जेएनयू में भड़की हिंसा के समय हमने ‘इंडिया टुडे’ का फर्जी स्टिंग ऑपरेशन देखा था। मीडिया संस्थान जेएनयू के वामपंथी दंगाइयों को बचाने के लिए एकदम से पगला गया था। अब ‘आजतक’ के एक पत्रकार का झूठ पकड़ा गया है, जो अफवाह फैला कर दिल्ली पुलिस को बदनाम कर रहा था। इससे साफ़ पता चलता है कि किस तरह मीडिया जानबूझ कर दिल्ली में हो रही हिंसा की एकतरफा रिपोर्टिंग कर रहा है। ‘आजतक’ भले ही ख़बरों के प्रसारण के मामले में ‘सबसे तेज़’ होने का दावा करता हो, मगर उसकी पोल खुल गई है।
दरअसल, ‘आजतक (इंडिया टुडे)’ के पत्रकार ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए दिल्ली के एक इलाक़े में गया हुआ था। वहाँ से उसने बताया कि उस क्षेत्र में पुलिस की तैनाती नहीं की गई है। उसने एक तरह से दिल्ली पुलिस को बदनाम करने की कोशिश करते हुए यह दिखाने का प्रयास किया कि दिल्ली पुलिस ग्राउंड पर मौजूद नहीं है और कुछ कार्रवाई नहीं कर रही है। हालाँकि, एक सजग नागरिक ने पत्रकार के झूठ को बेनकाब करते हुए कुछ यूँ उसकी पोल खोली:
हालाँकि, जब एक सजग नागरिक ने वीडियो शूट किया तो पता चला कि वहाँ पर उस इलाक़े में भारी संख्या में पुलिस बल मौजूद थे, जो सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त थे। उक्त व्यक्ति ने ‘आजतक’ चैनल का विरोध करते हुए उसके पत्रकार को याद दिलाया कि वो एक नेशनल चैनल के पत्रकार हैं और इसीलिए उन्हें जिम्मेदारी निभाते हुए झूठ नहीं बोलना चाहिए। उसने ‘आजतक’ के पत्रकार को अफवाह न फैलाने की सलाह दी। हालाँकि, पत्रकार सवालों से बचता रहा और उसे कोई जवाब नहीं सूझा तो वो भाग खड़ा हुआ।
उक्त नागरिक ने यह भी बताया कि उस इलाक़े में अतिरक्त पुलिस बल के लिए कण्ट्रोल रूम को भी फोन किया गया है, साथ ही पुलिस ने आँसू गैस के गोले छोड़ कर स्थिति को नियंत्रित किया। अब सवाल उठता है कि आख़िर इतना बड़ा मीडिया संस्थान होने के बावजूद ‘इंडिया टुडे’ और ‘आजतक’ इस तरह दिल्ली पुलिस को बदनाम करने के पीछे क्यों पड़ा है?