Monday, December 23, 2024
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हिंदू बेईमान, मुसलमान महान और योद्धा: भारत को लेकर विंस्टन चर्चिल की सोच, जिसने मारे 40-45 लाख निर्दोष लोग

चर्चिल को हिंदू सबसे बेईमान लोग लगते थे जबकि मुसलमान उन्हें विश्वासपात्र और महान लगते थे। चर्चिल ने एक बार कहा था - "...मुसलमान वहाँ (भारत) के मास्टर बन जाएँगे, वे योद्धा हैं जबकि हिन्दू केवल हवाई बात करने वाले हैं।"

द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में जर्मनी से पूरे विश्व को बचाने के लिए ब्रिटिश के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल (Winston Churchill) को एक महानायक माना जाता है। इंटरनेट पर यदि विंस्टन चर्चिल का नाम टाइप करें तो कई जगह उनके लिए ‘हीरो’ या ‘लेजेंड’ जैसे शब्द पढ़ने को मिलेंगे। उनके जन्म दिवस (30 नवंबर 1874) से लेकर उनकी मृत्यु वाली तारीख (24 January 1965) पर उनके कृत्यों का महिमामंडन एक आम बात है। 

अभी बीते साल लेबर पार्टी के नेता मेकडोनेल ने विंस्टन चर्चिल की इस बात को लेकर आलोचना की थी कि उन्होंने 1910 में कामगारों पर फायरिंग करने के लिए सुरक्षा बलों को आदेश दिए थे। इसके बाद चर्चिल के पोते निकोलस ने नेता पर पलटवार करके कहा था, “लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक सस्ते नेता के इस हमले से मेरे दादा की प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आ सकती। मैं नहीं समझता कि इससे दुनिया में कोई हड़कंप मचेगा।”

अपने दादा विंस्टन चर्चिल के लिए इतने आत्मविश्वास के साथ बोले गए निकोलस के शब्द कितने सही हैं, इस पर एक सीमा के बाद सवालिया निशान लग जाता है। चर्चिल, ब्रिटेन के लिए एक कामयाब शासक भले ही हों लेकिन वो शख्सयित कैसे थे, इसका अंदाजा इस बात से लग जाता है कि उन्होंने न केवल असहयोग आंदोलन का नेतृत्व करने वाले महात्मा गाँधी को ‘अधनंगा फकीर’ कह कर उनकी मौत का इंतजार किया, बल्कि साफ शब्दों में सभी भारत के लोगों के लिए ये भी कहा–  “मैं भारतीयों से नफरत करता हूँ।” 

विंस्टन चर्चिल ने ली थी 40-45 लाख लोगों की जान

ब्रितानी प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल कई मायनों में भारत के लिए अभिशाप साबित हुए। इतिहासकार और लेखिका मधुश्री मुखर्जी ने अपनी किताब चर्चिल्स सीक्रेट वॉर में यह दावा किया है कि साल 1943 में बंगाल में पड़ा अकाल कोई आपदा नहीं थी बल्कि चर्चिल की प्रायोजित साजिश थी, जिसके कारण लगभग 30 लाख लोगों ने भूख से तड़प कर अपनी जान गँवाई थी। भारत के इतिहास में अकाल के कारण मरने वालों की संख्या में ये अब तक की शायद सबसे अधिक संख्या है।

Study Says Winston Churchill's Policies Caused the 1943 Bengal Famine
बंगाल में आई आपदा

चर्चिल ने भारत के साथ क्या नहीं किया! एक अघोषित तानाशाह के रूप में उन्होंने भारत के संसाधनों को बुरी तरह लूटा। एक ब्रिटिश सैनिक से प्रधानमंत्री बने विंस्टन चर्चिल के कार्यकाल (10 मई 1940 – 26 जुलाई 1945) के बीच जब बंगाल में अकाल पड़ा और कई हिस्सों में लोगों को खाना नसीब नहीं हुआ, तो चर्चिल ने इसी बीच सारा अनाज जरूरतमंदों को देने के बजाय ब्रिटिश सेना को भिजवा दिया।

उस समय के गवाह रहे लोग आज भी बंगाल त्रासदी को याद करते हुए बताते हैं कि तब नदियों में लाशें तैरती थीं और कुत्ते व गिद्ध लाशों को नोचकर खाते थे। इतनी लाशों को देखकर किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि वह उनका अंतिम संस्कार कर सकें। जो लोग जिंदा थे, उन्हें कस्बों और शहरों में किसी तरह बस खाने की तलाश थी। लोग चावल की जगह उसका पानी माँगते थे, क्योंकि उन्हें पता था किसी व्यक्ति के पास दूसरे को चावल देने के लिए नहीं होगा।

चर्चिल ने कैसे भारतीयों के खून से साने अपने हाथ

सन 1943 में तूफान और बाढ़ के कारण बंगाल में खाने का अकाल पड़ा था। हैरानी इस बात की थी कि इस आपदा के आने के एक साल पहले ही देश में बहुत बड़ी तादाद में फसल पैदा हुई हुई थी। लेकिन, अपने देश में अनाज का भरमार होने के बाद भी ब्रिटिश ‘तानाशाह’ चर्चिल के कारण बंगाल वासियों को अकाल झेलना पड़ा। 

चर्चिल ने उस समय भूख से तड़प रहे लोगों को अनाज देने की बजाय यूरोप में अनाज पहुँचाना जरूरी समझा और जब इस पर विचार विमर्श हुआ तो हालातों पर संवेदनशीलता दिखाने की बजाय उन्होंने कहा कि भारत के लिए कोई भी मदद अपर्याप्त होगी क्योंकि भारतीय खरगोश की तरह बच्चे पैदा करते हैं। इतना ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया से जो पानी के जहाज भारत की ओर आ रहे थे, उनके यहाँ अनलोड करने पर रोक लगा दी गई और सारा अन्न यूरोप में स्टॉक करने को कहा गया।

BBC blasted for 'outrageous' report pinning blame on Churchill for Bengal  famine deaths | World | News | Express.co.uk
तस्वीर साभार: डेली एक्सप्रेस

बंगाल अकाल के दौरान आर्चीबैल्ड वैवेल भारत के वायसराय थे। उन्होंने बंगाल अकाल को ब्रिटिश हुकूमत के अंदर होने वाली सबसे बड़ी त्रासदियों में एक बताया था। उन्होंने कहा था कि इससे जो ब्रिटिश साम्राज्य की छवि को नुकसान हुआ है, उसकी भारपाई नहीं की जा सकती।

आज हम सबको मालूम है कि ब्रिटिशों ने भारत पर एक सदी से ज्यादा राज किया। लेकिन क्या हम इस बात को जानते हैं कि भारत में इस ब्रिटिश काल के दौरान 31 अकाल पड़े थे जबकि ब्रिटिशों से पहले के भारत के 2000 सालों के इतिहास को लेकर केवल 17 अकालों का उल्लेख सामने आता है। 

एक सदी और दो हजार सालों की आपस में तुलना करके विचार करिए, किन कारकों के कारण भारत ने बंगाल त्रासदी झेली होगी? क्या वाकई इसके लिए प्राकृतिक कारण जिम्मेदार थे? या इसके पीछे चर्चिल जैसे बर्बर शासक का हाथ था, जिसका आज जन्म दिवस भी है।

चर्चिल के हाथों को 40-45 लाख लोगों के खून से सना हुआ यूँ ही नहीं कहा जाता। कॉन्ग्रेस नेता शशि थरूर अपनी किताबों में इस विषय को उठा चुके हैं। वह बताते हैं कि चर्चिल से उस समय भारत में तैनात कई अधिकारियों ने खाने की माँग की थी। किंतु उन्होंने खाना पहुँचाने की बजाय पूछा था- क्या गाँधी अब तक जिंदा है?

साभार: crimesofbritain

कहा ये भी जाता है कि अगर साल 1945 में चर्चिल को बतौर प्रधानमंत्री हार नहीं मिलती तो हो सकता है कि भारत को आजादी के लिए और इंतजार करना पड़ता। चर्चिल भारत की आजादी के बिलकुल खिलाफ थे। 

उनका मानना था कि नस्ली रूप से गोरे ही सिर्फ सर्वश्रेष्ठ हैंं। जब लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का गवर्नर जनरल बनाकर भेजा गया, उस समय विंस्टन चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री नहीं थे, लेकिन तब भी भारत को आजादी देने का उन्होंने सख्त विरोध किया था।

भारत आने से पहले माउंटबेटन जब उनसे मिलने गए, तब चर्चिल ने उन्हें कहा था, “तुम ब्रिटिश साम्राज्य को भंग करने जा रहे हो। साम्राज्य भंग करने की इस प्रक्रिया में मैं तुम्हें समर्थन नहीं दे सकता।” उनका मानना था कि ब्रिटिशों के लिए यूरोप के बाद भारत सबसे अच्छी जगह होगी। इसलिए इसकी देखभाल का काम एक ईश्वरीय मिशन के तहत अंग्रेजों को सौंपा गया है।

भारतीयों (खासकर हिंदुओं) को लेकर खास घृणा थी मन में

ब्रिटिश कंजरवेटिव पार्टी के नेता विंस्टन चर्चिल का मानना था कि लोकतंत्र भारतीयों के लिए उचित नहीं है। इतिहासकार पैट्रिक फ्रेंच अपनी मशहूर किताब, “Liberty or Death Indias Journey To Independence and Division” में लिखते हैं कि चर्चिल का हमेशा मानना था कि अंग्रेज ही सर्वोच्च हैं। वह कभी भारतीयों के औचित्य को नहीं मानते थे। 

चर्चिल को हिंदू सबसे बेईमान लोग लगते थे जबकि मुसलमान उन्हें विश्वासपात्र और महान लगते थे। उन्होंने लंदन में सोवियत राजनयिक इवान मिखाइलोविच मास्की से कहा था, 

“अंग्रेजो को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करना चाहिए, क्योंकि इसके बाद मुसलमान वहाँ के मास्टर बन जाएँगे, वे योद्धा हैं जबकि हिन्दू केवल हवाई बात करने वाले हैं। हिन्दू सिर्फ सटीक भाषणों, कुशलता से संतुलित प्रस्तावों और हवा में महल बनाने की बाते करने में एक्सपर्ट हैं!”

कुछ जगहों पर इस बात का उल्लेख है कि चर्चिल ने अपनी युवावस्था में इस्लाम धर्मांतरण पर विचार कर लिया था। वह मुसलमानों के इतने बड़े प्रशंसक थे कि उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति रूजवेल्ट से झूठ बोला था कि युद्ध के समय भारतीय सेना में अधिकांश मुस्लिम थे, जबकि हकीकत में वहाँ ज्यादातर हिंदू थे।

चर्चिल की महात्मा गाँधी के प्रति घृणा

चर्चिल को महात्मा गाँधी से खासी चिढ़ थी। वह सत्याग्रह आंदोलन और असहयोग आंदोलन के बाद से गाँधी का विश्वव्यापी प्रभाव समझ चुके थे। ऐसे में जब गाँधी गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन गए, तब भी उन्हें चर्चिल के विरोध का सामना करना पड़ा। वह गाँधी-इरविन समझौते के भी खिलाफ थे। चर्चिल ने गाँधी के लिए राजद्रोही शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्होंने कहा था: 

“वह (गाँधी) एक मध्यम दर्जे का राजद्रोही वकील है और अब एक फकीर बनने का ढोंग कर रहा है। वह अर्ध-नंगा होकर वाइस-रीगल पैलेस में घुसने का प्रयास कर रहा है जबकि वह अब भी खुल्लम-खुल्ला आज्ञा का उल्लंघन करने वाला अभियान चला रहा है। ऐसा व्यक्ति भारत में केवल गड़बड़ करके गोरों के लिए खतरा पैदा कर सकता है।”

साभार: BBC

बीबीसी के अनुसार 1942 में चर्चिल को जब गाँधी के अनशन पर जाने की बात पता चली तो उन्होंने बैठक करके तय किया कि इस बार गाँधी को मरने दिया जाएगा। उन्होंने वायसरॉय काउंसिल से कुछ भारतीय सदस्यों के इस्तीफे की अटकलों की बात पर कहा था:

“अगर कुछ काले लोग इस्तीफ़ा दे भी दें, तो इससे फ़र्क क्या पड़ता है। हम दुनिया को बता सकते हैं कि हम राज कर रहे हैं। अगर गाँधी वास्तव में मर जाते हैं तो हमें एक बुरे आदमी और साम्राज्य के दुश्मन से छुटकारा मिल जाएगा। ऐसे समय जब सारी दुनिया में हमारी तूती बोल रही हो, एक छोटे बूढ़े आदमी के सामने जो हमेशा हमारा दुश्मन रहा हो, झुकना बुद्धिमानी नहीं है।”

इसके बाद जब गाँधी का अनशन कई दिनों तक चला तो चर्चिल को इस बात से इतनी दिक्कत हुई कि उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका के प्रधानमंत्री जनरल स्मट्स को पत्र में लिखा, “मुझे नहीं लगता कि गाँधी की मरने की कोई इच्छा है। मुझे लगता है कि वो मुझसे बेहतर खाना खा रहे हैं।” इससे पहले बंगाल अकाल के दौरान वह गवर्नर को लिखे एक तार में पूछ ही चुके थे कि गाँधी अब तक मरे क्यों नहीं हैं?

इसके अतिरिक्त जब गाँधी ने भारत की आज़ादी के आश्वासन के बदले ब्रिटेन के युद्ध प्रयासों में मदद की पेशकश की तो चर्चिल ने कहा था, “वॉयसराय को इस देशद्रोही से बात नहीं करनी चाहिए और उसे दोबारा जेल में डाल देना चाहिए।”

जहरीली गैस से तबाही मचाने के समर्थन में था विंस्टन चर्चिल

द्वितीय विश्व युद्ध के समय विंस्टन चर्चिल भारत के उत्तरी हिस्से में आदिवासियों के खिलाफ रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल कराना चाहते थे। उन्होंने 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने वाले आदिवासियों के विरुद्ध रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल करने का समर्थन किया था। चर्चिल ने भारतीय दफ्तर को एक आतंरिक मेमो भेजा था। 

इस मेमो में कहा गया था, “हमें उत्तरी-पश्चिमी मोर्चे पर आदिवासियों के खिलाफ जहरीली गैस का इस्तेमाल करना चाहिए।” इससे पूर्व चर्चिल ने रूस के बोल्शेविक्स में सबसे खतरनाक रासायनिक हथियार का इस्तेमाल करने की स्वीकृति दी थी। उस वक्त वह युद्ध मामलों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे।

चर्चिल ने जनता में डर और दहशत को पैदा करने के लिए आम नागरिकों पर टेरर बॉम्बिंग का समर्थन किया था। जिसके बाद ड्रेडसन में हुई भयानक बमबारी देखने को मिली थी। चर्चिल ने खुद कहा था कि वो भारी बमबारी के ज़रिए ऐसे हमले चाहते हैं जो ख़ौफ़ पैदा करने वाले और सब कुछ तहस-नहस करने वाले हों।

साल 1944 में लिखे एक पत्र में चर्चिल ने ऐसे एक्शन्स को लेकर घोषणा की थी। उन्होंने लिखा था, “संभवत: मुझे ज़हरीली गैस के इस्तेमाल के लिए आपके समर्थन की ज़रूरत पड़े। हम इससे रुस और जर्मनी के दूसरे शहरों को भर देंगे। हमें हर हाल में ऐसा करना ही चाहिए।”

विंस्टन चर्चिल

अन्य देशों में चर्चिल का कहर

अपने आतंक को जर्मनी में व्यापक स्तर पर फैलाने के लिए चर्चिल ने मवेशियों को भी अपना निशाना बनाया। उन्होंने ऑपरेशन वेजेटेरियन की तहत जर्मनी के जानवरों को एंथरैक्स के पैकेट खिलाने की योजना बनाई। उनका मकसद था कि इस ऑपरेशन के जरिए वह जर्मनी के लोगों को दूध और बीफ से वंचित कर देंगे और जो भी जर्मनीवासी मवेशियों से मिलने वाले दूध व माँस का सेवन करेगा, वो सब संक्रमित हो जाएँगे। साल 1944 में इसके साथ 5 मिलियन एंथरैक्स केक (मवेशियों के लिए) निर्मित हुए थे

ओपन मैग्जीन में शशि थरूर के लेख के अनुसार, चर्चिल को युद्ध में सेक्स से ज्यादा आनंद आता था। उनमें कोई नैतिकता नहीं बची थी। जब उनका बेटा रैंडॉल्फ लड़ाई के मैदान में था तो उन्होंने अपनी बहू पामेला को अमेरिकी राजदूत हैरमैन के सामने ‘आनंद’ के लिए पेश कर दिया था। बाद में पामेला ने उसी राजदूत से शादी भी कर ली थी।

थरूर के मुताबिक, चर्चिल का मकसद साफ था कि युद्ध और उसकी ज़रूरत के लिए वह जापानियों को तबाह कर देंगे, जर्मन नागरिकों को मैदानों में खदेड़कर बमों से तहस-नहस कर देंगे और भारतीयों को भूखा मार देंगे।

उन्होंने श्वेतों के लिए रास्ता बनाते हुए केन्या में भी इंसानियत पर वार किया था। उन्होंने वहाँ की उपजाऊ ज़मीन पर बसे स्थानीय नागरिकों को जबरन पुनर्वासित करने में प्रत्यक्ष भूमिका निभाई थी और उसके लिए नीतियाँ बनाने का काम किया था। इस कदम के चलते 150,000 से अधिक पुरुष, महिलाएँ और बच्चे यातना शिविरों में जाने को मज़बूर हुए थे। चर्चिल के शासन में केनियाई लोगों को प्रताड़ित करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों ने बलात्कार, सिगरेट से जलाने और बिजली के झटके देने जैसे तरीकों का इस्तेमाल किया था।

तस्वीर साभार: crimesofbritain

इसके अलावा चर्चिल के कहने पर एथेंस की सड़कों पर ग्रीक प्रदर्शनकारियों को 1944 में रौंद दिया गया था, जिसके चलते 28 लोगों की मौत हो थी और 128 लोग घायल हुए थे। चर्चिल को लेकर कहा जाता है कि उसे अपने युद्ध के प्रति प्रेम का मालूम अफगानिस्तान में रहने के दौरान हुआ। जब ब्रिटेन ने ईरान के तेल उद्योग को अपने कब्जे में कर लिया तो चर्चिल ने घोषणा की कि ये तोहफा हमारे वाइल्ड सपनों से परे परियों के देश से मिला है। उसने ईरान पर लंबे समय तक ध्यान केंद्रित किया था। उसने ईराननियों से उनके प्राकृतिक संसाधनों को छीना था और गरीबी के वक्त वहाँ लूटपाट का बोल बाला करवाया था।। 

आज विंस्टन चर्चिल के कोट, उसके भाषणों का उल्लेख आपको कई जगह देखने को मिलते होंगे, बिलकुल ऐसे जैसे उसने अपनी छवि सकारात्मक रूप में स्थापित की हो। लेकिन, हकीकत में वह हिटलर से कम नहीं था। उनका समर्थन करने वालों के लिए यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसे नस्लभेदी और क्रूर शासक की कही बातें किन स्थितियों में प्रासंगिक मानी जाएँगी।

सैंकड़ों लोगों के खून का जिम्मेदार चर्चिल का दर्शन आखिर क्यों कोई अपनाएगा? वह एक ऐसा साम्राज्यवादी था, जिसे श्वेत लोगों के भविष्य की चिंता जरूर थी लेकिन इंसानियत पर प्रहार करने से पहले उसके अंदर कोई संवेदना नहीं उमड़ती थी। वह इंग्लैंड को श्वेत लोगों की सरजमीं रखना चाहता था और स्थितियों को युद्ध की नजर से तौलता था।

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