पिछले पाँच साल से जब भी हम मवेशियों के बारे में कोई भी चर्चा करते हैं, अवश्यंभावी रूप से उसका अवसान शशि थरूर के “आज भारत में गाय होना मुस्लिम होने से ज्यादा सुरक्षित है” में ही होता है (यह बात वह संसद, ट्विटर, और गुप्ता जी के द प्रिंट में कह चुके हैं) एक नैरेटिव की जकड़ बन गई है कि दुष्ट (खासकर कि अमीर, उच्च-वर्गीय अथवा अगड़ी जातियों के) हिन्दू सड़कों पर पूरा दिन इसीलिए खलिहर घूम रहे हैं कि कोई दूसरे मजहब का मिल जाए मवेशी या मीट के साथ, उसे वहीं पीट-पीट कर मार डाला जाए। और यह नैरेटिव है कि टूटता ही नहीं है- तब भी नहीं टूटा जब यह साफ़ हो गया कि कि जुनैद सीट के झगड़े में मारा गया था, बीफ के नहीं; अब भी नहीं टूटेगा जब स्वराज्य पत्रिका ग्राउंड रिपोर्ट ले आई है कि केवल हिन्दू ही नहीं, समुदाय विशेष का किसान भी मवेशी डाका डाल कर लूटने वाले गुंडों से त्रस्त हैं, और कानून हाथ में तब लेते हैं जब पुलिस कह देती है कि हमारे पास फ़ोर्स नहीं है, खुद देख लो!
अलवर से ग्राउंड रिपोर्ट, चोरी और डकैती ही नहीं, फिरौती भी है मवेशियों की
स्वराज्य संवाददाता स्वाति गोयल-शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान के अलवर में मवेशी चोरी और डकैती का बाकायदा संगठित माफिया गिरोह चल रहा है। पुरानी फिल्मों में जैसे डाकू गिरोह और झुण्ड बनाकर आते हैं, निहत्थे किसानों के मुकाबले उनके पास असलहे की कमी नहीं होती, और किसानों को धमकी दे देते हैं कि घर से बाहर मत निकलना- और यह केवल हिन्दुओं के ही साथ नहीं, मुस्लिम किसानों के साथ भी होता है। शफी खान को भी ₹2.5 लाख के मवेशियों से हाथ धोना पड़ा। किसान की कमर, और उसका ‘कानून में विश्वास’ तोड़ने के लिए यह राशि काफी है। हिन्दू किसान ही नहीं ,रहीस खान ने भी संवाददाता से कहा कि अगर मवेशी-डकैत उनके हाथ लग गए तो पुलिस तो बाद में, वह खुद पहले उन डकैतों को ‘सबक सिखाएँगे’।
जिला अलवर, थाना क्षेत्र रामगढ़ (जो कि 60 गाँवों का थाना है) के अलावड़ा गाँव के इसहाक खान का कहना है कि तीन-तीन भैंसों के रूप में एक झटके में ₹3 लाख से हाथ धो देने के बाद भी वह पुलिस के पास नहीं जाते। कैमरे पर, ऑन-रिकॉर्ड वह और अलावड़ा के ही निवासी शफ़ी खान बताते हैं कि पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मवेशियों का मिलना नामुमकिन हो जाता है; ऐसे बिना पुलिस के तो यह उम्मीद बनी रहती है कि शायद मवेशियों की कीमत का कुछ हिस्सा (जोकि 80% तक भी हो सकता है, यानि ₹50,000 की भैंस पर ₹40,000 तक भी हो सकता है) देकर मवेशी वापिस मिल जाएँ। पुलिस में ऐसी ही विश्वास की कमी के चलते 60 गाँवों के थाने में पिछले तीन साल में एक भी मवेशी-चोरी की रिपोर्ट नहीं है- क्योंकि पता है कि पुलिस न केवल मदद नहीं कर सकती, बल्कि पुलिस के आने के बाद मामला बिगड़ ही जाना है। और फर्जी-लिबरल मीडिया गिरोह ऐसे ही हालात में ‘बने’ आँकड़ों को उठा कर “कहाँ होती है मवेशी की चोरी? सब झूठ है।” का नैरेटिव रचता है।
Cattle owners Ishaq Khan and Shafi Khan, both victims of cattle smuggling menace, on why dint get police involved
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) May 28, 2019
I found in records of Ramgarh police station – which caters to 60 villages – that it hasn’t registered a single cattle theft case in 3 years
Any wonder? pic.twitter.com/QbafcGSmN2
यहाँ मवेशी-डकैतों के पास पुलिस से ज्यादा असलहा होता है
शफ़ी खान आगे और भी भौंचक्का कर देने वाली जानकारी देते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक रुँध स्थित अपने अड्डे पर इन मवेशी-डकैतों ने भारी मात्रा में असलहा जमा कर रखा है। बताते हैं कि कैसे पास के छंगलकीगाँव के थानेदार की भी बकरियाँ और भैंसों को मवेशी-डकैत उठा ले गए तो पुलिस ने वहाँ (रूँध स्थित मवेशी-डकैतों के ठिकाने पर) धावा बोल दिया। दोनों तरफ से भारी गोलीबारी हुई लेकिन अंत में पुलिस के पास मवेशी-डकैतों से पहले गोला-बारूद खत्म हो गया। किसी तरह जान बचाकर वहाँ से निकलना पड़ा। उसके बाद से पुलिस ने उस इलाके का रुख करना ही छोड़ दिया।
‘कॉन्ग्रेस की वजह से मेवे मुस्लिम ले गए गाय, भाजपा के राज में ऐसा कभी नहीं हुआ’
डाइका गाँव के वीर सिंह के हवाले से रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अधिकाँश मवेशी-डकैत मेवे (मेवाती) मुस्लिम हैं जिन्हें कॉन्ग्रेस के कोर वोट-बैंकों में से एक होने के चलते सरकारी संरक्षण प्राप्त है; इससे स्थिति पूरी तरह से बेकाबू हो गई है, और मवेशी-डकैतों के हौसले बुलंद हैं। मेवाती पट्टी राजस्थान के अलवर और हरियाणा के नूह जिलों में स्थित है, और इसे मवेशियों की डकैती और उनकी अवैध हत्या का ‘हब’ माना जाता है। वीर सिंह ने यह भी कहा कि राजस्थान में पिछले साल तक रही वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार के समय में हालात बेहतर थे।
Travelling in Alwar, a repeated complaint against current Congress govt in state is that of a steep rise in thefts of vehicles and cattle. Thieves, mainly from Mewat belt, having a free run now, I am repeatedly told pic.twitter.com/5ZqFp0f4M3
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) May 3, 2019
‘पुलिस मदद करने की बजाय हम ही पर केस ठोंक रही है’
अलवर के मवेशी किसान चक्की के दो नहीं, कई पाटों में पिस रहे हैं। एक तरफ मवेशी-डकैतों के आतंक से गाढ़ी कमाई से खरीदे मवेशी चले जाते हैं, जिससे भूखे मरने और बेरोजगारी की नौबत आ जाती है। दूसरी ओर से पुलिस हाथ खड़े कर रही है कि उसके हाथ में कुछ नहीं है।
लेकिन जब यही किसान खुद चार-पाँच का दल बनाकर सड़कों पर, हाइवे पर पहरा देते हैं कि अपने मवेशियों को यूपी के अलीगढ़ या हरियाणा के मोहम्मदपुर में कटने के लिए ले जा रहे मवेशी-डकैतों से छुड़ा लें तो शेर बनती वही पुलिस ‘कानून हाथ में लेने’ के जुर्म में उन गरीब किसानों को गिरफ्तार करने दौड़ी आती है, क्योंकि उस पर सरकार का दबाव होता है, और सरकार पर मेवाती मुस्लिमों के वोट बैंक का और फर्जी-लिबरल गैंग का दोहरा दबाव।
स्वाति गोयल-शर्मा लिखतीं हैं कि भूखे किसानों का गुस्सा किसी भी दिन फूट सकता है- किसान मवेशी-चोरों को जान से मारकर उसकी जिम्मेदारी लेने के लिए भी तैयार हैं । समाज रात-दिन तोते की तरह ‘अहिंसा-अहिंसा’ रटाने से अहिंसक नहीं हो जाता, बल्कि सरकार और तंत्र के इस भरोसे से अहिंसक होता है कि उसे अन्याय से लड़ने के लिए हथियार उठाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। राजस्थान की गहलोत सरकार अलवर के डेयरी किसानों के बीच चौपाल में बैठकर, उनसे आँख मिलाकर यह भरोसा दे सकती है?
A genuine question after this report: what options do cattle owners have other than deal with thieves on their own? As you can see, they cannot rely on police at all who actually tell them they don’t have enough manpower.
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) May 28, 2019
Or should villagers give up rearing cattle altogether? https://t.co/RlcIJplz2Y