Wednesday, November 20, 2024
Homeरिपोर्टअंतरराष्ट्रीय'हर शुक्रवार पोर्क खाने को करते हैं मजबूर': उइगरों के इलाकों को 'सूअर का...

‘हर शुक्रवार पोर्क खाने को करते हैं मजबूर’: उइगरों के इलाकों को ‘सूअर का हब’ बना रहा है चीन

“हर शुक्रवार को हम पर पोर्क खाने का दबाव बनाया जाता था। उन्होंने जान-बूझकर इस दिन का चुनाव किया था, क्योंकि यह दिन मुसलमानों के लिए पवित्र माना जाता है। अगर किसी ने इसे अस्वीकार किया तो उसे यातनाओं का सामना करना पड़ता था।”

चीन में उइगर समुदाय के लोगों पर अत्याचार की एक के बाद एक हैरान करने वाले मामले सामने आ रहे हैं। सेरागुल सौतबे (Sayragul Sautbay) के अनुसार चीन उन्हें पोर्क खाने को मजबूर करता है। ज़ूमरेत दौत का अनुभव भी कुछ ऐसा ही है। दोनों उइगर समुदाय के लोगों के लिए बनाए गए प्रताड़ना शिविर में रह चुकी हैं। चीन इसे री-एजुकेशन कैंप कहता है।

सेरागुल सौतबे चीन के शिनजियांग प्रांत के एक ऐसे ही री-एजुकेशन शिविर से 2 साल पहले आज़ाद हुई थीं। लेकिन वह आज भी शिविर में हुए अत्याचार और प्रताड़ना को भूल नहीं पाई हैं। सेरागुल फ़िलहाल स्वीडन में रहती हैं और पेशे से चिकित्सक और शिक्षाविद हैं। हाल ही में उनकी एक किताब प्रकाशित हुई है, जिसमें उन्होंने शिविर के भीतर होने वाले अत्याचारों, शारीरिक शोषण और जबरन नसबंदी का विस्तार से उल्लेख किया है।    

अलजज़ीरा को दिए साक्षात्कार में उन्होंने सिलसिलेवार तरीके से बताया है कि उइगरों को चीन में कितना कुछ झेलना पड़ रहा है। इसमें सबसे ज्यादा उल्लेखनीय है कि उन्हें जबरन पोर्क खिलाया जाता था, जो कि इस्लाम में प्रतिबंधित है। सेरागुल ने बताया, “हर शुक्रवार को हम पर पोर्क खाने का दबाव बनाया जाता था। उन्होंने जान-बूझकर इस दिन का चुनाव किया था, क्योंकि यह दिन मुसलमानों के लिए पवित्र माना जाता है। अगर किसी ने इसे अस्वीकार किया तो उसे यातनाओं का सामना करना पड़ता था।” 

सेरागुल के मुताबिक़ मुस्लिम कैदियों को शर्मसार करने और उनमें आत्मग्लानि की भावना भरने के लिए इस तरह की नीतियाँ तैयार की गई थीं। उन्होंने कहा, “मुझे महसूस ही नहीं होता था कि मैं वही इंसान हूँ जो पहले थी। मेरे आस-पास सिर्फ अंधकार ही नज़र आ रहा था। मेरे लिए खुद का अस्तित्व स्वीकार करना तक मुश्किल हो चुका था। हम जिस तरह का जीवन जी रहे थे उन हालातों को शब्दों में जाहिर कर पाना असंभव है।” 

साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि चीनी हुकूमत उइगरों की मजहबी और सांस्कृतिक आस्था को चोट पहुँचाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहा है। साल 2017 से ही चीन की सरकार उन पर लगातार निगरानी रख रही है और तथाकथित ‘कट्टरपंथ’ को ख़त्म करने के नाम पर इस तरह के शिविर को सही ठहराती है। वहीं दूसरी तरफ जर्मन मानव विज्ञानी (anthropologist) और उइगर मामलों की जानकार एड्रिना ज़ेन्ज़ का कहना है कि यह नीति ‘धर्म निरपेक्षीकरण’ का हिस्सा है। 

एड्रिना के अनुसार दस्तावेज़ और सरकार स्वीकृत नए लेख उइगर समुदाय के बीच बातचीत का समर्थन करते हैं। साथ ही इस तरह के सक्रिय प्रयास जारी हैं कि उस क्षेत्र में ‘पिग फार्मिंग’ को बढ़ावा दिया जाए। नवंबर 2019 के दौरान शिनजियांग के एडमिनिस्ट्रेटर शोहरत ज़ाकिर ने कहा था कि इस इलाके को ‘पिग रेज़िंग हब’ (सूअर पालने का गढ़) में तब्दील किया जाएगा। इस साल मई के दौरान एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसमें ऐसा कहा गया था दक्षिणी काशगर (Kashgar) क्षेत्र में ऐसी परियोजना शुरू की जा रही है, जिसकी मदद से 40 हज़ार सूअरों का उत्पादन प्रतिवर्ष किया जाएगा। 

यह परियोजना काशगर के औद्योगिक क्षेत्र कोनाक्सर (Konaxahar) जिसे अब शुफु (shufu) नाम से जाना जाता है में लगभग 25 हज़ार स्क्वायर मीटर की दूरी में विकसित किया जाएगा। यह समझौता इस साल अप्रैल महीने की 23 तारीख को तय किया गया था। यानी रमजान का पहला दिन। इस क्षेत्र में पैदा किया जाने वाले पोर्क का निर्यात भी नहीं किया जाएगा, बल्कि काशगर क्षेत्र में ही इसकी खपत की जाएगी। 

इस पूरे इलाके की 90 फ़ीसदी आबादी उइगर समुदाय से आती है। एड्रिना ने कहा, “यह शिनजियांग प्रांत के लोगों की मजहबी और सांस्कृतिक आस्था को पूरी तरह ख़त्म करने का प्रयास है। इसका उद्देश्य उइगरों को धर्म निरपेक्ष बनाना और चीन के वामपंथी दल का अनुसरण करवाना है। जिससे वह पूरी तरह नास्तिक बन जाएँ।”     

लगभग सेरागुल जैसा अनुभव उइगर मुस्लिम व्यवसायी (महिला) ज़ूमरेत दौत (Zumret Dawut) का भी था। उन्हें 2018 के मार्च में उरुमकी (Urumqi) शहर से गिरफ्तार किया गया था, जहाँ वह पैदा हुई थीं। गिरफ्तारी के दो महीने बाद तक अधिकारी उनसे सिर्फ यही पूछते थे कि उनका पाकिस्तान से क्या संबंध है। इसके अलावा यह भी पूछते थे कि उनके कितने बच्चे हैं और क्या उन बच्चों ने इस्लाम की शिक्षा ली है या कुरान पढ़ी है। 

ज़ूमरेत ने यह भी बताया कि उन्हें अक्सर नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता था। अधिकारियों से मिन्नतें करनी पड़ती थीं कि उन्हें आराम करने दिया जाए और सिर्फ बाथरूम जाते वक्त उनकी हथकड़ियाँ खोली जाती थी। उन्होंने बताया कि उन्हें भी पोर्क दिया जाता था। उन्होंने कहा, “कंसंट्रेशन कैम्प में रहने के दौरान हम तय नहीं करते थे कि हमें क्या खाना है और क्या नहीं। ज़िंदा रहने के लिए हमें परोसा जाने वाला पोर्क भी खाना पड़ता था।”  

चीन की शिनजियांग सरकार ने प्रांत के लोगों के लिए एक अभियान चलाया था, जिसका नाम था ‘फ्री फ़ूड’। इस अभियान के तहत छोटी उम्र के मुस्लिम बच्चों को उनकी जानकारी के बगैर पोर्क परोसा जाता था। इसका उद्देश्य यह था कि बच्चों को छोटी उम्र से गैर हलाल मीट खाने की लत लग जाए।

तुर्की मूल की उइगर मानवाधिकार कार्यकर्ता अर्सलान हिदायत का कहना था कि पोर्क खाने से लेकर शराब पीने तक, चीन की सरकार इस्लाम में हराम मानी जाने वाली हर चीज़ को उइगरों के लिए सामान्य बनाने की कोशिश कर रही है। चीन की सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि रमजान के दौरान मुस्लिम पोर्क का सेवन करें और रोज़ा नहीं रखें।    

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

यूपी में उपचुनाव के दौरान हिंसा, मीरापुर में सपा समर्थकों पर पथराव का आरोप: NDA प्रत्याशी ने कहा- बाहर से असलहे लेकर लोगों को...

उत्तर प्रदेश के मीरापुर में विधानसभा उपचुनाव की वोटिंग के दौरान पथराव और हिंसा हुई है। आरोप समाजवादी पार्टी पर लगा है।

विनोद तावड़े पर ताबड़तोड़ ट्वीट, सुप्रिया सुले के ‘बिटकॉइन घोटाले’ पर चुप्पी: क्या पिता दिलीप सरदेसाई पर शरद पवार के अहसानों का बदला चुका...

खुद को निष्पक्ष दिखाने की कोशिश करने वाले पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने विनोद तावड़े को लेकर कई ट्वीट किए, लेकिन सुप्रिया सुले पर चुप्पी साध ली।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -