पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 171 हिंदुओं को रविवार (सितंबर 20, 2020) को इस्लाम में धर्मांतरित करवाया गया। पाकिस्तान के ही मानवाधिकार कार्यकर्ता राहत ऑस्टिन ने ये दावा किया है।
राहत ऑस्टिन ने सोमवार (सितंबर 21, 2020) को टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि हिंदू पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का धर्म परिवर्तन पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मदरसा अहसान-उल-तालीम (Ahsan-ul-Taleem), कराची के संगर में आयोजित एक सामूहिक धर्मान्तरण समारोह में किया गया था। उन्होंने दावा किया कि इस्लामिक आइडियोलॉजी काउंसिल के पूर्व सदस्य नूर अहमद तशर ने उन्हें इस्लाम कबूल करवाया।
रिपोर्ट में बताया गया कि विभिन्न प्रलोभन देकर हिंदू भील समुदाय के लोगों का धर्मांतरण कराया गया। बता दें कि इन्हें पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों में सबसे कमजोर और हाशिए पर रखा गया समुदाय माना जाता है।
इससे पहले जून में, सिंध प्रांत के बाडिन जिले में सौ से अधिक हिंदुओं को इस्लाम में धर्मांतरित किया गया था। कथित तौर पर, एक स्थानीय मंदिर में रखी हिंदू देवताओं की सभी मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया और परिसर को एक मस्जिद में बदल दिया गया। 17 मई को सिंध प्रांत में हिंदुओं ने दावा किया था कि तबलीगी जमात के लोगों ने उन्हें प्रताड़ित किया, उनके घरों में तोड़फोड़ की और इस्लाम कबूल नहीं करने पर एक हिंदू लड़के का अपहरण भी कर लिया।
तबलीगी जमात के अपहरणकर्ता उक्त लड़के को छोड़ने के लिए रुपए-पैसे की माँग नहीं कर रहे थे। उनका कहना था कि अगर अपहृत लड़के का परिवार इस्लाम अपना लेता है तो उसे छोड़ दिया जाएगा। लेकिन, परिवार इसके लिए तैयार नहीं था।
वहीं 15 अगस्त को 204 अल्पसंख्यक हिंदुओं का पाकिस्तान में धर्म परिवर्तन करवाया गया। धर्म परिवर्तन करने वाले अधिकांश हिंदू भील समाज के थे। इनमें से कुछ अभी हाल में धार्मिक वीजा से हिंदुस्तान से लौटे थे। बताया गया था कि 194 हिंदू सादिकाबाद में रहने वाले हैं जबकि 10 (एक ही परिवार के) रहिमयारखान के निवासी हैं। इस धर्मपरिवर्तन की सूचना जोधपुर में रहने वाले लोक संगठन के प्रेमचंद भील ने दी थी। वह लगातार हिंदुओं के संपर्क में हैं और उनके साथ ज्यादतियों को साझा करते रहते हैं।
पिछले दिनों राहत ऑस्टिन ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर कर बताया था कि सिमरन का कुछ समय पहले घोटकी-सिंध के मीरपुर इलाके से कट्टरपंथियों ने अपहरण किया था। फिर बलात्कार कर उसे इस्लाम कबूल करवा दिया गया। परिवार ने इंसाफ के लिए कोर्ट में अर्जी लगाई। लेकिन कोर्ट ने उसे यह कहकर खारिज कर दिया कि एक इस्लाम मानने वाले का गैर-इस्लामी परिवार से कोई संबंध नहीं होता। अगर उन्हें उनसे मिलना है तो उन्हें भी इस्लाम कबूल करना होगा।