बुर्का पहने एक महिला ऑटो से उतरती है। नोएडा के कॉरपोरेट हाउस की घंटी बजाती है। गार्ड ने दरवाजा खोला तो लिफाफा थमाते हुए कहा अमित जानी को दे देना। हिंदूवादी नेता ने सुरक्षा की लगाई गुहार।
जो पुलिस व्यवस्था पिछली सरकार में कुछ ख़ास नहीं कर रही थी, वही यूपी पुलिस इस सरकार में बदले रूप में कैसे दिखती है, इस पर भी अलग अलग वजहें गिनाई जा सकती हैं। हाँ, बदला निजाम सबको पसंद आ रहा या नहीं, कुछ लोग भीतर ही भीतर इससे नाराज तो नहीं होंगे, इसके बारे में भी सोचा जा सकता है।
मोहम्मद इमरान अंंसारी ने फ़ेसबुक पर हँसी-ठिठोली की इमोजी का इस्तेमाल करते हुए 'एक ट्रक निंदा' कमेंट लिखकर कमलेश तिवारी की हत्या की ख़बर शेयर की। इस पर अकबरपुर थाना इलाक़े के निवासी दानिश नवाब ने कमेंट किया, "जिसने भी मारा हो उसे 72 तोपों से सलामी दी जाए।"
ख़ास बात यह है कि उसने ये फेसबुक अकाउंट अपने नाम से नहीं बल्कि रोहित सोलंकी के नाम से बनाया था। जब हमने उस फेसबुक प्रोफाइल को खंगाला तो पाया कि उसके प्रोफाइल पिक्चर में 'हिन्दू राज' और भगवा ध्वज लगा हुआ था।
हैदराबाद के सांसद और AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने साल 2015 में कमलेश तिवारी को जान से मारने की धमकी दी थी। ओवैसी के इस बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ासा वायरल हो रहा है। वीडियो में ओवैसी को कहते सुना जा सकता है कि...
पीड़ित परिवार ने लखनऊ में कमलेश तिवारी की प्रतिमा लगाने की माँग की है। साथ ही खुर्शीद बाग़ इलाक़े का नाम बदल कर कमलेश नगर करने की माँग की गई है। हिंदुत्ववादी नेता तिवारी की 18 अक्टूबर को उनके कार्यालय में निर्मम हत्या कर दी गई थी।
स्वयंभू राजनीतिक विश्लेषक खान ने एक टीवी डिबेट के दौरान तिवारी की हत्या की निंदा से इनकार कर दिया। ख़ान कई राजनीतिक दलों से जुड़े रहे हैं। कथित तौर पर, वे बीबीएमपी नगरपालिका चुनावों में बसपा के उम्मीदवार थे। उससे पहले वे जेडीएस के प्रवक्ता भी रह चुके हैं।
पहले वीडियो में वह कमरा है जहॉं संदिग्ध हत्यारे ठहरे थे। यहीं से पुलिस ने खून लगा कुर्ता बरामद किया है। दूसरा वीडियो उस समय का है जब अशफ़ाक़ और मोईनुद्दीन होटल में कमरा लेने पहुॅंचे थे। तीसरा वीडियो कमलेश तिवारी के कार्यालय जाने के लिए होटल से निकलने के वक्त का है।
होटल से हत्यारे भगवा कपड़ा पहनकर कमलेश तिवारी से मिलने पहुॅंचे। हत्या के बाद होटल आये और कपड़े बदल कर फरार हो गए। होटल मालिक के पास से आरोपियों की आईडी भी मिली है, जिस पर नाम के साथ सूरत का पता दर्ज है।
हिन्दू ये देख कर सिनेमा नहीं देखता कि उसमें पांडे है कि खान। हिन्दू ये देख कर सामान नहीं खरीदता कि दुकानदार चौधरी है कि मलिक। हिन्दुओं का कोई हलाल सिस्टम है ही नहीं जहाँ बकरे के पैदा होने से ले कर, उसके कटने, छिलने, पैक होने और दुकान में रखे जाने तक बस एक ही मजहब के लोग हैं।