अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स के फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की तालिबान ने हत्या कर दी। लेकिन, सोशल मीडिया का गिरोह विशेष इसके लिए तालिबान की आलोचना की बजाए भारत के दक्षिणपंथियों और ‘संघियों’ को गाली देने में लगा है। ऐसा प्रतीत कराया जा रहा है, जैसे उनकी हत्या भारत में हुई हो, वो भी हिन्दुओं द्वारा। NDTV के पत्रकार रवीश कुमार ने भी दानिश सिद्दीकी की हत्या पर तालिबान का नाम तक नहीं लिया।
दरअसल, रवीश कुमार ने दानिश सिद्दीकी की हत्या के बाद शोक जताते हुए एक फेसबुक पोस्ट किया। इसमें उन्होंने दानिश सिद्दीकी को सलाम करते हुए उन्हें भारतीय पत्रकारिता को साहसिक मुकाम पर ले जाने वाला करार दिया। साथ ही उन्हें ‘शहीद’ बताते हुए लिखा कि उन्होंने हमेशा मुश्किल मोर्चा ही चुना। किसी के लिए शोक-संतप्त होना ठीक है, लेकिन ऐसे ही किसी को शहीद बता देने का क्या औचित्य है?
दानिश सिद्दीकी एक प्राइवेट संस्थान के कर्मचारी थे, जिनकी फोटोज हजारों में बिकती थीं। अब भी हिन्दुओं की जलती चिताओं की तस्वीरें बिक रही हैं। वो एक प्राइवेट कंपनी के लिए काम करते हुए अफगानिस्तान गए थे। उन्हें भारत ने मोर्चे पर नहीं लगाया था। वो भारतीय सशस्त्र बल में नहीं थे। वो कोई सरकारी कर्मचारी नहीं थे जो ड्यूटी के दौरान मारे गए। इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी कि वो गोलीबारी के बीच जाकर फोटो खींचें।
रवीश कुमार जैसे लोग वही हैं, जो पुलवामा हमले में साजिश खोजते हैं। आतंकियों की नहीं, किसकी वो सबको पता है। जब सचमुच भारतीय जवान बलिदान होते हैं तो उनके लिए ये शोक नहीं जताते। तब ये ‘शहीद’ जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करते। लेकिन, अगर इनके गिरोह का कोई व्यक्ति रुपए के लिए काम करता हुआ कहीं जाकर मारा जाए तो वो ‘शहीद’ हो जाता है। हर एक मृत्यु दुःखद है और टाली जानी चाहिए, लेकिन सड़क दुर्घटना से लेकर फोटो खींचते हुए मारे जाने वाले लोगों तक, सभी को ‘शहीद’ नहीं कहा जा सकता।
रवीश कुमार ने लिखा, “बंदूक से निकली उस गोली को हज़ार लानतें भेज रहा हूँ जिसने एक बहादुर की ज़िंदगी ले ली।” आपको गुरमेहर कौर याद है? उनके पिता की हत्या पाकिस्तानी फौज ने की थी। वो भारतीय सेना में थे। गुरमेहर कौर ने सोशल मीडिया पर लिखा था कि उनके पिता को युद्ध ने मारा, पाकिस्तान ने नहीं। हालाँकि, इसके बाद कई बलिदानी सैनिकों के परिजनों ने उनका विरोध करते हुए कहा कि इसके लिए पाकिस्तान ही जिम्मेदार है।
यही हाल रवीश कुमार का है। वो ‘बंदूक से निकली गोली’ को दोष दे रहे हैं, जो एक निर्जीव वस्तु है। बंदूक तब तक नहीं चलती, जब तक कोई उसका ट्रिगर नहीं दबाता। गोली तब तक नहीं निकलती जब तक उसे किसी ने बंदूक में डाली नहीं हो। बंदूक और गोली किसी के पास अपने-आप चल कर नहीं आते, जब तक वो उसे लेकर न आया हो। हमेशा ऐसी गोलियों के बीचे एक बंदूकधारी होता है।
रवीश कुमार यहाँ बंदूक और गोली को इसलिए दोष दे रहे हैं, क्योंकि वो तालिबान का नाम नहीं लेना चाहते। उन्होंने ये जिक्र कर दिया कि दानिश सिद्दीकी ने जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी, लेकिन उनकी हत्या करने वाले तालिबान का नाम तक न लिया। तालिबान का नाम लेने से इस्लामी आतंकवाद की बात होगी, इसीलिए शायद उन्होंने अपने ही गिरोह के व्यक्ति के हत्यारों के ऊपर पर्दा डालने की कोशिश की।
सोशल मीडिया में कुछ लोग इस तरह की तस्वीरें भी शेयर कर रहे हैं, जिसमें रवीश कुमार हाथ में एक प्लाकार्ड लेकर खड़े हैं। इस पर अंग्रेजी में लिखा हुआ है, “दानिश सिद्दीकी को तालिबान ने नहीं, बंदूक ने मारा।” हालाँकि, हमने पाया कि ये तस्वीरें फर्जी हैं क्योंकि रवीश कुमार ने इतने लंबे-लंबे बाल नहीं रखे हुए हैं और उनके हाथ वैसे नहीं हैं, जैसा इस चित्र में दिख रहा। साथ ही वो इस तरह के कपड़े भी नहीं पहनते।
सूत्रों के हवाले से ताज़ा खबर ये चलाई जा रही है कि तालिबान ने दानिश सिद्दीकी के शव को रेड क्रॉस को सौंप दिया है। हैरानी की बात नहीं होगी, अगर गिरोह विशेष इसे तालिबान की दरियादिली बता कर पेश करे। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से लेकर भारत के विदेश सचिव हर्ष शृंगला तक ने उनकी हत्या की निंदा की है। काबुल में भारतीय दूतावास उनके शव को वापस लाने के लिए प्रयत्न कर रहा है।