सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (जुलाई 5, 2019) को हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए हरेन पांड्या हत्या मामले में मोहम्मद असगर अली समेत 11 आरोपितों को दोषी ठहराया है। जिसमें 7 आरोपितों को उम्र कैद की सजा सुनाई है। गुजरात हाईकोर्ट ने साल 2003 के हरेन पांड्या हत्याकांड के सभी 12 आरोपितों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया था। आरोपितों के समर्थन में हरेन पंड्या मामले की नए सिरे से जाँच करने की माँग करने वाली एक याचिका में विवादास्पद पत्रकार राणा अय्यूब की पुस्तक का इस्तेमाल किया गया था, जिसे खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इसकी कोई उपयोगिता नहीं है।
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील की थी, और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ ने अपील को स्वीकार कर लिया। अपील के साथ, शीर्ष अदालत ने सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन द्वारा दायर की गई याचिका पर भी सुनावई की। एक लीगल एनजीओ ने हरेन पंड्या की हत्या की नए सिरे से जाँच करने की माँग की थी, जिसके आधार पर उच्च न्यायालय ने आरोपितों को बरी कर दिया था।
उच्च न्यायालय के आदेश को पलटने के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय ने उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें मामले की नए सिरे से जाँच की माँग की गई थी। शीर्ष अदालत के फैसले में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने अपने मामले के समर्थन में विवादित पत्रकार राणा अय्यूब द्वारा लिखित पुस्तक गुजरात फाइल्स – एनाटॉमी ऑफ ए कवरअप’ प्रस्तुत की थी। इस पुस्तक और विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित कुछ अन्य लेखों के आधार पर, वकील शांति भूषण और प्रशांत भूषण ने तर्क दिया था कि यह आगे की जाँच के लिए एक उपयुक्त केस है।
मगर, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य में कोई योग्यता नहीं पाई। पीठ ने कहा कि राणा अय्यूब की पुस्तक कोई उपयोगिता नहीं है। यह पुस्तक अनुमानों, अटकलों और कल्पना पर आधारित है। जाहिर तौर पर इसका कोई महत्त्व नहीं है। अदालत ने कहा कि राणा अय्यूब ने अपनी पुस्तक में जो तर्क दिए हैं, वो उनके विचार हैं और किसी व्यक्ति के विचार या राय सबूतों के दायरे में नहीं आते।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके राजनीतिक रूप से प्रेरित होने की प्रबल संभावना है, जिसे खारिज नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि गुजरात में गोधरा कांड के बाद जिस तरह से चीजें घटित हुई हैं, उसके बाद इस तरह के आरोप और प्रतिवाद असामान्य नहीं हैं और कई बार इसे उठाने का प्रयास किया गया। हालाँकि, बाद में इसकी पुष्टि नहीं होती है। अदालत ने केस का निर्णय सुनाते हुए कहा कि याचिकर्चाओं द्वारा राणा अय्यूब की पुस्तक समेत प्रस्तुत की गई सामग्री के आधार पर कोई केस नहीं बनता है। कोर्ट ने कहा कि राणा अय्यूब की पुस्तक का कोई महत्त्व नहीं है। याचिका को खारिज करने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पर 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया है।
1/2 Rana Ayyub’s a courageous reporter but her story wasn’t published in Tehelka coz it didn’t meet ed standards not ‘political pressure’
— Shoma Chaudhury (@ShomaChaudhury) May 29, 2016
वैसे ये पहली बार नहीं है, जब राणा अय्यूब द्वारा गुजरात पर लिखी गई पुस्तक की तथ्यों के आधार पर न होने की आलोचना की गई है। यहाँ तक कि भाजपा विरोधी प्रोपेगेंडा साइट तहलका ने भी इस कहानी को प्रकाशित करने से इनकार कर दिया था। तहलका की संपादक सोमा चौधरी ने राजनीतिक दबाव के कारण राणा की कहानी प्रकाशित नहीं होने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि उनकी कहानी इसलिए प्रकाशित नहीं हुई थी, क्योंकि वो प्रकाशन के संपादकीय मानकों को पूरा नहीं करता था।