अफगानिस्तान में अब तालिबान का शासन स्थापित हो चुका है। राजधानी काबुल में तालिबानी अधिकार स्थापित होने के बाद काबुल से लोगों का पलायन शुरू है और हर कोई तालिबान के डर से अफगानिस्तान छोड़ना चाहता है। लेकिन इस संकट के बीच भी काबुल के रतन नाथ जी (Rattan Nath) मंदिर के पुजारी पंडित राजेश कुमार ने मंदिर छोड़ने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि तालिबान उन्हें भले ही मार दे लेकिन वो मंदिर नहीं छोड़ेंगे।
Pandit Rajesh Kumar, the priest of Rattan Nath Temple in Kabul:
— Bharadwaj (@BharadwajSpeaks) August 15, 2021
“Some Hindus have urged me to leave Kabul & offered to arrange for my travel and stay.
But my ancestors served this Mandir for hundreds of years. I will not abandon it. If Taliban kiIIs me, I consider it my Seva”
पंडित राजेश कुमार ने कहा कि कई हिन्दुओं ने उनसे काबुल छोड़ने का आग्रह किया और उन हिन्दुओं ने उनका (राजेश कुमार) खर्च उठाने की बात भी कही लेकिन पंडित राजेश ने मंदिर छोड़ने से मना कर दिया। उन्होंने कहा, “मेरे पूर्वजों ने सैकड़ों सालों तक इस मंदिर में सेवा की है। मैं इसे छोड़कर नहीं जाऊँगा। अगर तालिबान मुझे मार देता है तो यह भी मेरी सेवा ही होगी।” रिपोर्ट्स के अनुसार कुमार संभवतः काबुल के आखिरी पुजारी हैं।
इसके पहले ऑर्गनाइजर ने रिपोर्ट दी थी कि इस्लामी कट्टरपंथियों के आक्रमण की संभावना के चलते अफगानिस्तान के आखिरी यहूदी जैबुलोन सिमन्तोव (Zabulon Simantov) ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था। हेरात में जन्मे और पले-बढ़े सिमन्तोव के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद यहूदी-अफगान संबंधों का 2000 साल पुराने इतिहास का एक अध्याय समाप्त हो गया।
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जे के साथ ही आतंकी संगठन तालिबान ने युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी, इसके बाद मुल्क के राष्ट्रपति और सारे राजनयिक देश छोड़ कर भाग चुके हैं। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने ये कहते हुए देश छोड़ दिया कि वो खूनखराबा नहीं चाहते हैं। रविवार (15 अगस्त, 2021) को दिन भर काबुल के नागरिकों में डर का माहौल रहा। पश्चिमी देश अपने लोगों को वहाँ से निकालने में लगे रहे।
काबुल एयरपोर्ट पर चारों तरफ वही लोग दिखाई दे रहे हैं जो किसी भी हालत में अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं। सैंकड़ों अफगानिस्तानी इतने मजबूर हो गए हैं कि वह भेड़-बकरियों की तरह एक ऊपर एक लदकर हवाई जहाज में चढ़ रहे हैं। भारत आए अफगानी नागरिक रो-रोकर अपनी आपबीती सुना रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि अब अफगानिस्तान में उनके लिए कुछ भी नहीं बचा और वहाँ अब शांति की भी कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है।