प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़ी खबरों में वामपंथी एंगल घुसेड़े बिना प्रकाशित करने को लेकर लिबरल मीडिया गिरोह NewJ वेबसाइट के पीछे पड़ा है। हाल में अलजजीरा, द वायर, न्यूज क्लिक जैसी वामपंथी साइट्स पर NewJ को टारगेट करते हुए एक आर्टिकल प्रकाशित किया गया। इसका शीर्षक है- रिलायंस पोषित कंपनी भाजपा के अभियान को फेसबुक पर कैसे कर रही है बूस्ट (How A Reliance Funded firm boosts BJP’s campaign on Facebook)। इसके बाद आर्टिकल के अंदर ‘न्यूजे’ साइट के कुछ स्क्रीनशॉट लगाकर ये साबित करने की कोशिश की गई है कि ये साइट बीजेपी का प्रचार कर रही है।
इस आर्टिकल के शीर्षक को सार्थक बनाने के लिए केवल भाजपा संबंधी विज्ञापनों की चर्चा की गई है, जिससे ऐसा लगे कि केवल बीजेपी ही अपनी छवि बनाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करती है। इन लेखों में खास बात ये है कि भाजपा और विज्ञापन दिखाने वाली साइट पर सवाल उठाते हुए ये अन्य राजनैतिक पार्टियों के विज्ञापनों की बातें नहीं करते। भारत में 2017 से 2020 के बीच विशुद्ध रूप से राजनीतिक विज्ञापनों का विश्लेषण करते हुए वेबसाइट पर जो डेटा मिलता है, उससे पता चलता है कि वास्तव में भाजपा (2808) की तुलना में कॉन्ग्रेस (3744) के विज्ञापन अधिक हैं। वैसे ये आँकड़े सत्यापित नहीं हैं, लेकिन इनसे यह तो स्पष्ट है कि कॉन्ग्रेस के विज्ञापन बीजेपी से करीब 35 फीसद ज्यादा हैं।
भाजपा के प्रचार पर आपत्ति, कॉन्ग्रेस के विज्ञापनों पर बात तक नहीं
आप इन साइट्स की निष्पक्षता का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि भाजपा संबंधी विज्ञापनों पर शोर मचाने वाली इन वामपंथी साइट्स ने कहीं भी उन वेबसाइटों का जिक्र नहीं किया है जो कॉन्ग्रेस या अन्य पार्टियों के ऐड चलाती हैं। इसके अलावा इन्होंने उन सामग्रियों पर भी पर्दा गिराए रखा जो मोदी विरोधी हैं और न्यूजे वेबसाइट द्वारा ही चलाई जा रही थी। ये बात भी ध्यान देने वाली है कि खुद जिन साइट्स ने ये आर्टिकल लिखे हैं वो मोदी विरोधी कंटेंट का प्रचार-प्रसार करती हैं।
कुछ ऐड देखिए जिसमें प्रधानमंत्री पर कोरोना के दौरान कुप्रबंधन के आरोप लगाने के लिए इन साइट्स ने मेहनत की और फिर उन्हें फेकबुक पर प्रमोट कराया। एक वीडियो में यहाँ वामपंथी लेखिका अरुंधति रॉय का साक्षात्कार है। इसमें रॉय बता रही हैं कि कैसे नफरत और साम्प्रदायिकता का प्रचार हुआ और कैसे इसी को फैलाने के लिए लॉकडाउन का इस्तेमाल भी हुआ। दिलचस्प बात ये है कि इन विज्ञापनों को जहाँ प्रमोट किया गया उन जगहों में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बंगाल हैं। अगर याद हो तो लॉकडाउन के समय यहीं के प्रवासी मजदूरों की चर्चा ज्यादा थी।
पीएम मोदी विरोधी प्रोपेगेंडा फैलाने में सिर्फ अलजजीरा ही सक्रिय नहीं है। नजर मारेंगे तो स्क्रॉल, द वायर, द प्रिंट, न्यूज क्लिक, न्यूज लॉन्ड्री हर वामपंथी साइट आपको पीएम मोदी विरोधी कंटेट परोसता नजर आएगा और फिर इनकी शिकायतें ये भी होंगी कि कोई साइट पीएम मोदी के प्रचार वाली खबर को कैसे प्रमोट कर सकती है।
दिलचस्प बात ये है कि इन साइट्स पर साल 2019 के समय तमाम भाजपा विरोधी विज्ञापन चलाए गए थे वो भी उस समय जब लोकसभा चुनाव थे। राहुल गाँधी के एक इंटरव्यू वाला कंटेंट प्रमोट किया गया था, जिसमें वह जनता को ये बता हे थे कि भाजपा को जनता वापस नहीं चाहती।
ये अकेला उदाहरण नहीं है जो आपको ये बताने के लिए दिया जा रहा है कि आखिर पीएम मोदी के विज्ञापन वाली खबरों को प्रमोट होता देख तिलमिलाई साइट्स का अपना खुद का रुख क्या है।
2019 में चुनावों के समय ऐसे तमाम आर्टिकल देखे गए जिन्हें साइट्स ने प्रमोशन पर लगाया था। जैसे एक में द वायर ने सवाल किया था कि ये पीएम मोदी की लहर है या फिर पैसों की लहर। एक वीडियो बनाई गई जिसमें भाजपा की आमदमी कितनी थी बस यही समझाया गया।
Newclick और NewsLaundary का प्रोपेगेंडा
इसी प्रकार न्यूजक्लिक और न्यूज लॉन्ड्री भी पीछे नहीं है। इनका पक्षपात भी आप इनकी साइट पर मौजूद खबरों और उसके प्रमोशन को देख कर लगा सकते है। इन्होंने भी कोविड दौर में मोदी सरकार की छवि धूमिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी और ये समझाया कि कैसे यूएसए और ब्राजील की तरह भारत का नेतृत्व भी एक ऐसा नेता कर रहा है जिसे अपनी छवि ज्यादा प्रिय है। पड़ताल में ये पता चलता है कि ये ऐड जून-जुलाई 2020 में चलाए गए थे जब बिहार के चुनाव आसपास थे। स्क्रीनशॉट में देख सकते हैं कि साइट ने इस कंटेंट को प्रमोट करते हुए टारगेट ऑडियंस में बिहार भी चुना था जो कि दूसरे नंबर पर हैं।
कुल मिलाकर यदि निष्कर्षों पर बात की जाए तो स्पष्ट बात ये है कि हर साइट अपनी राजनैतिक विचारधाराओं के अनुरूप उन पर ऐड चलाता और चलवाता है। फिर भी अगर ये लोग निष्पक्षता का मुद्दा उठाकर किसी साइट को घेरते हैं, तो ये बात भी साफ हो कि जो मीडिया संस्थान भाजपा विरोधी और मोदी विरोधी कंटेंट का प्रचार करती हैं, उन्हें लेकर कहीं से कहीं ये सबूत नहीं मिलते हैं कि वो अपनी खबरों में पीएम मोदी के, भाजपा के या भारत सरकार के अच्छे कामों को निष्पक्ष तौर से अपने पाठकों के सामने रखती हों।
NewJ के तरह-तरह के कंटेंट
रही बात न्यूजे की तो ये बात मालूम हो कि जिस साइट का कनेक्शन सिर्फ रिलायंस के साथ देखकर इतनी रिसर्च की गई वो न्यूज साइट और उसके कंटेंट देखने पर पता चलता है कि ये लोग कॉन्ग्रेसी नेता, आप नेता, शिवसेना नेता, यहाँ तक कि AIMIM नेता से जुड़े कंटेंट का भी प्रचार कर चुके हैं। नीचे स्क्रीनशॉट प्रमाण के तौर पर पेश हैं। जिन्हें न्यूजे के संस्थापक शलभ उपाध्याय ने भी उजागर किया है।
इसके अलावा जो आरोप उन पर पीएम मोदी से जुड़ी खबरों का प्रचार करने के लगे हैं उनकी सच्चाई आप फिर कुछ स्क्रीनशॉट्स में देखिए जो बताते हैं कि ये साइट वो कंटेंट भी डालती है जो न पीएम मोदी के पक्ष में होती है और न ही भाजपा के। एक रिपोर्ट में काशी में गंगा नदी के पानी को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं जिसका रंग हरा है और ये पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है। इसी तरह यूक्रेन से जुड़ी रिपोर्ट जिसमें वहाँ फँसे भारतीय बच्चे मदद माँग रहे हैं।
तो, इसलिए ये बात साफ है कि NEWJ ने एक निष्पक्ष रवैया अपनाते हुए खबरें लिखी हैं। हर मीडिया और न्यूज कंपनी चाहती है कि वो ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास अपने कंटेंट के बूते पहुँचे फिर चाहे वो भाजपा से जुड़ा कंटेंट हो, कॉन्ग्रेस से जुड़ा या सामाजिक मुद्दों से जुड़ा। वे उसे प्रमोट करते ही हैं । मगर, अलजजीरा, स्क्रॉल, द प्रिंट, द वायर खुलकर एक निश्चित पार्टी का विरोध करते हैं और फिर दूसरी साइट्स के विरोध में इसलिए आर्टिकल भी लिख देते हैं कि उन्होंने उस पार्टी, उस नेता से जुड़ी सकारात्मक खबर कैसे दिखाई जिसके विरोध में वो पूरा गुट इकट्ठा होकर नकारात्मक माहौल बना रहा है और उसी से अपना ट्रैफिक भी जुटा रहा है।