चाहें वो चीन हो या उत्तर कोरिया, अधिकतर उदाहरणों से पता चलता है कि वामपंथ लोकतंत्र को नहीं मानता। इसके लिए आपको समझना पड़ेगा कि हॉन्गकॉन्ग में क्या हो रहा है? आपने सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्ट्स ज़रूर देखी होगी, जिसमें हॉन्गकॉन्ग में प्रदर्शनकारियों द्वारा एम्बुलेंस को रास्ता देने से लेकर शांतिपूर्वक कैंडल मार्च निकालने तक का जिक्र किया गया है। हम परत दर परत घटनाक्रम की बात करते हुए इस पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया से लेकर चीन के रुख तक की बात करेंगे लेकिन पहले जानते हैं कि आखिर मुद्दा क्या है?
हॉन्गकॉन्ग में प्रदर्शन कई हफ्तों से चल रहा है। अगर ताज़ा प्रदर्शनों की बात करें तो 12 हफ़्तों से भी ज्यादा समय से यह चालू है। यह प्रदर्शन इसीलिए शुरू हुआ क्योंकि लोगों ने चीन की साम्राज्यवादी और विस्तारवादी नीतियों को भाँपते हुए उसके इरादों को पढ़ लिया। दरअसल, चीन ने हॉन्गकॉन्ग को मेनलैंड चीन में लाने की पूरी योजना तैयार कर ली थी। हॉन्गकॉन्ग की जनता ख़ुद को चीनी कहलाना पसंद नहीं करती और ब्रिटिश राज ख़त्म होने के बाद से ही उसे आर्थिक व शासकीय स्वायत्तता हासिल है।
हॉन्गकॉन्ग और चीन के बीच का समीकरण
हॉन्गकॉन्ग विश्व के सबसे समृद्ध इलाक़ों में शामिल है। व्यापार और मैन्युफैक्चरिंग का हब है। चीन ने हॉन्गकॉन्ग के कई ऐसे लोगों को ठिकाने लगाना शुरू कर दिया है, जिसे वह ख़तरे के रूप में देखता है। ये वो लोग हैं जो चीन द्वारा हॉन्गकॉन्ग को धीमे-धीमे पूरी तरह कब्जाने की नीति का विरोध करते रहे हैं। इलेक्शन कमिटी से लेकर क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों तक, बीजिंग ने हर जगह अपने लोग बिठा रखे हैं, जिससे वहाँ की जनता ख़ुद को ठगा महसूस करती है। हॉन्गकॉन्ग का अपना अलग संविधान है, जिसे ‘बेसिक लॉ’ कहा जाता है।
लेकिन, दिक्कत की बात यह है कि बेसिक लॉ 2047 में एक्सपायर हो जाएगा। उसके बाद क्या? क्या उसके बाद कोई भी निर्णय लेने से पहले चीन हॉन्गकॉन्ग की जनता की राय लेगा? हॉन्गकॉन्ग की चीफ एग्जीक्यूटिव भी चीन के किसी विश्वस्त को ही बनाया जाता है और जजों की नियुक्ति में अहम रोल होने के कारण क्षेत्र की न्यायिक व्यवस्था भी कमोबेश चीन के ही प्रभाव में काम करती है। यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्गकॉन्ग के एक सर्वे के अनुसार, वहाँ की 71% जनता अपने-आप को चीनी कहलाने में गर्व महसूस नहीं करती। ऐसी भावना युवाओं में और भी अधिक है।
Hong Kong demonstrators have rights which are now in jeopardy. There will always be tyrants and freedom is never easily acquired – or kept. May God bless the Hong Kong protestors-
— Mia Farrow (@MiaFarrow) August 15, 2019
चीन ने एक नया प्रत्यर्पण बिल लाकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि हॉन्गकॉन्ग के नागरिकों को न्यायिक कार्रवाई के लिए उन्हें मेनलैंड चीन ले जाया जा सकेगा। इससे वहाँ की जनता सतर्क हो गई और उन्होंने बिल का कड़ा विरोध किया, जिसके बाद इसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। लेकिन, इसने हॉन्गकॉन्ग की जनता के भीतर की उस आग को बढ़ा दिया जो अरसे से भभक रहा था।
विरोध-प्रदर्शनों को लेकर चीन का रवैया
हॉन्गकॉन्ग में विरोध-प्रदर्शन करने वाले लोगों को चीन किसी आतंकवादी से कम नहीं मानता है। हॉन्गकॉन्ग के एयरपोर्ट पर जब सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई, उसके बाद चीन ने इसे आतंकवादियों वाली हरकत बताया। जैसा कि आप जानते हैं, चीन में मीडिया सरकार के नियंत्रण में होती है और चीनी मीडिया संस्थान ‘ग्लोबल टाइम्स’ के एक पत्रकार की कुछ हरकतों के कारण हॉन्गकॉन्ग के लोगों से उसे बंधक बना लिया था। लोगों का कहना था कि वह चीनी जासूस है।
एक पुलिसकर्मी ने एक प्रदर्शनकारी महिला को नीचे गिरा कर उसकी तरफ बन्दूक तान दिया, जिसके बाद लोग भड़क गए। अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों की पिटाई भी की। क्षेत्र में लाखों लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं और चीन ने हॉन्गकॉन्ग से कुछ दूर एक शहर में सुरक्षाबलों का जमावड़ा लगाया है ताकि ज़रूरत पड़ने पर कभी भी क्रैकडाउन किया जा सके। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी आशंकाएँ जता चुके हैं कि चीनी सेना हॉन्गकॉन्ग में घुस कर गड़बड़ी कर सकती है।
A total of 25km separates #Shenzhen and #HongKong where the Chinese army is setting in motion a ground military operation. #China #HongKongProtests #Democracy #SaveHongKong pic.twitter.com/EB1uNpKw1K
— Alexandre Krauss (@AlexandreKrausz) August 12, 2019
ट्रम्प ने हॉन्गकॉन्ग की जनता की सुरक्षा व क्षेत्र की शांति पर जोर दिया। चीनी मीडिया लगातार सेना द्वारा पूरे साजो-सामान के साथ शेनजिन शहर में जमावड़ा लगाने की वीडियोज और फोटोज शेयर कर रहा है। उनका इरादा प्रदर्शनकारियों को डराने का है और यह सन्देश देने का है कि ज़रूरत पड़ने पर सेना कोई भी कार्रवाई करने के लिए तैयार है। ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने तो चीनी सेना का धौंस दिखाते हुए यहाँ तक लिखा कि हॉन्गकॉन्ग के लोग ‘आत्म विनाश’ की ओर बढ़ रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय का नज़रिया
संयुक्त राष्ट्र ने हॉन्गकॉन्ग में बढ़ती हिंसक वारदातों को लेकर चिंता ज़ाहिर की। जम्मू-कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र की बैठक बुलाने वाले चीन ने हॉन्गकॉन्ग पर यूएन के बयान को ग़लत करार देने में तनिक भी देरी नहीं की और कहा कि इससे ‘अपराधियों’ को और बढ़ावा मिलेगा। चीन ने अपने प्यादे और हॉन्गकॉन्ग की चीफ एग्जीक्यूटिव कैरी लैम का भी बचाव किया। चीन हॉन्गकॉन्ग को मेनलैंड की तरह ट्रीट करना चाह रहा है और इसमें कैरी लैम उसकी भरपूर मदद कर रही हैं। ऐसे में, चीन का पूरा जोर इस बात पर है कि ‘एक देश, दो संविधान’ वाला नियम ख़त्म हो जाए।
UN rights body’s statement interferes in what is happening in #HongKong, which is China’s domestic affairs, and sends wrong signal to violent criminal offenders, said Chinese mission https://t.co/qXCUyODVbo pic.twitter.com/JqMyvtSDyy
— China Xinhua News (@XHNews) August 15, 2019
चीन ने यूनाइटेड किंगडम को पहले ही गीदड़ भभकी दे रखी है कि उनके द्वारा हस्तक्षेप न किया जाए। जब यूके के कुछ नेताओं ने हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन का समर्थन किया, चीन ने साफ़-साफ़ कहा कि यह बयान ब्रिटेन की ‘औपनिवेशिक सोच’ को दर्शाता है। बीजिंग ने ब्रिटेन को यह एहसास दिलाया कि हॉन्गकॉन्ग अब उसकी कॉलोनी नहीं है। प्रदर्शनकारियों के अनुसार, बीते सप्ताह कुल 17 लाख लोग सड़कों पर उतरे। हालाँकि, पुलिस ने इस आँकड़े को झूठा बताया। पुलिस के आसार, 1.3 लाख लोगों ने विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।
हालाँकि, हॉन्गकॉन्ग की जनता ने प्रदर्शन के बीच कई बार मानवता की मिसाल पेश की। एम्बुलेंस को रास्ता देना उनमें से एक है। प्रदर्शनकारी अधिकतर प्रतीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। चूँकि हॉन्गकॉन्ग एयरपोर्ट विश्व के सबसे व्यस्त एयरपोर्ट्स में से एक है, यहाँ प्रदर्शनकारियों के जमावड़े ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरह खींचा। सालाना 7 करोड़ से यात्रियों द्वारा इस एयरपोर्ट का प्रयोग किया जाता है। इसीलिए यहाँ हुई हिंसक झड़पों ने पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया।
अब आगे क्या होगा?
हॉन्गकॉन्ग का भविष्य क्या होगा? प्रदर्शनकारियों के प्रति चीन क्या रवैया अपनाएगा? क्या कैरी लैम इस्तीफा देंगी?इतना तो तय है कि इस महानगर को मिली स्वायत्ता अब पहले जैसी नहीं रही है और आगे भी चीन इसे कम करता जाएगा। वह अपनी विस्तारवादी नीति को नहीं छोड़ेगा। चीनी मीडिया द्वारा सेना का धौंस दिखाना भी इसी का एक हिस्सा है। कुल मिला कर देखें तो वामपंथी सत्ता के आधीन चीन में लोकतंत्र का अभाव तो है ही, हॉन्गकॉन्ग में भी मेनलैंड चीन की दमनकारी नीतियों को लागू करने की कोशिश जारी है।
आपको थियानमेन स्क्वायर नरसंहार याद होगा ही ? चीन में हॉन्गकॉन्ग ही एक ऐसी जगह है, जहाँ उस वीभत्स घटना की बरसी पर मारे गए लोगों को याद किया जाता है क्योंकि मेनलैंड चीन में किसी की हिम्मत नहीं है। चीनी सेना द्वारा 10 हज़ार लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था, जिनमें से कई छात्र थे, युवा थे। बेख़ौफ़ बेशर्मी का आलम यह है कि चीन के सत्तासीन बड़े नेता आज भी अपनी इस कार्रवाई को सही ठहराते हैं। इस घटना के बारे में चीन में न कोई बोल सकता है, न मीडिया छाप सकती है और न ही सोशल प्लेटफॉर्म्स पर इसकी चर्चा हो सकती है।
Amazing video footage of in #HongKong of a little boy addressing and shouting support towards the protestors, fighting to remain and keep their independence from Mainland #China. pic.twitter.com/8Qc4x0dpcF
— Sotiri Dimpinoudis (@sotiridi) August 18, 2019
हॉन्गकॉन्ग के बेसिक लॉ में जो बातें है, उनका आज कोई मोल नहीं रहा है, क्योंकि उसमें जनप्रतिनिधियों से लेकर न्यायिक व्यवस्था तक, सब पर चीन की छाया न पड़ने देने की कोशिश की गई थी। आज इसका उल्टा हो रहा है। कुल मिला कर देखें तो चीन को बस हॉन्गकॉन्ग की विदेश और रक्षा नीति पर ही निर्णय लेने का अधिकार सौंपा गया था। आर्थिक रूप से समृद्ध, पर्यटन के आधार पर अति व्यस्त और व्यापारिक रूप से महत्वपूर्ण हॉन्गकॉन्ग पर चीन का जितना ज्यादा कब्जा होगा, वहाँ की कम्युनिस्ट सरकार को उतना ही फायदा है।