ऑपइंडिया हमेशा से विदेशों से फंड प्राप्त करने वाले एनजीओ और उनके काम करने के तौर-तरीकों, उनकी मंशा पर विस्तार से विमर्श और रिपोर्टिंग करता रहा है। हम बताते रहे हैं कि कैसे हर्ष मंदर जैसे लोगों की मदद से विदेश से फंड हासिल करने वाले एनजीओ देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए न्यायपालिका का दुरुपयोग करने की कोशिश करते रहते हैं। सिविल सोसायटी के नाम पर विदेशी फंड प्राप्त करने वाले एनजीओ द्वारा भारत की सम्प्रभुता और आंतरिक सुरक्षा को खतरा पहुँचाने के लिए देसी संगठनों के साथ सॉंठगॉंठ पर भी हम लगातार विस्तार से रिपोर्ट करते रहे हैं।
इन सबके साथ जिस एक व्यक्ति पर हमारा फोकस रहा है, वह सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज से जुड़े हर्ष मंदर हैं। उनका जॉर्ज सोरोस से संबध रहा है। मनमोहन सरकार के जमाने में सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली नेशनल एडवायजरी काउंसिल के भी वे सदस्य रहे हैं। इसी काउंसिल ने हिन्दू विरोधी सांप्रदायिक हिंसा बिल का ड्राफ्ट तैयार किया था। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में भी मंदर सक्रिय रहे हैं। उनके हाल में विडियो भी सामने आए हैं जिसमें वे प्रदर्शनकारियों को उकसाते नजर आए हैं।
हर्ष मंदर के बारे में जाँच पड़ताल करने पर हमें एक बेहद अज्ञात से संगठन Ara Pacis Initiative (API), के बारे में पता चला। मंदर इसके वरिष्ठ सदस्य हैं। वे एपीआई की ‘कॉउन्सिल फॉर डिग्निटी, फॉरगिवनेस, जस्टिस एंड रिकन्शीलिएशन’ के सदस्य हैं।
इस संगठन के बारे में और गहराई से जानकारी जुटाने पर हमें कुछ ऐसे तथ्य मिले जिससे मंदर के खतरनाक मंसूबों का पता चलता है। एपीआई की स्थापना एक अज्ञात इटालियन एक्ट्रेस ने की थी जो शायद वहाँ के शक्ति केंद्रों से काफी नजदीकी रखती है। इसके अलावा इसके फॉउन्डिग मेंबरों में से एक नोबल पुरस्कार विजेता का नाम भी शामिल है। लेकिन इन तथ्यों के अलावा कुछ और तथ्य भी मिले जो इसके इटली सरकार के एक अंग के रूप में काम करने की तरफ इशारा करते हैं।
इस संगठन की वेबसाइट पर साफ़ तौर पर लिखा है कि इसका उद्घाटन 21 अप्रैल 2010 को रोम के मेयर द्वारा किया गया। इसको इटली के राष्ट्रपति का वरदहस्त प्राप्त है। इटली के प्रधानमंत्री तथा विदेश मंत्री कार्यालयों का सहयोग मिला हुआ है। इससे पता चलता है कि एपीआई इटली सरकार का एक अहम कार्यालय है जो उसके हितों की पूर्ति के लिए कार्य करता है।
हमारे संदेह को और पुख्ता किया इस संगठन की प्रेसीडेंट रह चुकी Gaida के लिंक्डइन प्रोफाइल ने। इसमें एपीआई को ‘ग्लोबल नॉट फॉर प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन डेडिकेटेड टू ह्यूमन डायमेंशन ऑफ़ पीस’ कहा गया है। इसमें ‘गैर सरकारी’ शब्द का प्रयोग नहीं हुआ।
इसके अलावा हमें रायटर्स की एक रिपोर्ट भी हाथ लगी जिसमें एपीआई को इतालवी सरकार द्वारा समर्थित एक संगठन बताया गया है जो “कनफ्लिक्ट प्रिवेंशन एंड रेसोलुशन के लिए समर्पित” है। रायटर्स की इस रिपोर्ट के बाद अब इस बात पर कोई शक ही नहीं रह गया कि हर्ष मंदर जिस संगठन के लिए काम करता है वो इतालवी हितों के लिए सक्रिय है।
इस संगठन के लीबिया इनिशिएटिव से संबंधित दूसरी रिपोर्ट्स से भी यह पता चलता है कि हर्ष मंदर इतालवी सरकार और उसकी सीक्रेट सर्विसेज से जुड़े उस संगठन का सदस्य है जो लीबिया से इटली में होने वाले माइग्रेशन पर रोक लगाने की दिशा में काम कर रहा है। यही हर्ष मंदर हैं, जो भारत में घुसपैठियों के खिलाफ किसी कार्यवाही को रोकने के लिए अति उत्सुक दिखाई पड़ते हैं।
मंदर का यह दोहरा चरित्र अभी हाल के नए नागरिकता कानून के विरोध में होते हिंसक प्रदर्शनों के दौरान स्पष्ट तौर से देखा जा सकता है। मंदर और उनका एनजीओ कारवाँ-ए-मोहब्बत इन प्रोटेस्ट्स में काफी सक्रिय भूमिका निभाता देखा गया है। कारवाँ-ए-मोहब्बत ने लोगों से शाहीन बाग़ विरोध-प्रदर्शन में शामिल होने को भी कहा था।
बीजेपी नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने को कोर्ट पहुँचे मंदर का एक वीडियो भी वायरल हुआ है जिसमें वो प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कहते हैं, “ये लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में नहीं जीती जाएगी, क्योंकि हमने सुप्रीम कोर्ट को देखा है- एनआरसी के मामले में, कश्मीर के मामले में, अयोध्या के मामले में। उन्होंने (सुप्रीम कोर्ट) इंसानियत, समानता और सेक्युलरिज्म की रक्षा नहीं की है।” वे आगे कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में हम कोशिश जरूर करेंगे। लेकिन इसका फैसला न संसद में होगा, न सुप्रीम कोर्ट में होगा, बल्कि ये फैसला सड़कों पर होगा। इस वायरल विडियो को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उनसे सफाई भी माँगी है।