पाकिस्तान के करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में पहले सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा स्थापित कर दी गई है। इस मूर्ति का अनावरण पंजाब सूबे के पहले सिख मंत्री (अल्पसंख्यकों के लिए) और पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (पीएसजीपीसी) के अध्यक्ष रमेश सिंह अरोड़ा द्वारा करवाया गया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रमेश सिंह अरोड़ा ने समाचार एजेंसियों को बताया, “हमने आज स्थानीय और भारतीय सिखों की उपस्थिति में गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर साहिब में महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा स्थापित की है।” अरोड़ा ने कहा, “करतारपुर में प्रतिमा की भी बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी, जिसे पहले लाहौर किले में क्षतिग्रस्त कर दिया गया था।”
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में महाराजा रणजीत सिंह की 9 फुट की कास्य की प्रतिमा पहली बार 2019 में स्थापित हुई थी। उस समय इसे उनकी समाधि के पास लाहौर किले में माई जिंदियन हवेली के बाहर एक खुली जगह में रखा गया था। मूर्ति के साथ उनका घोड़ा ‘किफ बहार’ भी था। मूर्ति को ब्रिटेन के एसके फाउंडेशन के अध्यक्ष सिख इतिहासकार बॉबी सिंह बंसल ने उपहार में दिया था।
वहीं इसका निर्माण फ़कीर खाना संग्रहालय के निदेशक फ़कीर सैफ़ुद्दीन की देखरेख में बनाया गया था। हालाँकि, पाकिस्तान के इस्लामी कट्टरपंथियों ने महाराजा रणजीत सिंह की 250-300 किलो की मूर्ति को लगने के बाद दो बार तोड़ा। एक बार 2019-20 में और दूसरी बार 2021 में। इस कृत्य में पाकिस्तान का कट्टरपंथी संगठन ‘तहरीर-ए-लब्बैक’ भी शामिल था।
बाद में मूर्ति की मरम्मत करवाई गई लेकिन प्रतिमा को फिर से लाहौर में इसलिए स्थापित नहीं किया गया क्योंकि डर था कि कट्टरपंथी दोबारा इसपर हमला करेंगे। अंतत: निर्णय लिया गया कि ये मूर्ति करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में लगेगी ताकि सिख इसे देख अपने इतिहास पर गौरवान्वित हो सकें।
बता दें कि पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह ने 1801-1939 तक शासन किया था। उन्हें उनकी बहादुरी के कारण शेर-ए-पंजाब के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बालाकोट में एक बार अपनी सेना लेकर 300 इस्लामी आतंकियों को मौत के घाट उतारा था और दुर्रानी शासक से कोहिनूर वापस ले लिया था, जिसे बाद में उन्होंने जगन्नाथ पुरी में दे दिया था।
इसके अलावा उन्होंने अंग्रेजों के भी समय समय पर दांत खट्टे किए थे। एक बार की बात है होली के समय में महाराजा रणजीत सिंह अति प्रसन्न रहते थे। उन्हें होली मनाना बहुत पसंद था। ऐसे में उनके बाग में बड़े-बड़े टेंट लगाए जाते थे। इन टेंट्स को काफी अच्छे से सजाया जाता था और दोनों तरफ सैनिक तैनात थे। इस कार्यक्रम में वो अंग्रेजी अधिकारियों को निमंत्रण देते थे और फिर उनके टकले पर गुलाल मलकर अपनी होली खेला करते थे।