उइगर मुस्लिमों के साथ होते अत्याचार की खबरों के बीच पता चला है कि अब चीन की नजर सान्या क्षेत्र के उत्सुल मुस्लिमों पर है। इस क्षेत्र में 10 हजार से भी कम संख्या में ये समुदाय रहता है। मगर, वहाँ ‘चीनी सपने’ को साकार करने की आड़ में इस समुदाय पर अप्रत्यक्ष रूप से हमले होने शुरू हो गए हैं।
जानकारी के अनुसार, सान्या में अब मुस्लिम घरों व दुकानों के बाहर लिखे मजहबी नारों जैसे अल्लाह-हू-अकबर को स्टिकर्स की मदद से ढका जा रहा है। हलाल खाने के बोर्ड को भी रेस्त्रां आदि से हटाया जा रहा है। इस्लामी स्कूल बंद हो रहे हैं और हिजाब पहनने वाली लड़कियों को जेल भेजने की कोशिश हो चुकी है।
न्यूऑर्क टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि चीनी सरकार की मुस्लिम समुदाय के ऊपर ऐसी मनमानियाँ मजहबी कट्टरता रोकने के नाम पर हो रही हैं। उइगर मुस्लिमों के बाद उत्सुल मुस्लिमों पर ऐसा नियंत्रण चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का असली तानाशाही चेहरा उजागर करता है।
फ्रॉस्टबर्ग स्टेट यूनिवर्सिटी में एक एसोसिएट प्रोफेसर जो मैरीलैंड कहते हैं कि उत्सुल मुस्लिमों पर नियंत्रण का कड़ा होना स्थानीय समुदायों के खिलाफ चीनी कम्युनिस्ट अभियान के असली चेहरे को प्रकट करता है। वह कहते हैं कि राज्य का कड़ा नियंत्रण बताता है कि ये सब पूर्ण रूप से इस्लाम विरोधी है।
बता दें कि चीन में इस्लाम को दबाने का काम साल 2018 के बाद से शुरू हुआ, जब चीनी कैबिनेट ने एक गुप्त निर्देश पास किया कि मस्जिदों और मदरसों में अरब के बढ़ते प्रभाव को रोका जाए। लेकिन अब हाल में सान्या में उत्सुल मुस्लिमों के साथ शुरू हुई मनमानी बताती है कि चीन अपनी ही सरकारी नीतियों के उलट चल रहा है। कुछ साल पहले तक इस समुदाय को और इसके मुस्लिम देशों से संबंधों को बढ़ावा दिया जाता था। लेकिन अब ये लोग उसी समुदाय की धार्मिक पहचान को मिटाने का काम कर रहे हैं।
मलेशियन-चीनी लेखक युसूफ लियो कहते हैं कि उत्सुल मुस्लिमों की अलग पहचान है। इन्होंने सदियों से भौगोलिक रूप से अलग रहकर, अपने मजहब को संभाले रखा। वह बताते हैं कि उत्सुल मुस्लिम कई मायनों में मलेशिया के लोगों जैसे हैं। वह एक जैसे कई गुण, जैसे भाषा, पोषाक, इतिहास, और खान-पान साझा करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय मस्जिद के मजहबी नेताओं को अब लाउडस्पीकर्स हटाने के लिए कहा जा रहा है। इसके अलावा, आवाज को भी कम रखने की बात कही गई। एक नई मस्जिद का निर्माण कथित रूप से अरब वास्तुशिल्प तत्वों के विवाद की वजह से रुका हुआ है। जहाँ पूरी तरह से धूल इकट्ठा हो गई है। स्थानीयों का कहना है कि शहर में 18 साल से कम उम्र के बच्चों को अरबी पढ़ने से रोक दिया गया है।
उत्सुल समुदाय के लोगों का कहना है कि वे अरबी सीखना चाहते थे, जिससे न केवल इस्लामी ग्रंथों को बेहतर ढंग से समझ सकें, बल्कि उन अरब के पर्यटकों के साथ भी बातचीत कर सकें, जो उनके यहाँ रेस्त्रां, होटल और मस्जिद में आते हैं। कुछ लोगों ने नए प्रतिबंधों पर नाराजगी व्यक्त की है।
एक स्थानीय मजहबी नेता ने कहा कि समुदाय को बताया गया था कि उन्हें अब गुंबद बनाने की अनुमति नहीं। वह नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बोले, ”मध्य-पूर्व की मस्जिदें इसी तरह हैं। हम चाहते हैं कि ये भी मस्जिदों की तरह दिखें, न कि घरों की तरह।”
बता दें कि इस संबंध में हाल ही में कुछ लोगों को सरकार की आलोचना करने पर हिरासत में भी ले लिया गया था। वहीं, पिछले साल सितंबर महीने में उत्सुल पैरेंट्स और कुछ स्टूडेंट्स ने हिजाब नहीं पहनने के आदेश के खिलाफ कई स्कूलों और सरकारी दफ्तरों के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया था।
गौरतलब है कि एक ओर जहाँ सान्या के उत्सुल मुस्लिमों को लेकर ऐसी खबर आई है वहीं चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार अब सामान्य हो चुका है। वहाँ चीनी अधिकारी उइगरों की पहचान मिटाने के लिए उन्हें कैंप में रखते हैं, उनके मस्जिदों रिकंस्ट्रक्ट करते हैं और घरों के इंटीरियर तक को बदलने का काम वहाँ किया जाता है। इसके अलावा पुरूषों को असहनीय पीड़ा और महिलाओं का बर्बरता से रेप उइगर मुस्लिमों के लिए कोई नई बात नहीं रह गई है।