नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में साल 2012 को एक मुकदमा दायर किया जाता है। इस मुकदमे में दिल्ली के ‘मजनू का टीला’ नाम की जगह से अतिक्रमण हटाने की माँग की जाती है। लगभग 3 साल चले मुकदमे के बाद NGT ने 13 जनवरी 2015 को इस केस में अपना फैसला सुना दिया। फैसले में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को आदेश दिया गया कि वो यमुना बाढ़ क्षेत्र से सभी अवैध अतिक्रमण हटाए।
इसी फरमान को कबूल करते हुए DDA ने 7 और 8 मार्च 2024 को मजनू का टीला क्षेत्र के पश्चिमी बैंक से सिर्फ झुग्गियों को हटाने का एलान कर दिया। NGT के फरमान की जद में आईं ये झुग्गियाँ उन हिन्दुओं की हैं, जो पाकिस्तान में मज़हबी अत्याचारों से परेशान होकर, सब कुछ लुटाकर केवल अपना धर्म बचाकर भारत आए हैं।
गुरुवार (7 मार्च 2024) को ऑपइंडिया की टीम जमीनी जानकारियाँ जुटाने मजनू का टीला पहुँची। हमने देखा कि महज ‘झुग्गियाँ’ हटाने के फरमान की चपेट में कम से कम हिन्दुओं के 250 ऐसे परिवार हैं, जिनके घरों में सुबह खाना खाने के बाद शाम के भोजन का इंतजाम नहीं है। इनकी कमाई का जरिया सब्ज़ी, फल, मोबाइल एसेसरीज आदि बेचना है।
हालाँकि, हमें बताया गया कि इन कामों में भी अक्सर प्रशासनिक रुकावटें आती रहती हैं। इन घरों में माँ की छाती से चिपके दुधमुँहे बच्चों से लेकर चारपाई की मृत्यु शैय्या पर पड़े बुजुर्ग भी शामिल हैं। कई युवा लड़कियाँ और युवक भी इन्हीं में से हैं, जिनका अगले मुहूर्त में विवाह तय हुआ है। अधिकतर शरणार्थी परिवार पाकिस्तान के सिंध इलाके से आकर बसे हुए हैं।
2 दिनों तक चिपकी रही नोटिस
मजनू का टीला में रहने वाले शरणार्थियों ने हमें बताया कि उनको बताने के बजाय DDA वाले एक जगह नोटिस चिपकाकर चले गए थे। यह नोटिस 2 दिनों तक चिपकी रही। खुद को अनपढ़ बताने वाले कई शरणार्थियों ने कहा कि उन्होंने कुछ पढ़े-लिखे लोगों से नोटिस पढ़वाया, तब उनको पता चला कि उनको बेघर किए जाने की तैयारी चल रही है।
नोटिस में पाकिस्तान से आए इन सभी हिंदू शरणार्थियों को गीता कॉलोनी और द्वारका के 3 अलग-अलग रैन बसेरों में शिफ्ट होने का आदेश मिला है। हालाँकि, ये असहाय शरणार्थी अपनी गृहस्थी को देखते हुए इन रैन बसेरे को नाकाफी मानते हैं। प्रशासन के इस निर्णय से इन हिंदू शरणार्थियों में अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर एक बार फिर डर बैठ गया है।
नोटिस की ‘इत्यादि’ शब्द में हुआ बड़ा खेला
NGT के आदेश में साफ-साफ यमुना के बाढ़ क्षेत्र से ‘सभी अतिक्रमण’ हटाने के निर्देश हैं। इसका पालन करने निकले DDA ने नामजदगी के तौर पर सिर्फ ‘झुग्गियाँ’ ही लिखी हैं। हालाँकि, पीछे ‘इत्यादि’ लगाकर भविष्य में अपनी कागजी सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा गया है। मजनू का टीला पहुँची ऑपइंडिया की टीम ने DDA के इसी ‘इत्यादि’ की तलाश की।
‘इत्यादि’ में हमें बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, स्पा सेंटर, शॉपिंग कॉप्लेक्स, लक्जरी कारें, गुरुद्वारे का रिवर व्यू, पंचर की दुकानें जैसी अन्य तमाम चीजें नजर आईं। हमारा मानना है कि अगर अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान प्राथमिकता में DDA अपने ‘इत्यादि’ को रखता तो उस पर एकतरफा कार्रवाई करने और गरीबों को सताने जैसे आरोप नहीं लग रहे होते।
तिब्बती मार्किट के बहुमंजिला मकान और दुकानें नजरअंदाज
शरणार्थी हिन्दुओं से बातचीत के दौरान पता चला कि उनकी झुग्गियों के पास ही तिब्बती मार्किट है। उन्होंने दावा किया कि तिब्बती मार्किट का बड़ा हिस्सा यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में है। इन दावों की पड़ताल करने हम तिब्बती मार्किट पहुँचे। हमने देखा कि बेहद सटाकर बने पक्के मकानों की संकरी गलियों में कई प्रकार के कारोबार चल रहे हैं। इनमें स्पा सेंटर, रेस्टोरेंट और कपड़ों की दुकानें आदि प्रमुख हैं।
ये मकान नदी की ढलानों पर बने हुए हैं, जो सुरक्षा के मानकों के अनुरूप भी नहीं हैं। नीचे आकर हमने पाया कि एक चारदीवारी नदी और उसके बाढ़ क्षेत्र में बने तिब्बती मार्किट की इंसानी बस्ती को अलग करती है। इस चारदीवारी से सटकर थार जीप सहित तमाम अन्य लक्जरी कारें खड़ी थीं। रिवर व्यू के एंगल से बने रेस्टोरेंट्स से म्यूजिक की आवाज आ रही थी। प्रतिदिन यहाँ करोड़ों रुपए का कारोबार होता है।
नदी के सूखे क्षेत्र में खेती कर रहे एक व्यक्ति ने हमें बताया कि लगभग 35 साल पहले यह जगह वीरान थी, लेकिन अब वहाँ पूरी पक्की बस्ती बना दी गई है। हमें यह भी बताया गया कि अभी भी बाढ़ आने पर तिब्बती मार्किट के कई घरों में बाढ़ का पानी घुस जाता है। इन बस्तियों में तिब्बत के साथ नेपाल के भी तमाम लोग रहते हैं। तिब्बती मार्किट के बीचोंबीच एक बौद्ध मंदिर भी बना है। DDA की नोटिस में तिब्बती मार्किट का कोई जिक्र नहीं है।
गुरूद्वारे का बड़ा हिस्सा भी यमुना बाढ़ क्षेत्र में
मजनू का टीला के जिस स्थान पर पाकिस्तान के आकर हिंदू शरणार्थी झुग्गियों में रहते हैं, उससे ठीक सटकर गुरुद्वारा बना हुआ है। इस गुरुद्वारे की बाउंड्री झुग्गियों की समानांतर है। दोनों को एक नाला अलग करता है। हमने देखा कि गुरुद्वारे का एक बड़ा चबूतरा यमुना नदी से सटकर बना हुआ है। कुछ स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि गुरुद्वारे का बीच में विस्तार भी किया गया है, जिसमें कुछ रिहायशी मकान आदि बने हैं। हमें अंदर अभी भी कंस्ट्रक्शन मशीनें दिखीं।
अभी तक ऐसी कोई जानकारी सामने नहीं आई है, जिसमें DDA को गुरुद्वारे के आसपास अतिक्रमण दिखा हो। गुरुद्वारे की बाउंड्री में बने घरों में हालत पूरी तरह से सामान्य थे। यहाँ तक कि हमारी ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान नदी के मुहाने पर बने बड़े चबूतरे पर लोग चहलकदमी करते दिखे।
शिक्षा केंद्र, मंदिर और गौशाला पर बुलडोजर चलाने की तैयारी
DDA की नोटिस में जिस जगह को महज झुग्गी बताया गया है, वह जगह ‘गागर में सागर’ की तरह है। शरणार्थी हिन्दू भले ही खुद कच्चे मकानों में रह रहे हैं, लेकिन उन्होंनें मेहनत-मजदूरी से बस्ती के बीचो बीच एक पक्का मंदिर बनवा दिया है। यहाँ महादेव और माँ दुर्गा की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई है। झुग्गी के अधिकतर लोग यहाँ पूजा-पाठ करते हैं।
इसके अलावा, वहाँ एक गोशाला भी बनाया गया है। इस गौशाला में देशी नस्ल की गायों के साथ कुछ बछड़े भी दिखाई दिए। अभी तक यह स्पष्ट है कि जिस रैन बसेरे में इन लोगों जाने के लिए कहा जा रहा है, वहाँ गोवंश को रखने का क्या इंतजाम है। शरणार्थियों ने हमें बताया कि वो अपने साथ पाले गए गोवंश के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन पूरी बस्ती में दीवाली मनाई गई थी। उस दौरान सभी ने अपने घरों पर जय श्रीराम वाले झंडे लगाए थे, जो अभी तक लगे हुए हैं। इसी बस्ती में हमें एक शिक्षा केंद्र भी नजर आया। यहाँ कई बेंच और किताबें मिलीं। यह शिक्षा केंद्र HAI नाम के NGO द्वारा संचालित है।
यहाँ पर क्लास 1 से 12 तक के छात्रों को पढ़ाया जाता है। जब हम यहाँ पहुँचे तो यहाँ छात्र नदारद थे। पास ही खेल रहे एक बच्चे से हमने पढ़ने न जाने की वजह पूछी तो उसने बताया कि घर वाले टेंशन में हैं कि न जाने आज और कल क्या होगा। घर के आगे खड़ी बच्चे की माँ ने हमसे राम-राम कह कर अभिवादन किया।
जो पाकिस्तान में झेला वो अब यहाँ भी शुरू
तमाम अलग-अलग शरणार्थियों से ऑफ़ द कैमरा बात करते हुए हम शरणार्थी बस्ती के प्रधान सुखनंदन के पास पहुँचे। सुखनंदन ने हमें बताया कि उन्होंने राहत के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में गुहार लगाई है, जिस पर इसी सप्ताह सुनवाई होने जा रही है। खुद को पहले भी DDA के अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित बताते हुए सुखनंदन ने कहा कि बस्ती के लोग जो पाकिस्तान में झेलकर आए वही अब यहाँ शुरू हो चुका है।
सुखनंदन ने यह भी दावा किया कि तिब्बती मार्किट और गुरुद्वारे का एक हिस्सा बाढ़ क्षेत्र में आता है। इसके अलावा, म्यांमार से अवैध रूप से भारत में आए रोहिंग्या मुस्लिमों ने वहाँ की अच्छी-खासी जमीनों पर भी कब्ज़ा कर लिया है। इसके बावजूद उन पर कार्रवाई नहीं हो रही है। खुद को प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाते हुए सभी ने एक स्वर में सरकार से रहम करने की अपील की।