सितंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में भारतीय सेना के कैंप पर आतंकी हमला हुआ था। उस समय सुंजवान मिलिट्री कैंप और नगरोटा आर्मी बेस के कमांडर उरी ब्रिगेड के प्रभारी थे। सरकार ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का मन बना लिया है। सरकार को यह लगता है कि उस आतंकी हमले के दौरान सुरक्षा में हुई चूक के लिए वरिष्ठ कमांडर ज़िम्मेदार हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी ख़बर के अनुसार, नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात की जानकारी दी कि सरकार ने भारतीय सेना को अपने इस फ़ैसले से अवगत भी कराया है। उन्होंने बताया कि सरकार अनिवार्य रूप से यह चाहती है कि अधिकारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लें। सरकार का यह भी कहना है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले अधिकारियों को वे सभी लाभ प्राप्त होंगे जिसके वे हक़दार हैं।
एक अन्य अधिकारी ने भी नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि भारत सरकार और सेना के बीच हुई चर्चा में यह तय किया गया था कि नई सरकार के शपथ ग्रहण के बाद कमांडर्स अपनी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति संबंधी दस्तावेज़ जमा करा दें।
भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) द्वारा अप्रैल-मई के आम चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ लेने के बाद एक महीने से भी कम समय में सरकार का यह निर्णय सामने आया है।
ख़बर के अनुसार, उरी में तीन हमलों में कुल 36 सैन्यकर्मियों की मौत हुई थी। इनमें से दो- 2016 में नगरोटा बेस और उरी ब्रिगेड पर हुए थे, और तीसरा हमला- सुंजुवान कैंप पर हुआ था। कमांडर्स की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति से संबंधित इस जानकारी की पुष्टि के लिए जब भारतीय सेना के प्रवक्ता से पूछा गया जो उन्होंने कहा, “मेरे पास कोई जानकारी नहीं है।”
उरी हमले ने भारतीय सेना को 28 सितंबर, 2016 को आतंकवादी शिविरों पर सीमा पार “सर्जिकल स्ट्राइक” करने के लिए प्रेरित किया। यह एक ऐसी कार्रवाई थी जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की आशंकाओं को जन्म दिया।
एक तीसरे अधिकारी के अनुसार, कमांडर्स के ख़िलाफ़ इस तरह की कार्रवाई कोई नया प्रस्ताव नहीं है। एनडीए के पिछले शासन के दौरान, तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई पर ज़ोर दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना और वायु सेना प्रमुखों के साथ बातचीत में हमलों पर अपनी अत्यधिक नाराज़गी व्यक्त की थी। अधिकारी ने यह भी बताया कि सेना ने सरकार के इस निर्णय का विरोध किया था। नाम न छापने की शर्त पर चौथे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार उन वरिष्ठ नेतृत्व (कमांडर्स) को ज़िम्मेदार ठहराना चाहती है जो आतंकी हमलों का ख़ुद भी शिकार हो सकते थे।
भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारतीय सेना ऑपरेशनल मुद्दों के कारण कमांडर्स को सेवानिवृत्त करने के लिए उत्सुक नहीं है। हमलों की जाँच की गई है। आवश्यक कदम पहले ही उठाए जा चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि बेस के एक कमांडर ने हमले के दो दिन पहले ही कमान संभाली थी।
सेना ने सरकार द्वारा इस आधार पर अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू करने के पिछले प्रयासों का विरोध किया था कि इस तरह की कोई भी कार्रवाई एक बुरी मिसाल कायम कर सकती है और ऐसे निर्णय से भविष्य में आतंकवाद रोधी कार्रवाई में बाधा उत्पन्न हो सकती है। सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत का भी कहना था कि “कमांड (सेवा) से हटा दिया जाना अपमानजनक होता है।”