ग्रीनविच मीन टाइम (GMT), एक ऐसी इकाई जिससे दुनिया के समय का आकलन लागाया जाता है। आसान शब्दों में इसे औसत समय भी कहा जा सकता है, जिस 24 घंटे की अवधि में पृथ्वी अपनी धुरी पर 360 डिग्री घूमती है। इसका इतिहास वैसे तो काफी पुराना है, इंग्लैंड का एक गाँव है ‘ग्रीनविच’ (Greenwich) जिसके आधार पर इसकी नींव रखी गई। इसके बारे में ऐसा कहा जा सकता है कि यह धरती के मध्य में स्थित है। हालाँकि, इससे जुड़े तमाम तकनीकी तथ्य हैं, सभी अहम हैं लेकिन सवाल यह है कि कितने समझे जा सकते हैं।
GMT (Greenwich Mean Time) को सालाना औसत कहा जाता है, जिस अवधि में सूर्य इंग्लैंड स्थित ‘रॉयल ऑब्जर्वेटरी ग्रीनविच’ (Royal Observatory Greenwich) से होकर गुज़रता है। इसे साल 1884 में ठीक आज के दिन ही मान्यता दी गई थी और 1972 तक यह ‘अंतर्राष्ट्रीय सिविल टाइम’ का मानक बन गया था। असल में यह प्रक्रिया शुरू हुई थी 16वीं शताब्दी से जब पेंडुलम का अविष्कार हुआ था। इसके बाद ही समय और सौर मंडल समयावधि (solar time) के बीच सम्बंध पता चला था। 19वीं सदी के दौरान इंग्लैंड के हर शहर का अपना समय होता था, कोई राष्ट्रीय मानक नहीं था नतीजतन कई तरह की परेशानियाँ सामने आती थीं।
1850 से 1860 के बीच वहाँ रेलवे और व्यापार का विस्तार हुआ, आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ी। ऐसे हालातों में वहाँ एक राष्ट्रीय मानक समय की आवश्यकता पड़ी, फिर रेलवे ने ही एक मानक समय (स्टैंडर्ड टाइम) तय किया। अंततः साल 1847 के दिसंबर महीने में ब्रिटिश रेलवे ने GMT स्वीकार किया, जिसे ‘रेलवे टाइम’ भी कहा गया। 1850 के बाद इंग्लैंड स्थित छोटे बड़े शहरों की सार्वजनिक घड़ियों को GMT के आधार पर तय किया गया और 1880 तक इसे पूरी तरह स्वीकृति मिल गई।
साल 1884 में GMT की ग्रीनविच मेरिडियन को 2 वजहों के चलते बतौर ‘प्राइम मेरिडियन’ (Prime Meridian) स्थापित किया गया।
पहली, अमेरिका (USA) ने अपने राष्ट्रीय टाइम ज़ोन के आधार पर सब कुछ तय कर लिया था।
दूसरी, 90 के दशक में दुनिया का लगभग 70 से 75 फ़ीसदी व्यापार और लेन-देन समुद्र तालिका (sea charts) पर निर्भर करता था। यह पहले ही ग्रीनविच को ‘प्राइम मेरिडियन’ के तौर पर स्वीकार कर लिया था।
इसके अलावा भी एक और वजह थी जिसके आधार पर ग्रीनविच को महत्त्व दिया गया क्योंकि इसका देशांतर (longitude) 0 डिग्री पर था। दलील दी गई कि इससे दुनिया की एक बड़ी आबादी को फायदा होगा। द शेफ़र्ड गेट क्लॉक (The Shepherd Gate Clock) दुनिया की पहली ऐसी घड़ी थी जिसने पहली बार GMT को सार्वजनिक रूप से दिखाया था। इसे ‘स्लेव क्लॉक’ भी कहा जाता है जो रॉयल ऑब्जर्वेटरी स्थित शेफ़र्ड मास्टर क्लॉक से जुड़ी हुई है। वहीं दूसरी तरफ ‘रॉयल ऑब्जर्वेटरी’ को GMT का घर भी कहा जाता है।
एक और ऐसी चीज़ है जिसके बिना GMT विषय अधूरा है, अन्तराष्ट्रीय तिथि रेखा (International Date Time)। इसके आधार पर दिन तय किए जाते हैं और GMT के आधार पर समय तय किया जाता है। दुनिया में हर देश का अपना अलग टाइम ज़ोन जो इस आधार पर तय किया जाता है कि देशांतर रेखा किस प्रकार या किस स्थिति में उससे होकर गुज़रती है। उदाहरण के लिए भारत में यह रेखा 82.5 डिग्री पर होकर गुज़रती है जिसके आधार पर भारत GMT से 5.30 घंटे आगे है।
GMT से सम्बंधित कुछ और बातें बेहद अहम होती हैं जिसके बिना इसकी कार्यप्रणाली समझना मुश्किल है। इसमें सबसे ज़्यादा उल्लेखनीय है अक्षांश (latitude) और देशांतर (longitude)। अक्षांश रेखाएं समानांतर (parallel) होती हैं, इनकी दूरी समान होती है, यह पूर्व से पश्चिम की तरफ होती हैं और इनकी कुल संख्या 181 होती है। वहीं देशांतर रेखाएं उत्तर से पश्चिम की तरफ होती हैं, इसकी रेखाओं में दूरी समान नहीं होती है और यह भूमध्य रेखा से भी काफी दूर होती हैं। अंग्रेज़ों के शासनकाल में हमारे देश के 2 टाइम ज़ोन हुआ करता था, पहला कोलकाता के आधार पर और दूसरा मुंबई के आधार पर। उनके जाने के बाद IST (Indian Standard Time) बना, यानी एक देश का एक ही मानक समय होगा। हमारा GMT + 5:30 है यानी ग्रीनविच मीन टाइम से लगभग 5:30 घंटे आगे।