थिति में ममता बनर्जी की राजनीति फिलहाल इसी जमीन पर टिकी है कि वह राज्य के हित में काम करने की बजाय केंद्र सरकार का विरोध करें और प्रदेश में बढ़ रही राजनीतिक हिंसा को नदरअंदाज करती रहें।
आज उनके इसी बर्ताव पर प्रदेश राज्यपाल ने साफ तौर पर कह दिया है कि ममता बनर्जी को संविधान का पालन करना होगा। वह अपने रास्ते से नहीं भटक सकती हैं। राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति लंबे समय से लगातार बिगड़ रही है। राज्यपाल ने कहा,
“भारत के संविधान की रक्षा करना मेरी जिम्मेदारी है। यदि मुख्यमंत्री अपने रास्ते से भटकेंगी तो मेरा रोल शुरू हो जाएगा। ”