Monday, December 23, 2024
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आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी: रवीश ने पाँच साल पहले ये ज्ञान दिया था, अब पलटदास काहे बन रहे?

सोशल मीडिया पर रवीश कुमार का साल 2015 का लेख अब दोबारा शेयर होना शुरू हुआ है। इस लेख को आगे बढ़ा कर उन लोगों से इसे पढ़ने की अपील की जा रही है कि जो प्रदर्शनकारियों की माँग को उचित बता रहे हैं और रवीश कुमार को सच्चाई दिखाने वाला पत्रकार कह रहे हैं।

नए कृषि कानूनों के विरोध में धरनास्थल पर बैठे किसानों के समर्थन में पिछले दिनों पत्रकार रवीश कुमार अपने कई प्राइम टाइम कर चुके हैं। इन प्राइम टाइम में रवीश कुमार की भाषा केंद्र सरकार पर निशाना साधने वाली और किसानों की माँगों का समर्थन करने वाली रही।

हालाँकि, ये बात और है कि यही रवीश कुमार साल 2015 में इन किसानों की हालात पर चिंता जताते हुए बता चुके थे कि मंडियों में किसान आढ़ती के चंगुल में फँसा हुआ है, जहाँ उन्हें गुलाम बनाया जा रहा है।

सोशल मीडिया पर रवीश कुमार का साल 2015 का लेख अब दोबारा शेयर होना शुरू हुआ है। इस लेख को आगे बढ़ा कर उन लोगों से इसे पढ़ने की अपील की जा रही है कि जो प्रदर्शनकारियों की माँग को उचित बता रहे हैं और रवीश कुमार को सच्चाई दिखाने वाला पत्रकार कह रहे हैं।

सोशल मीडिया के सक्रिय यूजर अंकुर सिंह इसे साझा करते हुए लिखते हैं, “रवीश कुमार का 2015 का ब्लॉग- ‘आढ़ती और बैंक के बीच फँसा हुआ है किसान, मंडी में बनाए जाते हैं ग़ुलाम।’ रवीश कुमार ,कॉन्ग्रेस की दलाली करने से फुर्सत मिले तो आप भी एक बार पढ़ लेना।”

बता दें कि रवीश कुमार के इस लेख में उन्होंने किसानों की हालत पर चिंता जताई थी और खेती को संकट में बताया था। इस लेख में उन्होंने अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग के अनुभवों के आधार पर मंडियों को दम भर के कोसा था। उन्होंने मंडी में आढ़तियों के पास ऊपज बेचने की प्रक्रिया और उनके कारण शोषण झेल रहे किसानों पर अपनी बात रखी थी। 

अब इस लेख में रवीश कुमार के ही शब्दों को पढ़िए और अंदाजा लगाइए कि आज वरिष्ठ पत्रकार अपना प्रोपगेंडा चलाने में कैसे अपने अनुभवों की हकीकत को भुला चुके हैं। इस लेख में लिखा है “एक नज़र में हम इस आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी। जब मंडी है, वहाँ किसान को आकर अनाज बेचना है और खरीदने के लिए सरकारी एजेंसी है तो स्थायी और जातिगत आधार पर ये एजेंट क्यों हैं।”

लेख में आगे रवीश कुमार ने बैंक और आढ़ती के बीच किसान की हालत पर गौर करवाया था और कहा था कि बैंक के ऊपर किसान आढ़ती को कर्जा लेने के लिए चुनते हैं। क्योंकि वह पर्सनल लोन दे देता है, मगर साथ ही रवीश कुमार ने लिखा था:

“आढ़ती से सिर्फ पैसा आसानी से मिलता है लेकिन वसूली के नियम बेहद सख्त हैं। ब्याज़ दर बैंकों से बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं, एक किसान ने बताया कि अगर दो लाख रुपए कर्ज लिया है तो एक साथ चुकाना होगा। आधा चुकाएंगे तो आढ़ती कर्ज़ की पूरी राशि पर अलग से ढाई प्रतिशत और ब्याज़ ले लेगा। इस तरह से सूद मूल से ज्यादा हो जाता है। जब देश के नेता कहते हैं कि साहूकारों से किसानों को मुक्त कराएंगे तो पूरा सच नहीं बोलते। उन्हें पता होता है कि साहूकार कौन है। आढ़ती ही वो साहूकार हैं जिसके कई सदस्य इन्हीं पार्टियों में बड़े बड़े नेता होते हैं। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही।”

लेख के जरिए लोगों को टीवी बंद करके मंडी जाने की सलाह देने वाले रवीश कुमार आज इतना बदल गए हैं कि वो अपने किसान आंदोलन के प्राइम टाइम को यूट्यूब का नाम बता कर देखने को कह रहे हैं और पूछ रहे हैं कि आखिर सरकार किसानों की माँग सुन क्यों नहीं लेती। शायद रवीश कुमार ने नए कृषि कानूनों का अध्य्यन नहीं किया या वो ये मानने को तैयार नहीं है कि एक तरह से उन जैसों की माँग को ही केंद्र सरकार ने पूरा किया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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