आज से यही कोई 16 साल पहले, वो धनतेरस का दिन था, तारीख थी 29 अक्टूबर 2005, सत्ता में थी कॉन्ग्रेस, दिल्ली के बाजार सजे-धजे थे, लोग घरों से त्योहारों की खरीदारी करने बाहर निकले थे। वहीं तमाम लोग ऑफिस से लौटने की तैयारी कर रहे थे या अभी रास्ते में थे। दो दिन बाद ही दिवाली थी, उसके बाद गोवर्धन पूजा और अगले दिन भैया दूज इसलिए चारों तरफ भीड़-भाड़ और खुशी का माहौल था तभी शाम के ठीक साढ़े 5 बजे से अगले आधे घंटे तक एक के बाद एक दिल्ली के तीन अलग-अलग इलाकों में, तीन धमाके हुए और त्योहारों की खुशी मातम में बदल गई। रौनक बम धमाकों के धुएँ में काली हो गई। चारों तरफ भगदड़-हाहाकार, किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे- जहाँ हैं वहीं रहे या वहाँ से निकले, क्योंकि जैसे एक के बाद एक लगातार धमाकों की खबरें आ रही थी, लग रहा था मानो पूरी दिल्ली में ही आतंकियों ने बम बिछा दिए हों, जो एक साथ नहीं बल्कि एक के बाद एक फटेगें, ऐसे में पता नहीं अगला नंबर किसका हो।
तब दीपावली के जश्न में डूबी दिल्ली अचानक हुए इन आतंकी हमलों से दहल गई थी। पहला धमाका पहाड़गंज में हुआ, जिसमें 9 लोगों की मौत हुई और 60 से अधिक घायल हुए। दूसरा धमाका गोविंदपुरी में हुआ, जिसमें 4 लोग घायल हुए जबकि तीसरा धमाका सरोजनी नगर में हुआ जिसमें सबसे ज्यादा 50 लोगों की मौत हुई और 127 से ज्यादा लोग घायल हुए। इन धमाकों के पीछे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ माना गया। कोर्ट ने तारिक अहमद डार, मोहम्मद हुसैन फाजिली और मोहम्मद रफीक शाह पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, आपराधिक साजिश रचने, हत्या, हत्या के प्रयास और हथियार जुटाने के आरोप तय किए थे।
बता दें कि सीरियल ब्लास्ट का दिल्ली में ये पहला मामला था, इससे पहले साल 2000 में लाल किले पर और 2001 में संसद हमला तो हुआ था, लेकिन इस बार आम आदमी को आतंकियों ने निशाना बनाया था। दिल्ली के दिल में खौफ पैदा करना चाहते थे आतंकी। इसके बाद दिल्ली में फिर तीन साल बाद यानी 2008 में संसद हमले की बरसी पर 13 दिसम्बर को सीरियल ब्लास्ट किए गए, करोल बाग में 1, कनॉट प्लेस में 2 और ग्रेटर कैलाश में 2 ब्लास्ट किए गए थे।
इतने साल अचानक से आपको पीछे ले जाने और आपके सामने दिल्ली की दिवाली से पहले के उस खौफनाक मंजर की झलक रखने का एक मकसद है और वो मकसद है 2005 के दिल्ली सीरियल धमाकों का ‘मास्टरमाइंड’ तारिक अहमद डार, जिसे NIA ने फिर से गिरफ्तार कर लिया है। आतंकी डार की गिरफ्तारी जम्मू-कश्मीर में सर्चिंग अभियान के दौरान हुई है। NIA जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के ठीकाने पर लगातार छापेमारी कर रही है। इसी क्रम में NIA को ये बड़ी सफलता मिली है। डार दिल्ली के सीरियल धमाकों का वह मास्टरमाइंड था जो सबूतों और गवाहों के खेल में आज से यही कोई साढ़े चार साल पहले 2017 में छूट गया था।
तारिक अहमद डार, दिल्ली सीरियल बम ब्लास्ट, मुख्य आरोपित और उसके साथियों के पकड़े जाने, जेल, बरी, सजा और पुनः पकड़े जाने की पूरी कहानी आपको विस्तार से बताता हूँ।
सबसे पहले अभी कैसे गिरफ्त में आया तारिक अहमद डार, कश्मीर में अभी हिन्दुओं और गैर मुस्लिमों आतंकियों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। इसी मामले में आतंकियों और उनके मददगारों की तलाश में 13 अक्टूबर, 2021 को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी एनआईए (NIA) ने कश्मीर में 16 जगहों पर छापेमारी कर आंतकवादियो का साथ देने वाले 9 लोगों को गिरफ्तार किया। इन सभी पर आरोप है कि ये सभी कश्मीर घाटी मे आंतकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन और अन्य आंतकी संगठनो के आतंकियों को सुविधा मुहैया कराते थे।
एनआईए ने खुलासा किया कि आतंकियों की इस साजिश के निशाने पर दिल्ली भी शामिल थी। वही दिल्ली जो 16 साल पहले 2005 में दिवाली से ठीक पहले सीरियल बम ब्लास्ट से दहल गई थी। उधर दिल्ली पुलिस की कस्टडी में मौजूद पाकिस्तानी आतंकी अशरफ कई अहम खुलासे कर रहा है। उसने अपने हैंडलर का नाम नासिर बताया जो पाकिस्तानी सेना का एक अफसर है और अशरफ के तार साल 2011 मे दिल्ली हाई कोर्ट के बाहर हुए धमाके से भी जुड़ते नजर आ रहे हैं।
NIA की पूछताछ में अशरफ ने खुद ये कबूल किया है कि हाईकोर्ट समेत उसने कई अहम जगहों की रेकी की थी। इन जगहों में दिल्ली पुलिस का पुराना हेडक्ववार्टर समेत आईएसबीटी कश्मीरी गेट और लाल किला आदि भी शामिल थे। अशरफ ने यह भी खुलासा किया है कि वह जम्मू में साल 2009 में हुए एक धमाके में भी शामिल था। दिल्ली पुलिस की हिरासत मे मौजूद अशरफ ने अपने शुरूआती बयानों में यह भी कहा है कि साल 2011 मे दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुए धमाके के लिए उसने ही रेकी की थी। बता दें कि यह धमाका दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नंबर-5 के पास हुआ था।
NIA की पूछताछ में जो बातें अभी तक सामने आईं हैं उनसे यह साफ पता चल रहा है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने एक बार फिर अपने स्लीपर सेल को पूरी तरह से मैदान में उतार दिया है और उन्हें यह साफ निर्दैश दिया है कि वे भारत में खासकर जम्मू-कश्मीर और दिल्ली को अपना निशाना बनाएँ। NIA ने जम्मू-कश्मीर से जिन 9 आतंकियों को गिरफ्तार किया है। ये लोग स्थानीय युवाओं को बरगला कर आंतकी संगठन में शामिल कराने की साजिश मे भी शामिल थे। एनआईए के मुताबिक इनके नाम वसीम अहमद, तारिक अहमद डार, बिलाल अहमद मीर, तारिक अहमद बफंडा, मोहम्मद हनीफ, हफीज, ओवैस डार, मतीन भट और आरिफ फारूक भट है।
NIA ने अधिकारिक तौर पर खुलासा किया है कि ये सभी ओवर ग्रांउड वर्कर हैं जो अपने आकाओं और पाकिस्तानी कमांडरों के साथ साजिश कर आतंकियों को सपोर्ट उपलब्ध कराते हैं और इन लोगों की मदद से आतंकवादियों ने कई स्थानीय लोगों समेत सुरक्षाकर्मियो की हत्यायें की हैं और इनकी साजिश के निशाने पर एक बार फिर राजधानी दिल्ली भी थी।
NIA के मुताबिक आतंकी तारिक अहमद डार लश्कर-ए-तैयबा के लिए वित्तीय मदद और साजिश रच रहा था। इसके अलावा वो कश्मीर घाटी में स्थानीय युवाओं को आतंकवादी बनाने और उन्हें हथियार और गोला बारूद से संबंधित प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए पाकिस्तान स्थित आतंकी कमांडरों के साथ साजिश में शामिल था। एनआईए ने उसकी गिरफ्तारी के बाद मौके से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, आपत्तिजनक दस्तावेज और संदिग्ध वित्तीय लेनदेन के रिकॉर्ड जब्त किए हैं। डार आतंकवादियों को सामान के साथ लड़ाके भी उपलब्ध करा रहा था।
अब बात NIA के इस छापे में गिरफ्तार हुआ तारिक अहमद डार साढ़े चार साल पहले कैसे छूटा, दिल्ली सीरियल ब्लास्ट मामले में कैसे उस समय गिरफ्तार हुआ था। कोर्ट ने क्या फैसला दिया अब उसकी बात:
इसके लिए आपको ले चलता हूँ 2005 के अक्टूबर के महीने में, 29 अक्टूबर 2005 को जब सबसे पहला बम धमाका नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के नजदीक होटलों वाली जगह पहाड़गंज के भीड़भाड़ वाले इलाके में शाम 5 बजकर 38 मिनट पर हुआ था, बम MS मेडिकोज नाम की शॉप के बाहर पार्क किसी दो पहिया वाहन में प्लांट किया गया था। उस समय पड़ोस के एक गोलगप्पे वाले की दुकान पर भी काफी भीड़ थी।
दूसरा धमाका गोविंदपुरी में शाम को ठीक 6 बजे हुआ, चलती डीटीसी बस में हुए धमाके ने सबको दहशत से भर दिया था। हालाँकि, कंडक्टर ने जब बस में संदेहास्पद बैग देखा तो शोर मचाया, हालाँकि, बैग खिड़की से बाहर फेंकने की कोशिश में फट गया लेकिन थोड़ी सी सजगता और फुर्ती से कई जानें बच गईं और महज 4-5 लोग ही घायल हुए, तब तक बाकी यात्रियों को उतारा जा चुका था।
तीसरा धमाका दिल्ली में महिलाओं की सबसे पसंदीदा मार्केट सरोजिनी नगर में हुआ, जहाँ 6 बजकर 5 मिनट पर चारों तरफ पसरा खौफ साफ़ देखा गया था। किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। लेकिन जब आँकड़े आए तब पता चला कि त्यौहार मनाने की तैयारी कर रहे 60 लोग इन धमाकों में मारे गए, वहीं 200 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। सबसे भयावह था सरोजिनी मार्केट का ब्लास्ट, जिसमें करीब 50 लोग मारे गए थे।
यहाँ एक और विशेष बात है जो उस समय मीडिया में आई थी कि कैसे थोड़ी सी चूक ने सरोजनी नगर में इतनी जानें ले ली। डीटीसी बस की तरह सरोजनी नगर में भी इतना बड़ा हादसा टाला जा सकता था, दरअसल, सरोजनी नगर में लाल चंद सलूजा की जूस की दुकान पर नौकर ने एक लावारिस बैग देखा, उसमें उसे एक कुकर नजर आया। टाइमर दिखा तो सारे व्यापारी इकट्ठा हो गए लेकिन किसी की समझ में कुछ नहीं आया कि करना क्या है?
तभी व्यापारी नेता अशोक रंधावा भागते हुए पुलिस चौकी पहुँचे, लेकिन जब तक पुलिस आती, बम फट चुका था। और वहाँ आस-पास खड़े सरकारी आँकड़ों के अनुसार 50 लोगों की मौत हो गई थी। जूस की दुकान के मालिक लाल चंद सलूजा की भी इस धमाके में मौत हो गई। हालाँकि, मीडिया में उस समय ये भी आया था कि बम किसी मारुति वैन में रखा गया था। ऐसा माना जाता है कि इन बम धमाकों में आतंकियों ने RDX का इस्तेमाल किया गया था।
दिल्ली के इन सीरियल धमाकों के लिए पुलिस ने तीन गिरफ्तारियाँ की और दावा किया कि ये धमाके भी इस्लामिक आतंकवादियों की साजिश थे, लश्कर-ए-तैयबा का हाथ बताया गया। तारिक अहमद डार, मोहम्मद हुसैन फाजिल और मोहम्मद रफीक शाह को मुख्य आरोपित बनाया गया था। इन धमाकों का मास्टरमाइंड तारिक था जो लश्कर का ऑपरेटिव था। इस मामले में पुलिस ने तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज की थीं। कोर्ट ने 2008 में मामले के आरोपित मास्टरमाइंड डार और दो अन्य आरोपितों के खिलाफ देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, साजिश रचने, हथियार जुटाने, हत्या और हत्या के प्रयास के आरोप तय किए थे। दिल्ली पुलिस ने डार के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया था। इस चार्जशीट में उसके कॉल डिटेल्स का जिक्र भी किया गया, जिससे कथित तौर यह बात सामने आई कि वह लश्कर-ए-तैयबा के अपने आकाओं से कनेक्शन में था।
दिल्ली की पटियाला हाउस की स्पेशल कोर्ट में जज थे रीतेश सिंह, 16 फरवरी 2017 को यानी घटना के 12 साल बाद जब इस केस का फैसला सुनाया तो जो पीड़ित परिवार थे, वो ठगे से रह गए। सीरियल बम ब्लास्ट मामले में पुलिस आरोपितों को दोषी साबित करने में नाकामयाब रही। पुलिस चार्जशीट का ज्यादातर हिस्सा कोर्ट के सामने महज एक कहानी साबित हुआ, जिसकी कोई बुनियाद नहीं थी, चार्जशीट का कोई सेक्शन कोर्ट के सामने प्रूव नहीं हो सका। आरोपितों का न ब्लास्ट में कोई रोल आया, न ही आपस में कोई लिंक साबित हुआ। गवाह और सबूत कोर्ट के सवालों के आगे लड़खड़ाते नजर आए।
बचाव पक्ष की मानें तो कोर्ट ने जिस यूएपीए सेक्शन (गैर कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम) की दफा 38 और 39 के तहत अहमद डार को दोषी माना है, वह सेक्शन भी कोर्ट ने स्वयं के विवेक से लगाए थे, वरना पुलिस चार्जशीट में सेक्शन 17 और 18 (आतंकवादी गतिविधि के लिए धन जमा करने से संबंधित), कोर्ट में प्रूव नहीं हुए थे।
परिणाम स्वरुप तीन अभियुक्तों में से 2 यानी मोहम्मद रफीक शाह और हुसैन फाजिली बरी कर दिए गए और तीसरे अभियुक्त तारिक अहमद डार को 10 साल की सजा सुनाई गई लेकिन बम धमाकों में शामिल होने के लिए नहीं बल्कि आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से रिश्ते साबित हो जाने की वजह से, उसमें अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है इसलिए अदालत ने उसे तुरंत रिहा करने का आदेश दे दिया।
दिल्ली पुलिस ये तक साबित नहीं कर पाई कि अभियुक्त उस दिन शहर में मौजूद थे। जिनमें से एक कश्मीर यूनीवर्सिटी में इस्लामिक स्टडी का छात्र था और दूसरा शॉल विक्रेता। दोनों को ही छोड़ दिया गया था, हालाँकि पुलिस की स्पेशल सेल इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट भी गई। फिलहाल अभी केस वहाँ लम्बित है। इस तरह इतने लोगों ने अपनों को खो दिया, समय रहते त्वरित न्याय मिल जाता तो कम से कम अपनों को खोने का दुख कुछ हद तक कम हो जाता। लेकिन अब जब तारिक अहमद डार फिर से NIA की गिरफ्त में आया है तो उसकी नई-पुरानी कड़ियों को जोड़ते हुए एक बार फिर से न्याय की आस जगी है।