एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के मुखिया और पत्रकारिता की दुनिया में तथाकथित ‘निष्पक्षता’ का चेहरा माने जाने वाले शेखर गुप्ता। उन्होंने कहा है कि स्वाभाविक रूप से पत्रकारों का राजनीतिक झुकाव होता ही है। अपने मीडिया समूह द प्रिंट के 3 साल पूरे होने पर उन्होंने एक यूट्यूब कार्यक्रम में बात करते हुए लोगों के सवालों का जवाब दिया। एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने यह बात कही।
कार्यक्रम के दौरान मौजूद लोगों में एक व्यक्ति ने शेखर गुप्ता से यह सवाल किया- “आप अपनी पत्रकारिता को अपनी विचारधारा से कैसे अलग रखते हैं?” इस प्रश्न का उत्तर देते हुए शेखर गुप्ता ने कहा, “अगर कोई भी पत्रकार महिला या पुरुष दावा करता/करती है कि वह निष्पक्ष है तो वह इंसान झूठ बोल रहा है। इसके बाद उन्होंने कहा कि हर पत्रकार इस पेशे में आने के पहले इंसान था और तब वह कैसे निष्पक्ष हो सकता है।”
Salim Yadav ☑️ pic.twitter.com/wdoSv4Hsua
— iMac_too (@iMac_too) August 20, 2020
शेखर गुप्ता ने कहा, “हम इंसान हैं और हम निष्पक्ष नहीं हो सकते हैं। हम न तो कोई मशीन हैं और न ही कोई रोबोट हैं। हमें याद रखना चाहिए कि हम हर पाँच साल में मतदान करने जाते हैं।”
It's mea culpa season in sekoolardom. Btw Coupta @ShekharGupta, take it one step forward and accept you are a Congress voter. Just do it pic.twitter.com/GS4N4wv9CS
— iMac_too (@iMac_too) August 21, 2020
इसके बाद उन्होंने कहा, “हालाँकि, हर इंसान किसी न किसी राजनीतिक दल को अपना मत देता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश, चुनाव आयुक्त, राष्ट्रपति यह सभी लोग हर पाँच साल बाद मतदान करते हैं। हर इंसान जो चुनाव के दौरान अपने संवैधानिक अधिकारों का सदुपयोग करता है। उसकी कोई न कोई राजनीतिक विचारधारा होती है। ऐसे में निष्पक्षता को लेकर दावा करना कैसे सही हो सकता है।”
इसके बाद शेखर गुप्ता ने उन राजनीतिक दलों पर विलाप करना शुरू कर दिया। जिस राजनीतिक दल का वह विरोध करते हैं, जो लगभग हर चुनाव बहुमत से जीत रहे हैं। उन्होंने कहा हम न तो इसे बदल सकते हैं और न ही इसे खारिज कर सकते हैं। उनके अनुसार पिछले कुछ सालों में उन्होंने अपनी विचारधारा के झुकाव के साथ समझौता करना सीख लिया है। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि उनके लिए ऐसा कर पाना बिलकुल आसान नहीं था।
शेखर गुप्ता ने इस बात के लिए एक उदाहरण तक दिया। उन्होंने कहा एक राजनीतिक दल जिसे हम जीतते हुए नहीं देखना चाहते हैं। हो सकता है वह फिर भी जीत जाए और रिपोर्टिंग के दौरान हमें यह कहना पड़े- “यह राजनीतिक दल जीत गया।” उन्होंने कहा कि अपने तजुर्बों के आधार पर पूर्वाग्रहों के साथ रहना सीख लिया है। खबर ही है जो हम हमेशा से होना चाहते थे।
निष्पक्षता पर पड़ा परदा आख़िर हट ही गया
लिबरल्स ने पिछले कुछ समय में ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया। ऐसे पत्रकार जो अपने नैरेटिव को बढ़ावा देते हैं और उस पर चर्चा करते हैं वह निष्पक्ष हैं। इस श्रेणी में शेखर गुप्ता का नाम सबसे उल्लेखनीय है। इनके मुताबिक़ जिन पत्रकारों में वह भरोसा दिखाते हैं वह अपनी राजनीतिक विचारधारा को हमेशा अलग रख कर चलते हैं। उनकी ख़बरें भी किसी विचारधारा से प्रेरित नहीं होती हैं। लेकिन असल मायनों में यह सच नहीं है।
शेखर गुप्ता के इस बयान से स्पष्ट है कि तथाकथित बुद्धिजीवी पत्रकार भी राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित होते हैं। ज़रा सी ईमानदारी दिखाते हुए शेखर गुप्ता ने यह स्वीकार किया कि निष्पक्षता की बात करना दिखावा है। जिससे पत्रकारों को अपना एजेंडा आगे बढ़ाने में मदद मिलती है। और खुद उनके झुकाव पर कोई सवाल नहीं खड़े होते हैं।