मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का सबसे बड़ा हथियार रोजगार का मुद्दा लगातार भोथरा होता जा रहा है। उद्योगों के समूह सीआईआई के बाद पीएचडी चेम्बर ऑफ़ कॉमर्स ने भी अपने सर्वेक्षण में यह पाया कि नौकरी तलाश रहे युवाओं के घरों से 64% घरों में कम-से-कम से एक व्यक्ति को नौकरी मिली है।
गौरतलब है कि इससे पहले सीआईआई के सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आई थी कि केवल एमएसएमई सेक्टर की ही कंपनियों ने पिछले चार साल में 1.5 करोड़ रोज़गार प्रति वर्ष की दर से नौकरियों के अवसर उपलब्ध कराए हैं। यह न केवल विपक्ष के इन दावों के खिलाफ गया कि मोदी सरकार में नौकरी पाना पहले से भी मुश्किल हो गया है, बल्कि सीआईआई की कॉन्ग्रेस के साथ मानी जाने वाली नजदीकी के चलते इस आँकड़े को सिरे से खारिज करना भी कॉन्ग्रेस के लिए मुश्किल था।
(2013 में राहुल गाँधी ने जहाँ सीआईआई में भाषण दिया था, वहीं तब गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी सीआईआई के प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले उद्योग समूह फिक्की के 90वें वार्षिक समारोह में बोले थे। यही नहीं, मोदी को सीआईआई के 2003 के समारोह में भी 2002 के गुजरात दंगों को लेकर बैकफ़ुट पर धकेलने की कोशिश हुई थी। ऐसे परिप्रेक्ष्य में सीआईआई के जॉब-डेटा को नकारना कॉन्ग्रेस के लिए बहुत मुश्किल था, और अब ऊपर से पीएचडी ने सीआईआई के सर्वेक्षण पर मुहर लगा दी।)
55% शहरी, 45% ग्रामीण; मेट्रो शहर सबसे आगे
पीएचडी के सर्वे के अनुसार उसका सर्वेक्षण लगभग 27,000 लोगों के जवाबों पर आधारित है। यह संख्या किसी भी जॉब सर्वेक्षण के लिहाज से छोटी नहीं कही जा सकती। सर्वे में शामिल 55% लोग शहरी इलाकों के रहने वाले थे, वहीं 45% लोग ग्रामीण इलाकों के निवासी थे।
सर्वे में मेट्रो शहरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बंगलुरु) के 77% युवाओं ने नौकरी तलाशने में सफलता की बात कही, वहीं टियर-2 शहरों में 67%, टियर-1 शहरों में 61%, और ग्रामीण इलाकों के 49% लोगों को नौकरी तलाशने में सफलता मिली।
साथ में पीएचडी ने इस और ध्यान भी आकर्षित कराया कि जहाँ निजी क्षेत्र की जितनी ज्यादा पैठ है, जैसे मेट्रो और टियर-2 शहर, वहाँ नौकरियाँ उतनी ज्यादा उपलब्ध हैं। पीएचडी के अध्यक्ष राजीव तलवार ने यह बात रिपोर्ट पर चर्चा के समय कही। इसे पीएचडी चेंबर की ओर से आर्थिक उदारीकरण और आर्थिक सुधारों को जारी रखने की वकालत की तौर पर देखा जा सकता है।
टियर-2 शहर सबसे आगे, नौकरियों की गुणवत्ता भी बढ़ेगी यहाँ
टियर-2 शहर मेट्रो शहरों से भले नौकरियों की वर्तमान संख्या में पिछड़ गए हों पर उद्योग जगत निश्चित तौर पर इन्हें ही आगामी आर्थिक बढ़त के इंजन के रूप में देख रहा है। इस सर्वे में भी नौकरियों की भविष्य की संभावनाओं को टियर-2 शहरों में सबसे तेजी से बढ़ते हुए देखा गया है। साथ ही राजीव तलवार ने इसकी भी उम्मीद जताई कि न केवल संख्या बल्कि नौकरियों की गुणवत्ता में भी टियर-2 शहरों में बहुत संभावनाएँ हैं।. साथ ही यहाँ शिक्षा के भी बहुत सारे अवसर उत्पन्न होंगे। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत का यह विकास केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक-सामाजिक है।
युवा शक्ति, निजी सेक्टर नौकरियाँ पैदा करने में आगे
सर्वे में शामिल 86% लोगों को 18-35 वर्ष की आयु में इन नौकरियों को पाने वाला बताते हुए तलवार ने इसे युवाओं की बढ़ रही आर्थिक भागीदारी और उन्हें उद्योग जगत द्वारा दी जा रहे मौकों के तौर पर पेश किया।
इसके अलावा 60.4% नौकरियाँ निजी क्षेत्र की हैं, 21.2% सरकारी पदों पर नियुक्ति से पैदा हुईं, और सरकारी कम्पनियों ने 5.2% प्रतिशत लोगों को नौकरी दी।
5.1% लोगों ने कहा कि वे स्वरोजगार में लगे हैं, 3.3% प्रतिशत ने निजी-सरकारी भागीदारी (पीपीपी) वाले संस्थानों में स्वयं को नियुक्त बताया, और 4.8% के रोजगार इनमें से किसी भी श्रेणी के नहीं थे।
वहीं अगर नौकरी देने वाली कंपनियों के आकर की बात करें तो अधिकतम (49%) नौकरियाँ देने वाली कंपनियाँ मध्यम से बड़े आकार की थीं। इनमें भी बड़े आकार की कम्पनियों की भागीदारी 30% नौकरियां पैदा करने की रही, वहीं मध्यम आकार की कम्पनियों ने 19% रोज़गार दिए।
वहीं एमएसएमई के द्वारा दी गए 51% रोजगारों की अगर बात करें (यह वही सेगमेंट है जिसके 6 करोड़ नौकरियाँ पैदा करने की बात सीआईआई के सर्वे में कही गई थी) तो इनमें लघु उद्योगों ने 22% नौकरियाँ दीं हैं। वहीं 29% नौकरियाँ लघु से मध्यम आकार के उद्योगों ने दीं हैं।
कंपनियों के क्षेत्र की बात करें तो बैंकिंग सेक्टर में सबसे ज्यादा नियुक्तियाँ (12.5%) हुईं हैं, जिसके बाद शिक्षा व प्रशिक्षण क्षेत्र में 12.1% नौकरियाँ मिलीं, वहीं आईटी व इससे जुड़े सेवा क्षेत्र ने 11.6% नियुक्तियाँ की हैं। इसका निहितार्थ इस तौर पर देखा जा सकता है कि आईटी सेक्टर में दबदबा कायम रखते हुए भारत शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में भी एक ताकत के तौर पर उभरने के लिए कमर कस रहा है।
इसके अलावा फैशन डिजाइनिंग, कंसल्टिंग, टैक्स व कानूनी सेवाएँ, डाटा एनालिटिक्स, आदि क्षेत्र भी बड़े नियोक्ताओं के तौर पर उभर रहे हैं।
जो नौकरियाँ दी जा रहीं हैं, उनमें 79% लोग पूर्णकालिक रूप से कार्यरत (full-time employment) में हैं, 7% संविदा (contract) पर हैं, 6% अंशकालिक (part-time) हैं. 5% स्वरोजगार में हैं, और केवल 3% दैनिक रोजगार (दिहाड़ी) पर हैं।
₹31,000+ है सबसे common तनख्वाह, महिलाओं-पुरुषों के बीच का भेद भी रहा पट
केवल नौकरियों ही नहीं, लोगों की आय के मामले में भी इस सर्वे से जो तस्वीर निकलती है, उसे निराशाजनक तो नहीं ही कह सकते। न केवल नई नौकरियाँ पाने वाले इन लोगों में 60% की तनख्वाहें ₹10,000 से ₹50,000 के बीच हैं। यह कितना अच्छा है, इसपर दोराय बेशक हो सकती है, पर यह कॉन्ग्रेस द्वारा खींचे जा रहे स्याह खाके से तो बिलकुल मेल नहीं खाता. ₹31,252.28 पीएचडी के सर्वे में सबसे आम (median) तनख्वाह मानी गई है।
यदि नौकरी पाने वालों में लैंगिक असमानता की भी बात करें तो महिलाओं(40%) और पुरुषों(60%) में अंतर केवल 10% का होना बेहद उत्साहजनक माना जाएगा।