Friday, November 15, 2024
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अचानक नहीं आया ‘अग्निपथ’, कारगिल वाली कमेटी ने की थी ऐसी योजना की सिफारिश: कहा था- सेना को हमेशा जवान और फिट रहना चाहिए

भारतीय सेना ने भी लागत को कम करने के लिए अग्निपथ जैसी एक भर्ती योजना का प्रस्ताव दिया था। सेना ने 2020 में युवाओं को 3 साल के लिए भर्ती करने के लिए 'टूर ऑफ ड्यूटी' योजना का प्रस्ताव दिया था। मौजूदा योजना में इस प्रस्ताव के साथ कई समानताएँ हैं। हालाँकि, सेना द्वारा प्रस्तुत योजना में सेवा अवधि 4 साल के बजाय 3 साल तय की गई थी।

जब से रक्षा मंत्रालय ने सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए अग्निपथ योजना की घोषणा की है, इस योजना को बड़ी संख्या में तथाकथित सैन्य उम्मीदवारों और विपक्षी राजनीतिक दलों के विरोध का सामना करना पड़ा है। हमेशा की तरह राहुल गाँधी ने इस योजना की आलोचना की और इसके खिलाफ विरोध को और भड़काया है।

सशस्त्र बलों में भर्ती की इस नई योजना के तहत चार साल के लिए सैनिकों की भर्ती की जाएगी। यह अवधि समाप्त होने के बाद 25 प्रतिशत अग्निवीरों को सेना में स्थायी कर लिया जाएगा, जबकि बाकी अन्य सशस्त्र बलों, मंत्रालयों, राज्य सरकार एवं पुलिस तथा PSUs में नौकरियों के लिए आवेदन में वरीयता हासिल करेंगे। इन अग्निवीरों को ₹11.71 लाख की राशि एकमुश्त ‘सेवा निधि’ पैकेज के रूप में भुगतान किया जाएगा।

इसे भर्ती प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन कहा गया है। वहीं, सैनिक बनने के इच्छुक कुछ युवा मौजूदा भर्ती प्रक्रिया को जारी रखने की माँग करते हुए इसके खिलाफ ट्रेन जला रहे हैं। दूसरी तरफ विपक्षी दलों एवं सेना के कुछ दिग्गजों ने भी इस योजना की आलोचना की है।

हालाँकि, दो दशक पहले कारगिल समीक्षा समिति की रिपोर्ट में सैनिकों के लिए इतनी छोटी सेवा का सुझाव दिया गया था। कारगिल युद्ध के कारण हुई घटनाओं के क्रम का अध्ययन करने और सिफारिशें करने के लिए गठित समिति ने देश की रक्षा में सुधार के लिए कई सुझाव दिए थे। उनमें से कुछ को पहले ही लागू किया जा चुका है।

समिति की प्रमुख सिफारिशों में से एक सैनिकों की औसत आयु को कम करना था, क्योंकि रिपोर्ट में कहा गया था कि सेना को हर समय युवा और फिट रहना चाहिए। समिति ने सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों और केंद्रीय पुलिस बलों के लिए एक एकीकृत जनशक्ति नीति की भी सिफारिश की थी।

कारगिल समीक्षा समिति की सिफारिश

समिति ने कहा था, “देश के सामने आने वाले छद्म युद्ध और बड़े पैमाने पर आतंकवाद की नई स्थिति को ध्यान में रखते हुए अर्ध-सैन्य बलों की भूमिका और कार्यों को पुनर्गठित किया जाना चाहिए, खासकर कमान एवं नियंत्रण तथा नेतृत्व के संदर्भ में। उन्हें प्रदर्शन के उच्च मानकों के लिए प्रशिक्षित करने और आतंकवादी खतरों से निपटने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित करने की आवश्यकता है। सशस्त्र बलों, अर्ध-सैन्य बलों और केंद्रीय पुलिस बलों के लिए एक एकीकृत जनशक्ति नीति अपनाने की संभावना की जाँच होनी चाहिए।”

रिपोर्ट में आगे कहा गया था, “सेना को हर समय जवान और फिट रहना चाहिए। इसलिए 17 साल की सेवा (जैसा कि 1976 से नीति रही है) की वर्तमान प्रथा के बजाय, यह सलाह दी जाएगी कि सेवा को सात से दस साल की अवधि तक कम कर दिया जाए। इसके बाद अधिकारियों और जवानों को देश के अर्धसैनिक बलों में सेवा के लिए मुक्त कर दिया जाए।”

कारगिल युद्ध के बाद गठित समिति ने सुझाव दिया था कि सेवा अवधि की समाप्ति के बाद उन्हें नियमित पुलिस बलों में लिया जा सकता है या संविधान के अनुच्छेद 5 IA (d) के तहत ‘राष्ट्रीय सेवा कोर (या एक राष्ट्रीय संरक्षण कोर) में शामिल किया जा सकता है, जो भूमि एवं जल संरक्षण और भौतिक एवं सामाजिक बुनियादी ढाँचे के विकास की एक श्रृंखला का नेतृत्व करेंगे।”

समिति ने देखा था कि इससे सेना और अर्ध-सैन्य बलों की औसत आयु कम हो जाएगी और पेंशन लागत भी घट जाएगी। इसके साथ ही अन्य अधिकारों, जैसे विवाहित जवानों के लिए क्वार्टर और शैक्षिक सुविधाओं पर होने वाले खर्च भी घट जाएँगे।

समिति ने महसूस किया था कि 1999-2000 में सेना का ₹6,932 करोड़ का पेंशन बिल कुल वेतन बिल का लगभग दो-तिहाई था और यह हर साल तेजी से बढ़ रहा था। इस वर्ष के बजट में रक्षा के लिए ₹5.25 लाख करोड़ आवंटित किए गए हैं। इनमें से ₹1,19,696 करोड़ अकेले पेंशन के लिए आवंटित किए गए हैं। इसका अर्थ है कि रक्षा बजट का लगभग 25% केवल पेंशन के भुगतान के लिए खर्च किया जाता है। वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना के लागू होने के बाद सेना की पेंशन में तेजी से वृद्धि हुई है।

पेंशन पर खर्च की गई इतनी बड़ी राशि का मतलब है कि सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए बहुत कुछ नहीं बचता है। इससे आधुनिक हथियारों और उपकरण प्रणालियों की खरीद प्रभावित होती हैं। रक्षा क्षेत्र को पहले से ही बजट आवंटन का एक बड़ा हिस्सा मिलता है और इसके हिस्से को बढ़ाने की संभावना बहुत कम है। जहाँ कुछ विशेषज्ञ रक्षा के लिए बजट आवंटन बढ़ाने का सुझाव देते हैं, वहीं कारगिल समिति ने इसके खिलाफ सुझाव दिया था।

यह देखते हुए कि बजटीय बाधाओं ने आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित किया है और कुछ परिचालन शून्य पैदा किए हैं, समिति ने कहा था कि रक्षा आवंटन नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। इसके बजाय, सरकार को आधुनिकीकरण पर खर्च बढ़ाने का एक और तरीका खोजना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया था, “समिति जीडीपी के किसी भी प्रतिशत को रक्षा क्षेत्र को आवंटित करने की वकालत करना नहीं चाहेगी। इसे संबंधित विभागों और रक्षा सेवाओं के परामर्श से निर्धारित करने के लिए सरकार पर छोड़ दिया जाना चाहिए।”

इन्हीं सिफारिशों को लागू करती है अग्निपथ योजना

इस योजना के तहत 17.5 ​​वर्ष से 21 वर्ष की आयु के बीच के उम्मीदवारों को अग्निवीर के रूप में भर्ती किया जाएगा। वे केवल 4 साल के लिए काम करेंगे, इसलिए एक अग्निवीर की अधिकतम आयु 25 वर्ष होगी। इस प्रकार, सैनिक अपनी पूरी सेवा अवधि में युवा और फिट रहेंगे।

अग्निपथ योजना के तहत भर्ती किए गए 25% अग्निपथ को नियमित कमीशन में शामिल किया जाएगा और उन्हें उच्च रैंक पर पदोन्नत किया जाएगा। बाकी 75% को सरकारी और पीएसयू नौकरियों में वरीयता दी जाएगी। इसमें राज्य पुलिस बलों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में भर्ती भी शामिल है। पुलिस बलों में कार्यरत सेना में प्रशिक्षित युवा निश्चित रूप से पुलिस और अर्धसैनिक बलों की संचालन क्षमता में वृद्धि करेंगे।

राज्य और केंद्रीय पुलिस बलों के अलावा सेवानिवृत्त अग्निवीर केंद्रीय और राज्य आपदा बलों की मूल्यवान जनशक्ति होंगे। इसी तरह की नौकरियों में शारीरिक फिटनेस की आवश्यकता होगी। इसलिए, जब 75% युवा 4 साल की सेवा के बाद सेना से निकलेंगे तो उनके लिए सरकारी और निजी क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध रहेगा।

अग्निपथ योजना बढ़ते सेना पेंशन पर रोक लगाने में मदद करेगी, क्योंकि अग्निवीर को उनकी सेवा समाप्त होने के बाद पेंशन का भुगतान नहीं किया जाएगा। हर साल लगभग 45,000 से 50,000 अग्निवीर की भर्ती की जाएगी। इससे सेना को पेंशन भुगतान में बचत होगी।

इन सबकी सिफारिश कारगिल समीक्षा समिति ने दो दशक से भी पहले की थी। हालाँकि, इन दो दशकों में आई सरकारों ने इसे लागू करने की कभी कोशिश नहीं की।

सेना ने तीन साल की भर्ती योजना का रखा था प्रस्ताव

सिर्फ कारगिल समिति ही नहीं, भारतीय सेना ने भी जनशक्ति लागत को बचाने के लिए अग्निपथ योजना के समान एक भर्ती योजना का प्रस्ताव दिया था। सेना ने 2020 में युवाओं को 3 साल के लिए भर्ती करने के लिए ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ योजना का प्रस्ताव दिया था। मौजूदा योजना में इस प्रस्ताव के साथ कई समानताएँ हैं। हालाँकि, सेना द्वारा प्रस्तुत योजना में सेवा अवधि 4 साल के बजाय 3 साल तय की गई थी।

सेना ने वर्तमान में 17 वर्षों की सेवा अवधि के बजाय तीन वर्षों के लिए सैनिकों को नियुक्त करके पर्याप्त मौद्रिक बचत की गणना की थी। सेना ने कहा था कि इस धन का उपयोग सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए किया जा सकता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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