Saturday, July 27, 2024
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TRP मामले की जाँच अब CBI के पास, UP में दर्ज हुई अज्ञात आरोपितों के खिलाफ शिकायत

FIR में कहा गया कि इस तरह की गहरी साजिश किसी एक व्यक्ति का काम नहीं हो सकती। इसमें कई अज्ञात आरोपित हैं जो टीआरपी में गड़बड़ी करने के लिए एक इरादे के साथ इकट्ठा हुए और उद्देश्य की पूर्ती के लिए साजिश रची व उसे गलत तरह से हासिल भी किया।

TRP में गड़बड़ी का मामला अब CBI के हाथ में आ गया है। उत्तर प्रदेश सरकार की सिरफारिश के बाद लखनऊ पुलिस से जाँच का सारा जिम्मा CBI ने ले लिया है। इस संबंध में हजरतगंज थाने में कमल शर्मा नाम के शख्स ने शिकायत करवाई थी। वह ‘गोल्डन रैबिट’ कंपनी के सीआईओ हैं। यह शिकायत अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ दर्ज हुई थी।

इस केस को आईपीसी की धारा 120(ब), 34, 406, 408, 409, 420, 463, 465, 486 के तहत दर्ज किया गया था। इसके अलावा इसमें आरोप लगाया गया था कि टीआरपी में फर्जी साधनों का उपयोग करके टीआरपी हेरफेर को अंजाम दिया गया।

टीआरपी स्कैम में दर्ज हुई एफआईआर
टीआरपी स्कैम में दर्ज हुई एफआईआर

एफआईआर में BARC को लेकर कहा गया कि चूँकि BARC, जिसने 2015 में अपना काम शुरू किया था, वह भारत में TRP रेटिंग मुहैया कराने वाली एक मात्र संस्था बनी हुई है, ऐसे में उसका विश्वसनीय और पारदर्शी होना अनिवार्य है।

टीआरपी स्कैम में दर्ज हुई एफआईआर
टीआरपी स्कैम में दर्ज हुई एफआईआर

इसमें लिखा कि अगर BARC कुछ चैनलों के लिए साजिश के तहत टीआरपी संबंधित डेटा जोड़कर काम करता है तो भारत में प्रोग्राम प्रोडक्शन, विज्ञापन व अन्य चीजों के नतीजे गंभीर हो सकते हैं। इससे उस चैनल, जिसके लिए टीआरपी में हेरफेर की गई हो, उसको गलत रूप से वित्तीय लाभ भी हो सकता है।

अपनी शिकायत में शिकायतकर्ता ने कहा कि उन्हें पता चला है कि कई चैनल और ब्रॉडकास्ट कंपनियों के साथ इन सबमें कई अज्ञात नाम हैं, जिन्होंने फायदा उठाने के लिए टीआरपी में हेरफेर की। सूचना से खुलासा हुआ है कि अज्ञात आरोपितों ने जानबूझकर एक साजिश के तहत व साझा इरादे के साथ न केवल टीआरपी से छेड़छाड़ की बल्कि घरों की पहचान भी लीक कर दी।

FIR में कहा गया कि इस तरह की गहरी साजिश किसी एक व्यक्ति का काम नहीं हो सकती। इसमें कई अज्ञात आरोपित हैं जो टीआरपी में गड़बड़ी करने के लिए एक इरादे के साथ इकट्ठा हुए और उद्देश्य की पूर्ती के लिए साजिश रची व उसे गलत तरह से हासिल भी किया। इसमें गलत टीआरपी के कारण विज्ञापनदाताओं को भ्रमित करके विज्ञापन के पैसे लेने की भी बात है। साथ ही ये भी कहा गया कि अगर चैनल की सही टीआरपी दिखाते तो उन्हें विज्ञापन के पैसे कभी नहीं मिलते।

शिकायत में ये भी कहा गया कि अगर टीआरपी के मुताबिक विज्ञापन दिए जाते हैं जैसे जितनी ज्यादा टीआरपी उतनी अधिक विज्ञापन का शुल्क, तो यह प्रत्यक्ष रूप से विश्वासघात है। इसके बताया गया है कि जहाँ मीटर लगाए जाते हैं वह भी गोपनीय होता है और इसका जिम्मा उस शख्स पर होता है जो उसे इंस्टाल करता है। उस व्यक्ति से उम्मीद की जाती है कि वह कोई गोपनीय सूचना लीक न करे और अगर वह ऐसा करता है तो यह गोपनीय के अनुबंध और विश्वासघात का अपराध है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, यूपी सरकार ने इस संबंध में सीबीआई जाँच की माँग की थी। उससे पहले महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस ने टीआरपी केस में ही यह बात स्वीकार की थी कि टीआरपी मामले में दर्ज की गई एफ़आईआर में रिपब्लिक टीवी का नाम शामिल नहीं है। कोर्ट में उनके वकील ने भी माना कि रिपब्लिक आरोपित नहीं हैं। बता दें कि महाराष्ट्र राज्य और मुंबई पुलिस की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पेश हुए थे। अर्नब गोस्वामी ने इस संबंध में मुंबई पुलिस कमिश्नर पर परमबीर सिंह पर 200 करोड़ रुपए का मानहानि मुकदमा ठोका है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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