चिदबंरम को आज, 21 अगस्त, 2019 को देर रात सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया। कोर्ट से बेल पाने की बहुत कोशिश हुई थी दिन में, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब लिस्ट में नंबर आएगा तो आम आदमी की तरह सुनवाई होगी। सीबीआई के पास अधिकार भी थे, मौका भी, उन्होंने चिदंबरम को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया।
इस पूरे प्रकरण पर एनडीटीवी को लाइव देखता रहा। एक घंटे तक बर्दाश्त करने के बाद जो जानकारियाँ मिलीं वो यह थीं कि, बकौल रवीश कुमार, चिदंबरम भाजपा में शामिल हो जाते तो इतना सब देखने से बच जाते। रवीश जी की ये बात बिलकुल सही है। भाजपा ने वाकई कई लोगों पर पहले खूब आरोप लगाए, बाद में शांत हो गई जब वो उसकी पार्टी में शामिल हो गए। ये गलत है, लेकिन यही राजनैतिक वास्तविकता भी है।
आगे, रवीश जी ने खूब मजे लिए, दुखी भी दिखे, आश्चर्यचकित भी। दुखी इस बात पर कि इसे टीवी का इवेंट बना दिया गया। ये बात मुझे कोई बता दे कि आपके पास अपना शो है, बहुत बड़े पत्रकार हैं, क्या आप अपने शो तक को कैसे चलाएँ, उस पर निर्णय नहीं ले सकते? या आप खुद भी लाइव कमेंट्री करेंगे और ज्ञान देंगे कि ‘बताइए, एक अरेस्ट ही होना था, सब लोग इसी को दिखा रहे हैं। मैं तो घंटों तैयारी कर के कुछ और करने आया था। मेहनत बेकार हो गई।’ घंटों की तैयारी थी, तो वही करते। जब खबर आ जाती कि गिरफ्तारी हो गई, या नहीं हुई तो लाइव शो में बोल देते कि क्या हुआ।
यही सब वो मौके हैं जहाँ व्यक्ति खुद को मॉरल हाय ग्राउंड पर खड़ा दिखाता है लेकिन उसे भी उसी कीचड़ में लोटना है जिसमें बाकी सब हैं।
आगे जब एनडीटीवी संवाददाता नीता शर्मा ने बताना शुरु किया तो उनकी पूरी रिपोर्टिंग में मुद्दे से ज़्यादा जोर इस बात पर रहा कि वो चिदंबरम नाम के पहले मिस्टर तो हर बार लगाएँ ही, साथ ही, दुनिया को यह भी बताती रहें कि उन्होंने सीबीआई को खूब कवर किया है लेकिन कभी उन्हें दीवार फाँद कर, एक राज्यसभा सांसद, एक पूर्व गृह मंत्री, एक पूर्व वित्त मंत्री को ऐसे गिरफ्तार करते नहीं देखा।
संवाददाता ने बार-बार बताया कि सीबाआई दरवाजे के खुलने का इंतजार भी तो कर सकती थी। सही बात है। अगर वो लोग इंतज़ार करते तो क्या पता मिस्टर चिदंबरम केस की फाइलें लेकर स्वयं आते और कहते कि ‘लीजिए पढ़ लीजिए, आप लोग यहाँ क्यों आए, मुझे फोन कर लिया होता, मैं स्वयं आ जाता!’
जब रवीश गोदी मीडिया की बात करते हैं तो उसकी प्रकृति ऐसी ही होती है। किसी पर आरोप हैं, और आपकी रिपोर्टिंग का पूरा भार उसे ‘मिस्टर’ और ‘पूर्व मंत्री’ बताने में लगा हुआ है जैसे कि ऐसे लोगों को कानून में कोई अलग व्यवस्था दी गई हो। मुझे याद है कि कारवाँ मैगज़ीन और ‘द वायर’ में छपी तीन फर्जी खबरों पर रवीश ने कितने प्राइम टाइम किए थे। वहाँ भी इसी तरह के सम्माननीय लोग शामिल थे, कोई केस नहीं था, लेकिन रिपोर्टिंग में कहा जाता रहा कि जाँच कराने में क्या जाता है। ये कॉन्ग्रेस के समय में मिस्टर-मिस्टर क्यों होने लगा?
लोग ऐसे अनजान बन रहे हैं जैसे उन्हें पहले की बातें याद ही नहीं हों कि चिदम्बरम के गृह मंत्री रहते अमित शाह के साथ क्या हुआ था। तब बात होने लगती है कि क्या ऐसे ही होता रहेगा? अंतर बस यही है कि चिदम्बरम पर तीन मामले हैं, सुप्रीम कोर्ट में भी इस पर चर्चा हुई और कानूनी रूप से दायरे में रह कर ही कार्रवाई की गई।
वो पूर्व गृह मंत्री हों या सड़क किनारे झालमूढ़ी का ठेला लगाने वाले, गेट नहीं खोलेंगे तो दीवार फाँदना ही एक उपाय है। अगर एनडीटीवी को सीबीआई के दीवार फाँदने पर मर्यादा और ‘तेलगी को भी सम्मान से लाया गया था’ याद आ रहा है तो उसे यह बात भी तो याद रखनी चाहिए पूर्व गृह मंत्री को कानून का सम्मान करते हुए, संविधान पर, कोर्ट पर, सरकारी संस्थाओं पर विश्वास दिखाते हुए, एक उदाहरण पेश करना चाहिए था।
उसके बाद रवीश कुमार अपनी चिरपरिचित हें-हें-हें वाली हंसी के साथ बोलने लगे कि ‘इंद्राणी मुखर्जी तो स्वयं ही हत्या के मामले में आरोपित है, उसकी बात पर चिदंबरम को गिरफ्तार किया जा रहा है।’ आरोपित तो आपके मालिक भी हैं रवीश जी, उन पर जाँच होती है, बुलाया जाता है तो आप ‘प्रेस फ्रीडम पर हमला’ कहने लगते हैं। आरोपित होने से क्या उस व्यक्ति की हर बात झूठी हो जाती है? ये आप तय करेंगे या कोर्ट, या कॉमन सेंस?
ये सब देख कर आदमी अपना सर ही पीट ले कि पत्रकारिता के नाम पर ये किस तरह की ओपनियिनबाजी चल रही है? गेट पर इंतजार कर सकती थी सीबीआई, उन्हें ऐसे क्यों अरेस्ट किया, सुबह में कर लेते, उसकी बात पर क्यों अरेस्ट किया, ऐसे मामलों में तो बीस-बीस साल कुछ होता नहीं… मतलब, कोर्ट में केस खिंचता है तो क्या केस बनना ही बंद हो जाए?
जब बात पोलिटिकल वेन्डेटा, या राजैनतिक बदले की भावना से ही प्रेरित दिख रही है तो उस वास्तवकिता को स्वीकारने में क्या समस्या हो रही है कि जिसके पास सत्ता होती है, वो अगर अपराध साबित न भी कर पाए, लेकिन विरोधियों को पाँच दिन जेल में तो रख ही सकता है। मैं हैरान हो जाता अगर रवीश कुमार अमित शाह के जेल जाते वक्त भी इसी तरह की हल्के-फुल्के सत्संग टाइप के शब्दों के साथ कवर कर रहे होते।
जिस तरह से इस पूरे प्रकरण में एनडीटीवी ने माहौल बनाया है, जैसे इन लोगों ने एक व्यक्ति के नेता होने, मंत्री होने, राज्यसभा सांसद होने पर ज़ोर दिया है लगता तो यही है कि कल अगर प्रणय रॉय, राधिका रॉय आदि को सरकारी संस्थाएँ उठा कर ले जाएँ तो ये कह सकें कि जब पूर्व गृह और वित्त मंत्री को नहीं छोड़ा तो हम तो फिर भी मीडिया के लोग हैं। विक्टिम कार्ड बनाने के लिए पहले ही अप्लाय कर दिया है। ये कहते-कहते रवीश जी कूद जाएँगे कि जब प्रणय रॉय को पकड़ लिया, मीडिया को पकड़ लिया तो आप लोगों की क्या बिसात है।
जो व्यक्ति भ्रष्टाचार जहाँ नहीं था, उस राफ़ेल मामले में ‘जाँच करवाने में क्या जाता है’ कह कर पागल होता रहा, वो व्यक्ति एक एजेंसी को पूछताछ के लिए, घोटालेबाजी का इतिहास सर-मुँह-कमर-कंधे पर लेकर घूमने वाली पार्टी के नेता, पी चिदंबरम को घर से उठाने पर ऐसा कवरेज कर रहा है! फिर जब लोग इनके पोस्ट पर घेरते हैं तो ये कहने लगते हैं कि ट्रोल छोड़ दिया भाजपा वालों ने! अरे भाई, वो ट्रोल नहीं हैं, वो आपके द्वारा एक ही मुद्दे पर दो तरह की रिपोर्टिंग करने की जादूगरी के करतब को देखने वाले लोग हैं।