पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा आम बात है। इसी तरह की एक घटना बैरकपुर थाना क्षेत्र के भाटपाड़ा में जून 25, 2019 को भी हुई थी, जब रिलायंस जूट मिल पर कुछ गुंडों ने बम फेंके थे। पुलिस ने उसके बाद अंधाधुंध फायरिंग शुरू की, जिसमें रामबाबू साव नामक एक व्यक्ति की सिर में गोली लगने से मौत हो गई। यानी, पुलिस ने बिना कुछ किसी को बताए गोलीबारी की और युद्ध की स्थिति बनाते हुए नियम-कायदों का पालन नहीं किया।
ऑपइंडिया के संपादक अजीत भारती ने मृतक रामबाबू साव की माँ के साथ बातचीत की, जिन्होंने बताया कि जब उन्हें अपने बेटे को गोली लगने की खबर मिली, तब दिन के साढ़े 10 बज रहे थे और वो रोटी बना रही थीं। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने अपने बेटे से पूछा था कि वो रोटी खाएगा, तो उसने आराम से बनाने को कहा था और साथ ही घूम कर जल्द आने की बात कही थी। लेकिन, लौटी तो सिर्फ उनकी लाश।
रामबाबू साव कि उम्र 18 वर्ष के करीब थी। जून महीने में ही 12 तारीख को उनका जन्मदिन था। पाँचवीं के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी और एक दुकान में बैठ कर कमाते थे। रामबाबू की चाची ने बताया कि वो अपने बच्चे को लेकर स्कूल गई थीं, तभी रामबाबू ने कहा कि वो कचौड़ी लेकर आ रहे हैं, जिसके बाद सीधा खबर आई कि दंगा हो गया है और उसे गोली लगी है। जब चाची वहाँ गई तो पुलिस ने उन्हें रोक दिया।
रामबाबू को अस्पताल में भर्ती कराया गया। ये सब कुछ दंगों के बीच ही हो रहा था। उन्होंने बताया कि उन्हें अस्पताल में रामबाबू के मृत होने की बात कही गई। मृतक की चाची का कहना है कि दंगा न तो हिन्दू-मुस्लिम का था और न ही दो पक्षों का, बम फेंकने के बाद ये शुरू हो गया। उन्होंने बताया कि रामबाबू पार्टी-पॉलिटिक्स में नहीं रहता था। उन्होंने बताया कि केस कहाँ तक पहुँचा है, उन्हें नहीं पता। कभी कोर्ट में भी उन्हें नहीं बुलाया गया।
चाची ने बताया कि नेताओं ने आकर 10 लाख रुपए देने का आश्वासन दिया था, लेकिन ममता सरकार की तरफ से कुछ नहीं आया। हाँ, भाजपा नेताओं ने उन्हें 4.5 लाख रुपए दिए हैं। जबकि TMC वाले देखने और समाचार लेने तक नहीं आए – ऐसा परिजनों का कहना है। पीड़ित परिवार दशकों से उसी इलाके में बसा हुआ है। परिजनों का सोचना है कि वो कोर्ट-कचहरी के झमेले में नहीं पड़ते हैं, नहीं तो वो दूसरे को गोली मार देंगे।