Facebook की पैरेंट कंपनी Meta से संबंधित फर्जी कहानी गढ़ने के बाद वामपंथी प्रोपेगेंडा वेबसाइट The Wire ने एक ‘माफीनामा’ प्रकाशित किया है, जिसमें वह संपादकीय मूल्यों की समीक्षा करने की बात कही है। वायर ने माफीनामे को जिस अंदाज में लिखा है, उससे लगता है कि वह विशुद्ध नौटंकी है। इस वामपंथी पोर्टल ने पहले फर्जी कहानी गढ़कर पूरी दुनिया में देश को बदनाम किया और फिर माफी की बात कहकर गुमराह करने वाला नौटंकी कर रहा है।
बुधवार (26 अक्टूबर 2022) को छापे अपने माफीनामे में वायर ने अपने पाठकों से ‘और बेहतर’ स्टोरी उपलब्ध कराने का वादा किया है। वायर ने दावा किया कि उसने बाहरी विशेषज्ञों की मदद से उपयोग की जाने वाली तकनीकी स्रोत सामग्री की आंतरिक समीक्षा करने के बाद अपनी मेटा कहानियों को हटा लिया है। इसके साथ ही वह आंतरिक संपादकीय प्रक्रियाओं की व्यापक समीक्षा भी कर रहा है।
वायर ने दावा किया कि यह प्रक्रिया अभी भी जारी है, लेकिन उसकी एक महत्वपूर्ण संपादकीय सीख यह रही कि जब उसके पास ‘जटिल तकनीकी साक्ष्य’ आएँ, चाहे वह उसकी टीम या किसी फ्रीलांसर द्वारा लाया जाए, तो तकनीकी स्किल वाली सभी प्रक्रियाओं को क्षेत्र के स्वतंत्र एवं प्रतिष्ठित विशेषज्ञों द्वारा क्रॉस-चेक किया जाएगा।
द वायर ने अपनी मेटा स्टोरी में दावा किया था कि उसके पास इस क्षेत्र के स्वतंत्र और प्रतिष्ठित विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने डेटा की जाँच करने के बाद निष्कर्षों को मंजूरी दी। द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन इस बाइलाइन स्टोरी को विशेषज्ञों ने ‘सबूत’ देने से इनकार कर दिया था। जाहिर सी बात है कि वायर की टीम ने स्वतंत्र विशेषज्ञों के नकली बयान दर्ज किए थे। वायर ने अपनी ‘माफी’ में इनमें से किसी का भी जिक्र नहीं किया है।
वायर ने यह भी नहीं बताया कि मेटा स्टोरी पर काम करने वाले उसकी टीम के कुछ सदस्य टेक फॉग फिक्शन में भी शामिल थे। इस साल जनवरी की शुरुआत में डॉकिंग सेवाएं प्रदान वाले लंदन स्थित संगठन Logically.ai से जुड़े देवेश कुमार और आयुष्मान कौल ने टेक फॉग स्टोरी पर काम किया था। टेक फॉग की कहानियां भी अब वापस ले ली गई हैं, लेकिन टेक फॉग का इस ‘माफी’ में कोई जिक्र नहीं है।
टेक फॉग स्टोरी में उन अज्ञात विशेषज्ञों का भी हवाला दिया गया, जिन्होंने इन निष्कर्षों को ‘सत्यापित’ करने का दावा किया था। टेक फॉग को इतना प्रचारित किया गया कि यह समाचार चैनलों पर प्राइम टाइम बहस का हिस्सा बन गया। एनडीटीवी इंडिया के रवीश कुमार ने इसे नाटकीय रूप से पेश किया था। इस मुद्दे को संसद में भी उठाया गया था और जाँच की माँग की गई थी। टेक फॉग की कहानियाँ वापस ले ली गईं, लेकिन वायर ने इसके लिए माफी नहीं माँगी।
इन दोनों स्टोरी में ऐसा दिखाने का प्रयास किया गया था कि भाजपा उसकी IT सेल के प्रमुख अमित मालवीय इतने शक्तिशाली हैं कि वे सभी ऑनलाइन बातचीत और नैरेटिव को नियंत्रित कर रहे थे। हालाँकि, बाद में पता चला कि मोदी विरोध के चलते गढ़े हुए ‘सबूतों’ के साथ इस स्टोरी में जोड़-तोड़ की गई थी।
वायर और उसके संस्थापक संपादक वरदराजन गलत जानकारियाँ देने में सबसे आगे रहे हैं। जनवरी 2021 में गणतंत्र दिवस के दंगों के तुरंत बाद जब सैकड़ों तथाकथित किसानों ने लाल किले पर हमला किया था, उस दौरान एक ‘प्रदर्शनकारी’ नवप्रीत सिंह जिस ट्रैक्टर का इस्तेमाल कर रहा था, उसके पलट जाने से उसकी मौत हो गई।
वायर ने अपने लेख में कहा था कि नवप्रीत की मौत गोली लगने से हुई थी, न कि ट्रैक्टर के पलटने से। लेख में यहाँ तक झूठा दावा किया गया था कि पीड़ित के रिश्तेदारों ने पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर से बात की, जिसने कहा कि गोली लगने के दौरान ‘उसके हाथ बंधे हुए थे’। सरकार और पुलिस ने इससे इनकार किया और पोस्टमार्टम रिपोर्ट साझा की, लेकिन वायर ने इसे छापने की जहमत नहीं उठाई।
अपनी झूठी कहानियों के दम पर समाज में वैमनस्यता फैलाने और छवि खराब करने का वायर का पुराना रिकॉर्ड है। हालाँकि, वायर अपनी भूल सुधारने और माफी माँगने की कोशिश भी नहीं करता। मेटा मामले पर जब दुनिया भर में वायर की छिछालेदर हुई तो उसने माफी का दिखावा और अपने संपादकीय नीतियों की समीक्षा करने की नौटंकी कर रहा है।