सोशल मीडिया के हर कोने में एक ऐसी पढ़ी-लिखी लिबरल जमात मौजूद है जो नतीजों के पहले दावे ठोंक देती है। जिन दावों में न तो तथ्य और होते हैं और न ही तर्क। सिर्फ समझ होती है जिसका दायरा जनता की कल्पना से कहीं ज़्यादा है। यहाँ तक कि कोरोना वायरस जैसे गंभीर मुद्दे भी इन लिबरल्स की लिबिर-लिबिर से अछूते नहीं रहे हैं।
ध्रुव राठी और रवीश कुमार के दावों का पुलिंदा हमेशा भारी रहता है। कोरोना पर भी यही दिखा। सिर्फ इन्हीं दोनों ने नहीं, स्वीडन के महामारी विशेषज्ञ (epidemiologist) एंडर्स टेंगेल ने भी कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन को लेकर कुछ विचित्र दावे किए थे।
यूट्यूब के स्वघोषित ‘हर विषय के विशेषज्ञ’ ध्रुव लाठी (सॉरी राठी) ने केरल में कोरोना वायरस के हालात को लेकर एक वीडियो बनाया था। 14 मई 2020 को साझा किए गए इस वीडियो में 13 मिनट तक केरल की तारीफों के पुल बाँधे और उसी पुल पर खुद ही दौड़ भी लगाई। इसे वीडियो का शीर्षक था- How Kerala defeated Coronavirus। यानी कैसे केरल ने कोरोना वायरस को हराया? राठी जैसे सार्वभौमिक जानकार इतने पर ही थमे नहीं और केरल के कोरोना वायरस मॉडल पर एक किताब तक लिख डाली।
Section 144 imposed in Kerala due to high number of Corona Cases.
— mthn (spy) 😎 (@Being_Humor) October 2, 2020
And @Dhruv_Rathee wrote a whole book on how Kerala defeated Coronavirus
😭😭😭😂😂😂😂😂😂😂 pic.twitter.com/1hXBtwW7Wa
इस अतुलनीय पुस्तक का शीर्षक भी वही था जो ऊपर अंग्रेज़ी भाषा में लिखा है। लेकिन यह बात 5 महीने पुरानी हैं। केरल में अभी के हालात पूरी तरह अलग हैं। कोरोना वायरस पर काबू पाने के लिए राज्य में धारा 144 लगा दी गई है। गुरुवार को केरल में 8135 मरीज सामने आए और इसके साथ वहाँ कुल मरीजों की संख्या लगभग 2 लाख हो चुकी है। मुख्यमंत्री पी. विजयन ने खुद इस बात की जानकारी दी है कि वहाँ स्वास्थ्यकर्मी बड़ी संख्या में प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन इस तरह के तमाम तथ्यों और तर्कों के इतर ध्रुव लाठी (सॉरी राठी) ने पहले ही किताब लिख दी थी।
पत्रकारों के तथाकथित महानायक राजा रबिश कुमार (सॉरी रवीश) ने भी केरल की प्रशंसा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। भले-मानुष का कहना था कि केरल ने ऐसा मॉडल पेश किया है, जिससे देश के अन्य राज्यों को ही नहीं, बल्कि दुनिया को भी सीखने की ज़रूरत है। रवीश कुमार केरल के कोरोना वायरस मॉडल पर इतने भावुक हुए कि आधे घंटे तक उस पर बकते रहे, बिना यह सोचे कि आने वाले समय में उनका आकलन और उनके दावे किस कदर फुर्र हो जाएँगे।
रवीश कुमार का अनुमान केवल केरल तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने न्यूज़ीलैंड और स्वीडन को लेकर भी दावे किए थे। उनके मुताबिक़ दुनिया के हर देश को इन दो देशों से सीखना चाहिए, लेकिन कुछ ही समय में हालात बदल गए। एक बार फिर रवीश कुमार की बातें ‘बकैती मात्र’ सिद्ध हुई। जैसे ही उन्होंने न्यूज़ीलैंड पर प्राइम टाइम किया उसके बाद से अब तक न्यूज़ीलैंड को 2 बार लॉकडाउन करना पड़ा है। स्वीडन ने भी शुरुआत में लॉकडाउन को लेकर गंभीर रवैया न रखने को लेकर आगामी महीनों में महँगी कीमत चुकाई।
वैसे भी स्वीडन की आबादी सिर्फ 1.2 करोड़ है। उसकी तुलना कई गुना ज्यादा आबादी वाले भारत से करना यह बताता कि रिपोर्ट रचयिता किस कदर एजेंडाग्रस्त है। स्वीडन ही नहीं बल्कि न्यूज़ीलैंड की ही बात करें तो दोनों देशों के बुनियादी ढाँचे में ज़मीन-आसमान का फर्क है। आम जनता से लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं तक और नीतियों से लेकर अर्थव्यवस्था तक, भारत और न्यूज़ीलैंड के हालातों में तुलना के आधार खोजने पर भी नहीं मिलते हैं।
व्यावहारिकता को ज़रा भी समझने वाला व्यक्ति ऐसी कल्पना करने से हज़ार दफा सोचेगा। लेकिन रवीश कुमार कई पुरस्कार जीत चुके हैं। उनकी बात अलग है इसलिए उनके दावे आसमान से गिरते हैं, जिसे उनके प्रशंसक दौड़ कर कैच कर लेते हैं।
स्वीडन के महामारी विशेषज्ञ (epidemiologist) एंडर्स टेंगेल ने भी इतने संवेदनशील मुद्दे पर अपने अद्भुत तर्कशास्त्र का प्रदर्शन किया था। जब कोरोना वायरस से भय के चलते दुनिया के तमाम देशों ने लॉकडाउन का फैसला लिया तब उन्होंने एक बयान दिया था। अपने बयान में उन्होंने कहा था, “हालात देख कर ऐसा लगता है कि दुनिया पागल हो चुकी है और हमने जितने मुद्दों पर बात की थी वह सब कुछ भुलाया जा चुका है।” एंडर्स के मुताबिक़ दुनिया के जितने देशों ने लॉकडाउन लागू किया है वह सब के सब पगला चुके हैं। एंडर्स यहीं नहीं रुके। इसके बाद उन्होंने कहा कि जैसे दवाओं के साइडइफेक्ट्स होते हैं, वैसे ही लॉकडाउन के भी नकारात्मक परिणाम होंगे।
कुछ समय बाद जब स्वीडन में हालात बदतर हुए तब उन्हें अपने दावे में गंभीरता का स्तर नज़र आ गया (थी ही नहीं तो नज़र कैसे आती)। तब उन्होंने कहा कि स्वीडन को कोरोना वायरस का सामना दूसरी रणनीतियों के आधार पर करना था। उन्होंने स्वीकार किया कि देश में बहुत से लोगों की मौत हुई है और इससे पता लगता है, स्वीडन कोरोना वायरस से लड़ाई में सफल साबित नहीं हुआ।
यह तो कुछ नाम हैं, ऐसे कई और नाम हैं जिन्होंने जज्बातों में आकर दावों का लंबा बिल फाड़ा था और अंत में गाल बजाते मिले। बुद्धिजीवियों के साथ यह समस्या हमेशा से रही है और न जाने कब तक रहेगी, उन्हें अपने दावे परम सत्य लगते हैं, लेकिन जनता ऐसी बातों को सुनती और पेट पकड़कर हँसती है।