ब्रिटेन की एक टीवी प्रजेंटर हैं समीरा अहमद। BBC में काम करती हैं। लेकिन परेशान हैं। परेशानी इसलिए क्योंकि उन्हें BBC रोज़गार तो दे रहा है लेकिन उसके बदले जो मेहनताना मिलता है, उसमें भेदभाव है। यह भेदभाव पुरुषों के मुकाबले संस्थान (बीबीसी) में महिलाओं को लगभग बराबर काम के लिए बहुत ही कम सैलरी को लेकर है। अब इसी मामले को लेकर समीरा अहमद BBC को कोर्ट में घसीट लाई हैं।
समीरा अहमद के इस कदम के समर्थन में नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स से लेकर यूनाइटेड किंगडम के कई व्यापर संगठन भी आ गए हैं। और तो और, समीरा के इस फैसले को देखते हुए अब तक BBC की जिन महिला कर्मचारियों ने किसी कारण से आवाज नहीं उठाई थी, वो भी खुल कर सामने आ रही हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि BBC की लगभग एक दर्जन महिला कर्मचारियों ने ट्रिब्यूनल के सामने असमान सैलरी (लिंग के आधार पर, जबकि काम बराबरी के स्तर का) को लेकर अपनी बात रखी है।
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समीरा अहमद साल 2012 से ही बीबीसी के कार्यक्रम ‘न्यूज़वॉच’ का संचालन करती आ रही हैं। उन्होंने पूर्व में इसी संस्थान के लिए रेडियो और टेलीविजन के कई कार्यक्रमों में भी काम किया है। काफी समय से बीबीसी में अपनी सेवाएँ देने वालीं 51 वर्षीय समीरा का आरोप है कि उनके संस्थान बीबीसी में महिलाओं और पुरुषों में भेद-भाव बरता जाता है। उन्होंने बताया कि उन्हें अपने पुरुष सहकर्मी जेरेमी वाइन के मुकाबले 85 प्रतिशत कम तनख्वाह दी जाती है। बता दें कि जेरेमी भी समीरा की तरह ही “पॉइंट्स ऑफ़ व्यू” नामक एक शो होस्ट करते हैं।
अपने दावे को पुख्ता करने के लिए समीरा ने इस सम्बन्ध में आँकड़े भी पेश किए। नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के मुताबिक वाइन को 2008 से 2018 के बीच प्रत्येक शो के लिए 3000 पाउंड्स (लगभग 2.72 लाख रुपए) दिए गए। हालाँकि 2018 के जनवरी में वाइन को मिलने वाली प्रत्येक शो की पेमेंट कम कर 1300 पाउंड्स (1.18 लाख रुपए) कर दिया गया था। सैलरी में इस कटौती के बाद वाइन ने उसी साल जुलाई में इस्तीफ़ा दे दिया। इसके विपरीत समीरा ने बताया कि 2012 से ही उन्हें 440 पाउंड्स (करीब 40000 रुपए) प्रति शो की पेमेंट की जा रही है, हालाँकि 2015 में इसे बढ़ाकर 465 पाउंड्स (42000 रुपए) कर दिया गया था।
महिला और पुरुष के बीच समान काम को लेकर सैलरी देते समय भेदभाव करने को आप ऊपर के आँकड़े से समझ गए होंगे। अब एक सच्चाई और, जिससे BBC कितना धूर्त है, यह पता चल जाएगा। समीरा ने बताया कि जब साल 2015 में उनकी सैलरी प्रति शो बढ़ाकर 465 पाउंड्स कर दिया गया, तो वह बहुत खुश थीं लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं। उनकी बढ़ाई गई तनख्वाह को बीबीसी ने नौकरी का कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू करते ही फिर से कम कर दिया। मतलब दूसरों (दबे-कुचलों) की आवाज उठाने का नाटक करने वाला मीडिया का स्वघोषित झंडाबरदार खुद अपनी ही कर्मचारी को दबा रहा है, उसका हक मार रहा है!
इस मामले पर नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के महासचिव ने कहा –
“सैलरी में होने वाली गैर-बराबरी की हमारी संस्थाओं में कोई जगह नहीं है, यही वजह है कि हम समीरा की माँग का समर्थन कर रहे हैं। यह दुखद है कि समाधान के लिए समीरा को एक ऐसी प्रक्रिया से गुज़ारना पड़ रहा है, जो लम्बी और निराशाजनक है, बीबीसी इस मसले को हल करने में विफल रहा है इसीलिए अब पेमेंट को लेकर लिंगभेद की बात पर फैसला ट्रिब्यूनल करेगा। समीरा को उसके जुझारूपन और दृढ़ संकल्प के लिए बधाई दी जानी चाहिए।”
समीरा का कहना है कि उसे देश (यूनाइटेड किंग्डम) के इक्वल पे एक्ट 1970 के तहत बीबीसी में उसके काम का पूरा हर्जाना दिया जाना चाहिए। बता दें कि अगले सात दिनों तक लन्दन की एक अदालत इस मामले पर सुनवाई करेगी। इस सुनवाई में समीरा की ओर से यह तर्क रहेगा कि जब उनका शो ‘न्यूज़वॉच’ और वाइन का शो ‘पॉइंट्स ऑफ़ व्यू’ दोनों एकसमान प्रोग्राम हैं, जो 15 मिनट की अवधि वाले प्रजेंटर बेस्ड हैं, दोनों प्रोग्राम में एक ही फॉर्मेट होता है, जिसमें दर्शक बीबीसी के कंटेंट पर अपनी राय रखते हैं। तो फिर दोनों प्रोग्राम के प्रजेंटर को अलग-अलग सैलरी क्यों?
नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के मुताबिक, बीबीसी ने पहले इस बात का वादा किया था कि समीरा को उनके पुराने शो और अन्य सभी कार्यक्रमों को लेकर पूरी पेमेंट पिछली तारीखों को ध्यान में रखकर कर दी जाएँगी, जिनमें समीरा अहमद और उनके पुरुष सहकर्मियों के बीच 50 प्रतिशत और 33 प्रतिशत का अंतर था। वहीं इस पूरे मामले पर बीबीसी की ओर से कहा गया है कि समीरा अहमद जिस शो का संचालन करती हैं, वह न्यूज़ सेगमेंट में आता है जबकि वाइन का कार्यक्रम एंटरटेनमेंट यानी मनोरंजन केटेगरी का है। बीबीसी ने अपना पक्ष रखते हुए यह भी कहा कि समीरा को उसके शो में उनसे पूर्व काम करने वाले पुरुष के समान ही पेमेंट दिया जाता है।
यह जानना जरुरी है कि इससे पहले बीबीसी (चीन) की पूर्व संपादक कैरी ग्रेसी ने पिछले साल समान वेतन मामले पर BBC से इस्तीफा दे दिया था। समीरा अहमद मामले की ट्रिब्यूनल में जो सुनवाई चल रही है, वहाँ पहुँची ग्रेसी ने कहा, “महिलाएँ समानता चाहती हैं, वे चाहती हैं कि उनका काम सम्मानपूर्वक हो। वे नहीं चाहती हैं कि उनके काम को कम करके आँका जाए। यह उनके जीवन के हर पहलुओं को प्रभावित करता है, यह सिर्फ वित्त (जो महत्वपूर्ण हैं) के बारे में नहीं है… यह आत्म-सम्मान के बारे में भी है और प्रगति के बारे में भी है। समीरा का केस केवल एक है, अभी कई मामले आने बाकी हैं।”