प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से ही इस पर विश्लेषण होता ही रहता है कि कैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की भूमिका मजबूत हुई है। अब एक वीडियो मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक सुर्खियाँ बना। ये वीडियो रविवार (21 मई, 2023) की शाम का है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रशांत महासागर में स्थित एक द्वीपीय देश पापुआ न्यू गिनी पहुँचे। वहाँ के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे ने पीएम मोदी के पाँव छू कर उन्हें प्रणाम किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने झुक कर पापुआ न्यू गिनी के पीएम ने जिस तरह से उन्हें सम्मान दिया, उससे हर भारतवासी को अपने नेतृत्व पर गर्व महसूस हुआ। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पापुआ न्यू गिनी ने अपने देश के सर्वोच्च सम्मान ‘Companion of the Order of Logohu (GCL)’ ने भी नवाजा है। वहाँ के गवर्नर जनरल सर बॉब डाडा ने उन्हें ये सम्मान दिया। उन्हें ‘ग्लोबल साउथ’ के हितों के लिए आवाज़ उठाने और प्रशांत महासागर में स्थित देशों की एकता के लिए प्रयास करने के लिए ये सम्मान दिया जा रहा है।
अब आपके मन में ये सवाल ज़रूर उठेगा कि आखिर ये ‘ग्लोबल साउथ’ क्या है? इसका अर्थ उन देशों से है, जो कम विकसित हैं और जिन पर कैपिटलिस्ट अर्थव्यवस्था का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। ऐसे देश, जिन्हें अमीर देशों से किसी न किसी कारण नुकसान पहुँचा, जो उपेक्षित रह गए। पहली बार अमेरिकी सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक कार्ल ऑग्लेज़्बी ने इस टर्म का इस्तेमाल किया था। इसमें कम आय वाले ऐसे देश आते हैं, जिनकी उपेक्षा की गई।
इसके अंतर्गत जो देश आते हैं वहाँ प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है, बेरोजगारी का स्तर बहुत ज़्यादा है और साथ ही इंफ़्रास्ट्रक्चर की कमी है। कई लोग इसका मतलब दक्षिण में स्थित देश समझ लेते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। हाँ, ये ज़रूर कहा जा सकता है कि इसमें आने वाले अधिकतर देश उष्णकटिबंधीय दक्षिणी गोलार्ध में ही स्थित हैं। ‘साउथ’ का अर्थ यहाँ ‘गरीब’ से लिया जा सकता है, जिसे कई लोग पसंद भी नहीं करते हैं और संवेदनहीन परिभाषा बताते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिजी ने भी अपने देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा है। सबसे बड़ी बात ये है कि फिजी द्वारा किसी विदेशी नागरिक को ये सम्मान देना बिलकुल दुर्लभ है। उन्हें ‘कम्पैनियन ऑफ ऑर्डर ऑफ फिजी (CF)’ अवॉर्ड से नवाजा गया। वैश्विक राजनेता के रूप में किए गए कार्यों के कारण उन्हें यह सम्मान दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदियों पुराने भारत-फिजी संबंधों की बात करते हुए इस अवॉर्ड को भारत की जनता को समर्पित किया।
फिजी के प्रधानमंत्री सिटिवेनी रबुका ने उन्हें वहाँ के राष्ट्रपति की तरफ से ये सम्मान दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहाँ FIPIC की बैठक में हिस्सा लेने गए हैं। आप ज़रूर सोच रहे होंगे कि आखिर ये FIPIC है क्या और ये इतना महत्वपूर्ण क्यों है। इसका अर्थ है – ‘इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स कोऑपरेशन’, जिसे प्रशांत महासागर में स्थित छोटे देशों और भारत के साथ उनके गठबंधन के लिए बनाया गया है। नवंबर 2014 में जब पीएम मोदी फिजी गए थे, तब इसका गठन किया गया था।
इसमें भारत के अलावा ये 14 देश शामिल हैं – कुक आइलैंड्स, फिजी, किरिबाती, मार्शल आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया, नाउरू, निउए, पलाउ, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, सोलोमन आइलैंड्स, टोंगा, तुवालू और वानूआतू। ये सभी द्वीपीय देश हैं। न सिर्फ इन देशों का क्षेत्रफल छोटा है, बल्कि ये भारत से बहुत दूरी पर भी स्थित हैं। इनमें से अधिकतर बड़े ‘एक्सक्लूसिव इकनोमिक जोन (EEZ)’ का हिस्सा हैं, अर्थात समुद्री क्षेत्रों पर उनका अच्छा-खासा अधिकार है।
भारत की अधिकतर सक्रियता हिंद महासागर में ही रही है, जिसका इस्तेमाल वो अपने व्यापारिक और सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए करता रहा है। इन देशों और भारत के बीच व्यापारिक रिश्तों को भी आगे बढ़ाने के लिए इस मंच का इस्तेमाल किया जा रहा है। दोनों पक्षों के बीच हर साल 300 मिलियन डॉलर (2486 करोड़ रुपए) का कारोबार होता है। भारत ने क्लीन एनर्जी और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए भी 1 मिलियन डॉलर की सहायता इन देशों को की है।
साथ ही भारत में इनके लिए एक ट्रेड ऑफिस की स्थापना की गई। डिजिटल कनेक्टिविटी को मजबूत करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। ‘वीजा ऑन अराइवल’ की सुविधा भी उन्हें दी गई है, अर्थात भारत पहुँचने के बाद एयरपोर्ट पर वीजा देना। अंतरिक्ष तकनीक में भी सहयोग किया जा रहा है। उनके लिए एक ‘विजिटर्स प्रोग्राम’ बनाया गया है। हर साल दी जाने वाली सहायता को बढ़ा कर 2 लाख डॉलर कर दिया गया है।
भारत फ़िलहाल G20 की भी अध्यक्षता कर रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों को आश्वासन दिया है कि वो उनके मुद्दे भी वैश्विक मंच पर उठाएँगे। इंडो-पैसिफिक मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरान विकसित देशों पर भी निशाना साधा, जिन्होंने कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के काल में ‘ग्लोबल साउथ’ को छोड़ दिया था और उनकी मदद नहीं की थी। ऐसे समय में भारत ने ‘वैक्सीन मैत्री’ के जरिए इन देशों की मदद की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पापुआ न्यू गिनी और फिजी द्वारा अपन सर्वोच्च सम्मान देना ये दिखाता है कि उनके नेतृत्व पर न सिर्फ भारत के गरीबों को, बल्कि गरीब देशों को भी भरोसा है। इंडो-पैसिफिक देशों के लिए भारत ने 80 लाख वैक्सीन डोज की व्यवस्था की थी। पापुआ न्यू गिनी को भी 1,32,000 कोविड-19 वैक्सीन के डोज भेजे गए थे। कठिन समय में भारत द्वारा की गई मदद का ही ये प्रभाव है कि आज इन देशों में भारत और भारत के नेता के लिए इतना सम्मान है।
इस बैठक में मैरिका के राष्ट्रपति जो बायडेन भी आने वाले थे, लेकिन वाशिंगटन में ऋण को लेकर चल रही आपात चर्चाओं के कारण उन्हें अपना कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। चीन 80 के दशक से ही इन देशों से जुड़ा रहा है। हाल ही में चीन ने सोलोमन आइलैंड के साथ एक करार किया, जिसके अनुसार वो वहाँ की सेना का भी इस्तेमाल कर सकता है। सोलोमन आइलैंड की जमीन का इस्तेमाल वो अपने सुरक्षा हितों के लिए कर सकता है।
ऐसे में भारत के लिए वहाँ अपनी उपस्थिति मजबूत करना समय की माँग भी है। मार्शल आइलैंड्स, नाउरु, पलाउ और तुवालु के अलावा वहाँ के बाकी देशों से चीन ने काफी नजदीकियाँ बढ़ा ली हैं और उनके विश्वास हासिल करने में सफलता पाई है। सोलोमन आइलैंड्स को चीन ने 730 मिलियन डॉलर की सहायता देने का ऐलान किया। वहाँ के लोगों में चीन के प्रति नाराजगी है, लेकिन इसके बावजूद वहाँ की सरकार ने इस करार को स्वीकार किया।
चीन ने अब तक ‘पैसिफिक आइलैंड्स फोरम (PIF)’ और ‘चीन-पैसिफिक आइलैंड्स इकोनॉमिक डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन फोरम’ के जरिए वहाँ अपनी उपस्थिति बढ़ाता रहा है। वहाँ के एक नेता को सिर्फ इसीलिए पद से हटा दिया गया, क्योंकि वो चीनी आक्रामकता के खिलाफ था। उधर अमेरिका इन देशों को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं है। उसने 1993 में सोलोमन आइलैंड्स में अपना दूतावास तक बंद कर दिया था। चीन ने इसका फायदा उठाया।
अब जब चीन अपने ‘बेल्ट एन्ड रोड’ परियोजना के लिए वहाँ के देशों के साथ आक्रामक रूप से संबंध बढ़ाने लगा, तब अमेरिका की नींद टूटी और उसने प्रशांत महासागर में स्थित इन द्वीपीय देशों के लिए नीतियाँ नए सिरे से बनानी शुरू की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत वो कर रहा है, जो अमेरिका नहीं आकर पाया। भारत की दमदार उपस्थिति से चीन को वहाँ खतरा जरूर महसूस होगा। भारत हमेशा ‘पीपल टू पीपल’ कनेक्टिविटी पर जोर देता है और भारत की कोई छिपी हुई मंशा भी नहीं होती, ऐसे में वहाँ की जनता भी भारत से खुश रहती है।