सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड हालाँकि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को स्वीकार कर चुका है, लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अभी भी इस निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका डालने पर अड़ा हुआ है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमसी) के संयोजक एडवोकेट ज़फ़रयाब जीलानी ने इस आशय से जानकारी मीडिया को दी।
AIMPLB will file review plea against SC’s Ayodhya verdict before Dec 9: Zafaryab Jilani https://t.co/L29Py3INI4 pic.twitter.com/STwx2IMxbH
— Times of India (@timesofindia) November 27, 2019
टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए गए अपने इंटरव्यू में उन्होंने सवाल उठाया कि “अवैध रूप से घुस आई” मूर्ति को भला अदालत देवता कैसे मान सकती है। उन्होंने दावा किया कि इस तरह ‘जबरन’ मूर्ति को (उस समय, 1949 में) विवादित रहे ढाँचे में स्थापित कर वहाँ बनी बाबरी मस्जिद का अपमान किया गया है।”
जीलानी का दावा है कि उनकी याचिका तत्कालीन मस्जिद के मुख्य गुंबद में रखी गई मूर्ति को देवता का दर्जा देने के विरोध पर आधारित होगी। उनका मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस बिंदु पर ध्यान दिया होता तो उनका फैसला अलग होता। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी याचिका समयसीमा 9 दिसंबर से पहले ही आएगी।
The All India Muslim Personal Law Board (AIMPLB) will file a review plea against #SupremeCourt‘s verdict on the #Ramtemple issue. Senior advocate Zafaryab Jilani said on behalf of AIMPLB that the review petition would be filed before the 30-day limit which ends on December 9. pic.twitter.com/d7VGC1JUPh
— IANS Tweets (@ians_india) November 27, 2019
जफरयाब जीलानी मुस्लिम पक्ष के पहले वकील नहीं हैं जिन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हमला बोला है। इनके पहले मुस्लिम पक्ष की पैरोकारी करने वाले एक अन्य वकील राजीव धवन ने विवादास्पद बयान दिया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले में विवादित रहे 2.77 एकड़ समेत पूरी 67 एकड़ भूमि हिन्दुओं को रामलला का मंदिर बनाने के लिए दिए जाने को मुस्लिम पक्ष के साथ अदालत का अन्याय करार दिया। साथ ही दावा किया कि हिन्दुओं ने माहौल खराब किया और मुस्लिम पक्ष शांत रहा। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी ऐसे ही आरोप लगाए थे।
गौरतलब है कि 9 नवंबर, 2019 के अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यों वाली संविधान बेंच ने राम जन्मभूमि स्थल का पूरा मालिकाना हक हिन्दुओं को दिया था। साथ ही मस्जिद बनाने के लिए अलग से 5 एकड़ ज़मीन देने के निर्देश केंद्र सरकार को दिए थे। इस पीठ की अध्यक्षता तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई ने की थी और इसमें मुस्लिम जज जस्टिस अब्दुल नज़ीर भी शामिल थे। पीठ ने अपना फैसला सर्वसम्मति से दिया था।