हंगरी मूल के अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस ने वैश्विक विश्वविद्यालय की शुरूआत करने के लिए 100 करोड़ डॉलर देने की बात कही है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना “राष्ट्रवादियों से लड़ने” के लिए की जाएगी। उन्होंने “अधिनायकवादी सरकारों” और जलवायु परिवर्तन को अस्तित्व के लिए ख़तरा बताया। दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में गुरुवार को जॉर्ज सोरोस ने अपने विचार रखते हुए कहा कि राष्ट्रीयता के अब मायने ही बदल गए हैं।
वैश्विक नेताओं पर हमला करते हुए, सोरोस ने दुख व्यक्त किया कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अधीन दुनिया की सबसे मजबूत शक्तियाँ- अमेरिका, चीन और रूस तानाशाहों के हाथों में हैं और सत्ता पर पकड़ रखने वाले शासकों में इज़ाफ़ा हो रहा है।
मोदी-विरोधी उद्योग के लिए सोरोन की बातें इसलिए खुशी देने वाली हैं क्योंकि अब उन्हें धन जुटाने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, सोरोस ने यह भी दावा किया कि “सबसे बड़ा और सबसे भयावह झटका” भारत में था। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भारत को “एक हिन्दू राष्ट्र बनाने” का आरोप लगाया।”
उन्होंने कहा, “राष्ट्रवाद, जो अब बहुत आगे निकल गया है। सबसे बड़ा और सबसे भयावह झटका भारत को लगा है, क्योंकि वहाँ लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नरेंद्र मोदी भारत को एक हिन्दू राष्ट्रवादी देश बना रहे हैं।” उन्होंने पीएम मोदी पर आरोप लगाया कि वो कश्मीर में सख्ती कर रहे हैं, जो कि एक अर्ध-स्वायत्त मुस्लिम क्षेत्र है और वो लाखों नागरिकों को उनकी नागरिकता से वंचित करने की धमकी दे रहे हैं।
शायद, सोरोस नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) का उल्लेख कर रहे थे, जो मोदी सरकार ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के तीन पड़ोसी देशों से छ: ग़ैर-मुस्लिम धर्म से संबंधित उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए संसद में पारित किया था।
यह दुखद है कि सोरोस ने बिना तथ्यों की सही जानकारी जुटाए यह सब दावे कर दिए। सच्चाई यह है कि पूरे क़ानून (CAA) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो या तो किसी भारतीय से अपनी नागरिकता साबित करने या अपने दस्तावेज़ जमा करने की माँग करता हो। इसके अलावा, इस क़ानून का उद्देश्य सताए हुए लोगों को नागरिकता प्रदान करना है न कि भारतीय नागरिकों के किसी विशेष समूह, ख़ासतौर पर समुदाय विशेष की नागरिकता को छीनना है। इसके अलावा, अगर सोरोस एनआरसी के बारे में बात कर रहे थे, तो एनआरसी के नियमों को अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है।
दिलचस्प बात यह है कि हंगरी की राष्ट्रवादी सरकार, जो यूरोपीय संघ में शरणार्थियों की आमद का कड़ा विरोध करती है, जॉर्ज सोरोस के साथ काफी समय से युद्ध में है। पिछले साल, हंगरी सरकार ने ग़ैर-सरकारी संगठनों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया था, जिन्होंने राज्य से पंजीकरण करने के लिए विदेशों से धन प्राप्त किया था। हंगरी ने अवैध घुसपैठ पर कार्रवाई करते हुए ‘स्टॉप सोरोस’ शीर्षक से क़ानून पारित किया था। इसके अलावा, दिसंबर 2015 में, रूस ने प्रगतिशील यहूदी-अमेरिकी परोपकारी जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित दो फाउंडेशन पर प्रतिबंध लगा दिया था। इनके लिए कहा गया था कि वे “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा” पैदा कर रूसी संविधान को कमज़ोर कर रहे थे। इससे पता चलता है कि सोरोस अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ग़ैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से दुनिया भर के विभिन्न देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करते हैं।
इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि जॉर्ज सोरोस एक तरफ़ तो “अधिनायकवादी सत्ता” से लड़ने का दावा कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने ह्यूस्टन में हाउडी मोदी के आयोजन के बाद आतंक परस्त पाकिस्तान के पीएम इमरान खान से मुलाकात की थी। इससे उनका ख़ुद का दोहरा चरित्र उजागर होता है।
इसके अलावा, दावोस में उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति पर भी निशाना साधा और उन्होंने ट्रम्प को एक “शत्रु और परम संकीर्णतावादी” करार दिया। सोरोस ने यह भी दावा किया कि मानवता एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है और आने वाले समय में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीन के शी जिनपिंग जैसे शासकों के भाग्य का निर्धारण दुनिया ख़ुद करेगी।
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