बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता पलटने के बाद से हिन्दुओं पर अत्याचार लगातार जारी हैं। हिन्दुओं के घरों को लूटने, जलाने, मंदिरों पर हमला करने और हिन्दुओं को सरेआम मारने तक की घटनाएँ सामने आई हैं। खुद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद युनुस ने माना है कि बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार हुए हैं। लेकिन यह बात मानने को बांग्लादेशी अखबार ढाका ट्रिब्यून का संपादक जाफर सोभन राजी नहीं है।
शुक्रवार (23 अगस्त, 2024) को ’10 चीजें जो भारत को बांग्लादेश के विषय में जाननी चाहिए’ शीर्षक से प्रकाशित हुए इस लेख में ज़फर सोभन ने हिन्दुओं पर बांग्लादेश में हुए हमलों का कारण फेल कानून व्यवस्था बताने का प्रयास किया।
लेख की शुरुआत में ही प्रोपेगेंडा पत्रकार ने दावा किया, “हिंदू खतरे में नहीं हैं। हाँ, शेख हसीना के जाने के बाद शुरुआती तौर पर अराजकता में, कानून व्यवस्था ना होने की छोटी अवधि थी, और हाँ, दुर्भाग्य से, जिन लोगों को निशाना बनाया गया उनमें से कुछ हिंदू समुदाय के थे।”
इसके बाद जाफर सोभन ने हिन्दुओं पर हमलों को भारतीय उपमहाद्वीप में होने वाले हमलों में शामिल करके इन घटनाओं का सामान्यीकरण करने का प्रयास किया। जफर सोभन ने लिखा, ”ऐसे समय में, निशाने पर होने वाले लोग सबसे कमजोर तबके के होते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि दक्षिण एशिया में, अल्पसंख्यक हमेशा असुरक्षित रहते हैं।”
बांग्लादेशी हिंदुओं पर अत्याचारों को छिपाने के लिए ढाका ट्रिब्यून के संपादक जाफर सोभन ने हिंसक मुस्लिम भीड़ द्वारा की गई हिंसा को राजनीतिक हिंसा बताकर लीपापोती कर दी। इसके बाद जफर सोभन यह सिद्ध करने लगा कि कैसे हिन्दुओं पर हुए हमले धार्मिक आधार पर नहीं हुए।
हिन्दुओं पर हमले को लेकर किया गुमराह
जफर ने हिंदुओं पर हमलों के पीछे धार्मिक कारणों को नकारते हुए कहा, “लेकिन यह धारणा कि हिंदू किसी तरह के नरसंहार का निशाना थे और उन्हें निशाना बनाना और उनसे हिंसा करना वास्तव में सत्ता परिवर्तन का एक अभिन्न अंग था, एक कल्पना मात्र है।” हालाँकि यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब हिन्दुओं पर हमलों को धार्मिक आधार ना बताकर उन्हें राजनीतिक प्रतिशोध बताने का प्रयास किया गया हो। इससे पहले अल जजीरा, BBC और अमेरिकी अख़बार न्यू यॉर्क टाइम्स भी यही कर चुका है।
जफर सोभन ने अपने लेख में वही कहानी बताई कि मुस्लिम बांग्लादेश के भीतर मंदिरों की रक्षा कर रहे हैं। हालाँकि, यह बताने में जफर असफल रहे कि बांग्लादेश के मुस्लिम ऐसे दौर में किस्से आखिर अपने मंदिरों की सुरक्षा कर रहे थे। इसका जवाब इससे पहले अन्य प्रोपेगेंडाबाजों ने भी नहीं दिया था। जफर ने अपने प्रोपेगेंडा में तुरंत यह बताया कि मुस्लिम मंदिर बचा रहे हैं, लेकिन यह नहीं बताया कि जिन हमलावरों से मंदिर को बचाया जा रहा है, वह भी इस्लामी कट्टरपंथी ही हैं।
बांग्लादेश से कर दी भारत की तुलना
जफर सोभन मात्र हिन्दुओं पर अत्याचारों को सही ठहराने तक ही नहीं रुके बल्कि उन्होंने बांग्लादेश को अल्पसंख्यकों के लिए भारत से बेहतर बताया। जफर ने दावा किया कि बांग्लादेश अल्पसंख्यकों के लिए भारत से अधिक सुरक्षित है। सोभन ने लिखा, “अल्पसंख्यक अधिकारों के मामले में बांग्लादेश में हालात बिल्कुल भी सही नहीं हैं, लेकिन तुलना के लिए एक देश का उदाहरण लें तो बांग्लादेश में अल्पसंख्यक भारत की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित हैं।”
जफर सोभन हालाँकि यह नहीं बता पाए कि भारत में ‘अल्पसंख्यक’ मुस्लिम आबादी 1947 में 9.84% से बढ़कर 2011 में 14.09% हो गई, जबकि कथित ‘सुरक्षा की कमी’ के बावजूद बांग्लादेश में हिंदू आबादी में गंभीर गिरावट आई है। वह वर्तमान में मात्र 8% है।
View from Dhaka Tribune: 10 things about a Bangladesh in transition that Indians should know https://t.co/2absAMZphH
— Scroll.in (@scroll_in) August 23, 2024
जफर सोभन इस प्रोपेगेंडा को भारत में खाद पानी देने वाले भी कई लोग सामने आए। वामपंथी मीडिया पोर्टल स्क्रॉल ने जफर के लेख को अपनी वेबसाइट पर जगह दी। इसके अलावा पत्रकार शेखर गुप्ता के द प्रिंट ने भी इसे छापा और शेखर ने स्वयं इसे आगे बढ़ाया।
'Hindus are not in danger in Bangladesh. Minorities are safer there than in India'@ZafarSobhan, editor, Dhaka Tribune, lists his 10 points he wants India to keep in mind https://t.co/aeOXsjtggQ
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) August 25, 2024
सुहरावर्दी के परिवार का है सोभन
ज़फ़र सोभन बांग्लादेशी एक्टिविस्ट और बैरिस्टर सलमा सोभन के बेटे हैं, जो ‘बंगाल के कसाई’ हुसैन शहीद सुहरावर्दी की रिश्तेदार हैं। 16 अगस्त, 1946 को कोलकाता में डायरेक्ट एक्शन डे हुआ था। यह मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना के इशारे
पर किया गया था। तब बंगाल के मुख्यमंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी के निर्देश पर मुस्लिम भीड़ ने हिंदुओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा की थी। ज़फ़र सोभन दिवंगत बांग्लादेशी कार्यकर्ता और बैरिस्टर सलमा सोभन के बेटे हैं, जो बदले में ‘बंगाल के कसाई’ हुसैन शहीद सुहरावर्दी से संबंधित हैं।
सुहरावर्दी ने मुस्लिम भीड़ के सामने भड़काऊ भाषण दिए और उन्हें हिंदुओं पर हमला करने के लिए प्रोत्साहित किया। उसने उनसे वादा किया कि पुलिस और सेना उनके हमलों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगी। उसने पुलिस बल को लेकर भी हेरफेर किया और सुनिश्चित किया कि वे हिंदुओं की मदद के लिए की गई कॉल का जवाब न दें। मुस्लिम भीड़ को दी गई राजनीतिक और कानूनी छूट ने उन्हें व्यापक हत्याएँ, लूटपाट, बलात्कार करने और लाखों हिंदुओं को भगाने की खुली छूट दी।
सुहरावर्दी का पहला लक्ष्य हिंदुओं को डराकर उन्हें मजबूर करना था। सुहरावर्दी मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में बंगाल को शामिल करवाना चाहता था। डायरेक्ट एक्शन डे में हुई हिंसा से उत्साहित होकर, कट्टरपंथी मुसलमानों ने बाद में नोआखली दंगों जैसे हिंदू विरोधी नरसंहारों को अंजाम दिया।