अफगानिस्तान में तालिबानी शासकों का कब्जा होने के बाद रविवार (16 अगस्त) को काबुल में डर और अराजकता फैल गई। तालिबानी शासकों ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद देश में 20 साल से चल रहे युद्ध का निर्णायक अंत कर दिया।
अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने की घोषणा के बाद से तालिबानियों ने अफगान नागरिकों पर कहर बरपाना शुरू कर दिया। उन्होंने कुछ ही दिनों में एक के बाद एक प्रांतीय राजधानी पर कब्जा कर लिया। अंत में केवल काबुल ही अफगान सरकार के नियंत्रण में अंतिम प्रमुख शहर बचा, लेकिन रविवार को तालिबानी शासकों ने इस शहर पर भी धावा बोल दिया और इसे अपने कब्जे में ले लिया।
इस तरह तालिबानी शासकों ने अफगान सरकार को उखाड़ फेंका और उनसे बचने के लिए राष्ट्रपति अशरफ गनी को भी अपना देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। इसके बाद से पूरे अफगानिस्तान में तालिबानियों की दहशत है। अफगान नागरिक इनसे बचने के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं कर रहे हैं। त्रस्त लोगों के देश छोड़कर भागने वाले कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। देश से बाहर निकलने का रास्ता खोज रहे हजारों लोग आज काबुल हवाईअड्डे पर जमा हो गए और उन्होंने जाम लगा दिया। वायरल वीडियो में अफगान सैनिकों को प्लेन में घुसते हुए दिखाया गया है, उनमें से कुछ तो विमानों के पहियों से भी चिपके हुए हैं।
जैसे ही तालिबान ने अफगानिस्तान में अपना आधिपत्य स्थापित किया, समूह से जुड़े कई आतंकवादी मशीनगनों और तालिबान के सफेद झंडे लहराते हुए काबुल की सड़कों पर उतर आए। आपको बता दें कि तालिबान के झंडे की पृष्ठभूमि सफेद रंग की होती है, जिस पर इस्लामिक शहादा काले रंग में छपा होता है। वहीं, आतंकी संगठन आईएसआईएस द्वारा इस्तेमाल किए गए झंडे की पृष्ठभूमि इसके बिल्कुल उलट यानी काली है और इस पर सफेद रंग में इस्लामिक शहादा (Islamic Shahada) छपा हुआ है।
तो क्या दो झंडों में रंग के अंतर का मतलब यह है कि दो आतंकी संगठन अलग-अलग इस्लामी सिद्धांतों का पालन करते हैं? या यह महज एक संयोग है कि दो आतंकी संगठनों के झंडों में विपरीत रंग है, शायद उन्हें अलग दिखाने के लिए? आइए यह समझने की कोशिश करें कि तालिबान और आईएसआईएस के झंडों के बीच सूक्ष्म अंतर क्या है। यदि वास्तव में कोई अंतर है, तो उसका क्या अर्थ है।
ISIS और तालिबान के झंडों में सूक्ष्म अंतर
तालिबान और आईएसआईएस दोनों खुद को इस्लाम मजहब का सबसे बड़ा संरक्षक व अनुयायी बताते हैं। वे अपने काम को अल्लाह की नजर में बेहतरीन मानते हैं। दोनों समूह इस बात पर जोर देते हैं कि वे अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में इस्लाम को बड़े पैमाने पर स्थापित करने के लिए इस्लामिक जिहाद कर रहे हैं।
तालिबान आईएसआईएस से काफी पुराना है। उसने शुरू में अफगान गृहयुद्ध के दौरान हमलावर सोवियत सेना को भगाते हुए एक सफेद झंडे का इस्तेमाल किया था। जब इसने 1996 में काबुल पर कब्जा जमा लिया और अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात की स्थापना की तब सफेद झंडा देश का राष्ट्रीय ध्वज बन गया। यह राष्ट्रीय ध्वज उनके विश्वास और सरकार की पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता था। बाद में 1997 में तालिबान ने इस्लामिक शहादा को अपने झंडे में जोड़ा।
दूसरी ओर इराक से अमेरिका के हटने के बाद यहाँ ISIS ने बड़ी ही तेजी से अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए। गैर-मुसलमानों सहित इस्लाम के दुश्मन माने जाने वाले लोगों के खिलाफ क्रूरता करना ये अपना मजहब मानते थे। सोशल मीडिया ने भी आईएसआईएस को उसके प्रचार-प्रसार में मदद की। इस तरह उसने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हुए अपने इस्लामिक खिलाफत की स्थापना के सदियों पुराने सपने को साकार किया। इस्लामिक शहादा के साथ काले रंग के झंडे वाले आईएसआईएस आतंकी की तस्वीरें आतंकवादी समूह द्वारा नियमित रूप से साझा की जाती थीं।
शहादा एक इस्लामी शपथ (Islamic oath) है, इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक अदान का हिस्सा है। यह अल्लाह में विश्वास और पैगंबर मुहम्मद को दूत के रूप में स्वीकार करने की घोषणा करता है। शहादा में लिखा होता है: “कोई ईश्वर नहीं है, सिर्फ अल्लाह है और उसके पैगंबर सिर्फ़ मोहम्मद हैं।”
नोट- विस्तृत रूप से जानने के लिए यहाँ क्लिक कर अंग्रेजी में मूल लेख पढ़ें।