Friday, November 15, 2024
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संसद में फेंका गया जो रंगीन धुएँ वाला कनस्तर उसे दिखाने के लिए लड़ बैठे पत्रकार, सबूत पुलिस को देने की बजाय बना दिया तमाशा: लोगों को याद आई राजदीप की ‘गिद्ध पत्रकारिता’

बता दें कि पत्रकारों की ये लड़ाई एक 'सबूत' को दिखाने के चक्कर में हुई, स्मोक बम। उस छोटे से स्मोक बम के लिए ये लड़ बैठे। 'ब्रेकिंग', 'एक्सक्लूसिव' और 'सबसे पहले' के चक्कर में इन पत्रकारों ने पत्रकारिता का बड़ा गर्क कर दिया।

संसद भवन के लोकसभा सदन में बुधवार (13 दिसंबर, 2023) को 2 लोग घुस गए, जिनके हाथों में धुआँ छोड़ने वाला उपकरण था। इस दौरान सांसदों ने उन्हें पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया। इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। एक संदिग्ध के जूते में आँसू गैस के कनस्तर पाए गए हैं। वहीं ट्रांसपोर्ट भवन के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे एक पुरुष और एक महिला को भी हिरासत में लिया गया है। 2001 के संसद भवन के हमले की 22वीं बरसी के दिन ये घटना हुई है

संसद भवन में पत्रकारों की लड़ाई

वहीं इस घटना के बाद रंग-बिरंगे धुएँ वाले उस छोटे से कनस्तर को दिखाने के लिए मीडिया वाले आपस में भिड़ गए, जिसे लेकर हमलावर आए थे। वीडियो में देखा जा सकता है कि ‘TV9 भारतवर्ष’ के पत्रकार अपने चैनल के लिए इस घटना की जानकारी देते रहते हैं, तभी अचानक एक अन्य पत्रकार आकर उनकी माइक पकड़ कर उन्हें हटाने लगता है। साथ ही वो बार-बार ‘बहुत दिखा लिए’ भी कह रहा होता है। इस प्रकरण के दौरान फ्रेम में ‘न्यूज़ 18’ की पल्लवी घोष भी दिखाई देती हैं। ‘TV9 भारतवर्ष’ के पत्रकार को हटाने के लिए अन्य पत्रकार भी एकजुट हो जाते हैं।

इसके बाद उन पत्रकारों की आपस में धक्का-मुक्की शुरू हो जाती है। उक्त पत्रकार बार-बार कवरेज फिर से शुरू करने की कोशिश करता है, लेकिन उसे फिर से रोका जाता है। फिर वो स्मोक बम दिखाता है। अंत में वो हाँफते-हाँफते अपनी कवरेज पूरी करता है। अंत में फिर से पल्लवी घोष उसे रोकने की कोशिश करती हैं। ये वीडियो ‘TV9 भारतवर्ष’ पर लाइव चल रहा था। अंत में एंकर ने किसी तरह से इस मामले को सँभाला टीवी स्क्रीन पर अन्य जगह के वीडियो भी दिखने लगे।

इस घटना का एक अन्य वीडियो भी सामने आया है, जिसमें कुछ लोग अपने फोन से पत्रकारों की इस लड़ाई का वीडियो बना रहे हैं और साथ ही हँस भी रहे होते हैं। इसमें भी देखा जा सकता है कि एक पत्रकार दूसरे पत्रकार की कवरेज के बीच में आकर व्यवधान पैदा कर रहा है। साथ ही वो पीले रंग के एक स्मोक बम को हाथ में लेने के लिए भी आपस में लड़ते हैं। लोग ‘एक्सक्लूसिव’ के लिए पत्रकारों के इस लड़ाई-झगड़े की सोशल मीडिया पर आलोचना कर रहे हैं।

बता दें कि पत्रकारों की ये लड़ाई एक ‘सबूत’ को दिखाने के चक्कर में हुई, स्मोक बम। उस छोटे से स्मोक बम के लिए ये लड़ बैठे। ‘ब्रेकिंग’, ‘एक्सक्लूसिव’ और ‘सबसे पहले’ के चक्कर में इन पत्रकारों ने पत्रकारिता का बड़ा गर्क कर दिया। सबूत तो पुलिस व जाँच एजेंसियों के पास होने चाहिए थे, इसके लिए पत्रकार क्यों लड़ रहे भला? पत्रकारिता अब इतनी गिर गई है कि किसी घटना के बाद सबूत हाथ में लेकर दिखाने के लिए कैमरे के सामने ही लड़ाई हो रही है।

राजदीप सरदेसाई की ‘गिद्ध पत्रकारिता’

क्या यही वो ‘गिद्ध पत्रकारिता’ है, जिसका उदाहरण राजदीप सरदेसाई ने कभी पेश किया था? संयोग देखिए कि वो 2001 में 13 दिसंबर की ही तारीख़ थी। उस दिन संसद भवन पर आतंकियों ने हमला बोल दिया था। राजदीप सरदेसाई ने उस दौरान का एक वाकया शेयर किया था। इसमें संसद भवन के सुरक्षाकर्मी, दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल 9 लोग वीरगति को प्राप्त हो गए थे। संसद पर हमले को आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने अंजाम दिया था और इस हमले का मास्टरमाइंड था अफजल गुरु।

पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने संसद पर हुए हमले को ‘अ ग्रेट डे (एक महान दिन)’ कहा था। सरदेसाई ने देश की संसद पर हुए हमले पर बात करते हुए कहा था कि कैसे वह संसद के बगीचे में पिकनिक मना रहे थे, जब आतंकी पार्लियामेंट पर हमला कर रहे थे। उन्हें कहते हुए सुना गया था कि पत्रकार गिद्धों की तरह व्यवहार करते हैं। सरदेसाई दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले को याद करते हुए बता रहे थे कि वह अपनी टीम के साथ पिकनिक की तैयारी कर रहे थे।

वह और उनकी टीम सुबह करीब 11 बजे संसद में दाखिल हुई। टीम के संसद में प्रवेश करने के कुछ ही मिनटों के भीतर उन्होंने गोलियों की आवाज सुनी। उन्होंने अपने सहयोगी से कहा कि वह गार्ड को गेट बंद करने के लिए कहे। फिर सरदेसाई एक लंबी मुस्कराहट के साथ बताते हैं कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि कोई अन्य चैनल क्रू प्रवेश न कर सके। उन दिनों कम चैनल थे और सरदेसाई एक्सक्लुसिव स्टोरी मिलने को लेकर उत्साहित थे।

हालाँकि, ताज़ा मामले में पुलिस पर भी सवाल उठते हैं कि उसने आखिर मीडिया से सबूत क्यों नहीं लिया? किसी मीडिया वाले के हाथ सबूत लग गया और वो उसे लेकर कैमरे के सामने दिखाने लगा, ये तो सबूतों के साथ छेड़खानी हुई? पुलिस को तो पत्रकारों से वो सबूत ले लेना चाहिए था। फिंगर प्रिंट्स से लेकर तमाम चीजें कोर्ट केस के दौरान काम आती हैं। इसीलिए, यहाँ मीडिया वाले तो मजाक के पात्र बने ही लेकिन पुलिस ने भी सबूत उनसे लेने के लिए कुछ नहीं किया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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