विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार (6 सितंबर) को ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में जेजी क्रॉफर्ड ओरेशन 2021 में अपने संबोधन के दौरान कहा, ”दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय संबंध एक नए चरण में प्रवेश कर रहे हैं।” उन्होंने हिंद-प्रशांत क्षेत्र और चीन का नाम लेते हुए कहा कि कई पुराने सिद्धांत अब फेल हो रहे हैं और नई चीजें सामने आ रही हैं।
विदेश मंत्री ने कहा कि वर्तमान में अमेरिका एक मजबूत शक्ति के रूप में स्पष्ट रूप से संघर्ष कर रहा है। इसमें दो राय नहीं है कि आने वाले समय में इंडो-पैसिफिक अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मूल में होगा। हालाँकि, पिछले कुछ दशकों में एशिया यूरोप की तुलना में अधिक गतिशील रहा है, लेकिन इसका क्षेत्रीय ढाँचा कहीं अधिक रूढ़िवादी है।
As we seek to discern outlines of what emerges next, there’s no question that Indo-Pacific would be very much at its core. Even though Asia has been more dynamic than Europe in the last few decades, its regional architecture is far more conservative: EAM S Jaishankar pic.twitter.com/1bE2BHWxiN
— ANI (@ANI) September 6, 2021
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने क्वाड (भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान का संगठन) को मौजूदा माहौल में ज्यादा जरूरी बताया और इसे भी चीन के एक बड़ी शक्ति के तौर पर उभरने से जोड़ कर देखा। विदेश मंत्री ने यह बात भी सामने रखी कि चीन के एक शक्ति के तौर पर बढ़ने से कई देशों पर भारी असर होगा।
क्वाड को विदेश मंत्री ने वैश्विक माहौल में हो रहे बदलाव का ही एक परिणाम के तौर पर चिह्नित किया। उन्होंने कहा कि हम देख रहे हैं कि एकल शक्ति का दौर खत्म हो गया। द्विपक्षीय संबंधों की अपनी सीमाएँ हैं। बहुपक्षीय संगठन काम नहीं कर पा रहे। जिस तरह के बदलाव का दौर चल रहा है हमें पता नहीं है कि आगे क्या होगा। लेकिन निश्चित तौर पर हिंद-प्रशांत का क्षेत्र इस बदलाव के केंद्र में होगा।
विदेश मंत्री ने भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों पर बात करते हुए दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि साल 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी चीन गए थे, तब उनका फोकस इस बात पर था कि हमारे संबंध बॉर्डर पर शांतिपूर्ण बने रहे। एस जयशंकर ने ये भी कहा कि दोनों देश विभिन्न समझौतों के जरिए इस पर आगे भी बढ़े, जिससे दोनों में विश्वास पैदा हुआ था। इसमें कहा गया था कि दोनों ही देश अपनी सेनाओं को सीमा पर नहीं लाएँगे।
PM Rajiv Gandhi went to China in 1988, built our relationship predicated on the fact that the border would be peaceful & tranquil. We did that by a series of agreements which built confidence, which said don’t bring your military to the border: EAM S Jaishankar (1/3) pic.twitter.com/kMxcmAFUFN
— ANI (@ANI) September 6, 2021
विदेश मंत्री ने कहा कि साल 1975 के बाद एक छोटी सी झड़प हुई थी, हालाँकि इस दौरान बॉर्डर पर किसी की जान नहीं गई थी। विदेश मंत्री ने कहा कि जब सेना की बड़ी संख्या में मौजूदगी का हमने विरोध करना शुरू किया तो जून 2020 में बहुत बड़ा संघर्ष हुआ, जिसमें कई लोगों की जान चली गई। इससे दोनों देशों के रिश्तों में दरार पैदा हो गई। मुझे लगता है कि भारत और चीन के संबंधों को कैसे पटरी पर लाया जाए, ये इस समय की एक बड़ी चुनौती है।
Once we countered that, it led to a very serious clash in June last year in which a lot of lives were lost. It has taken the relationship in completely different direction. In India, challenge of how to manage our relationship with China ranks very very high: EAM Jaishankar (3/3) pic.twitter.com/SgxdAWURka
— ANI (@ANI) September 6, 2021