“हम नॉर्थ ईस्ट और हिंदुस्तान को परमानेंटली काट कर सकते हैं। परमानेंटली नहीं तो कम से कम एक-आध महीने के लिए असम को हिंदुस्तान से काट ही सकते हैं। मतलब इतना मवाद डालो पटरियों पर, रोड पर कि उनको हटाने में एक महीना लगे। जाना हो तो जाएँ एयरफोर्स से।”
दीपक चौरसिया और रवीश कुमार दोनों ही वरिष्ठ पत्रकार हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि दोनों की सैलरी अलग-अलग जगह से आती है। लेकिन हैं दोनों ही पत्रकार। शायद शाहीन बाग वाले इस बात को समझ नहीं पाए। तभी एक तरफ वो रवीश के साथ याराना रखते हैं जबकि दीपक चौरसिया के साथ मारपीट की जाती है।
पूरे शहर में धारा-144 और कर्फ़्यू लगने के बाद भी कई जगहों पर हिंसक झड़पें हुई। बरवा टोली स्थित एक खड़े ट्रक में रात 9:30 बजे उपद्रवियों ने आग लगा दी। पुलिस जब तक वहाँ पहुँची, तब तक ट्रक धू-धू कर जल चुका था। इस घटना के बाद उस इलाके के लोग दहशत में हैं।
सीएए विरोध के नाम पर हो रही हिंसाओं से चिंतित देश के 154 पूर्व जजों और अधिकारियों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिख कर हिंसा करने वालों के ख़िलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की हैं। साथ ही इन्होंने आशंका जताई है कि इस विरोध के नाम पर प्रदर्शनकारियों द्वारा देश को तोड़ने की साजिश रची जा रही है।
ताज़ा मामले में शाहीन बाग में पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी है। इसके तहत पुलिस ने मंच से सात-आठ लोगों को पूछताछ करने के लिए अपने साथ पुलिस-स्टेशन ले गई है। पुलिस द्वारा इस कार्रवाई से नाराज़ प्रदर्शनकारी थाने पहुँच गए।
शाहीन बाग़ में चल रहे CAA-विरोधी प्रदर्शन में आज न्यूज़ नेशन के वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया के साथ वहाँ प्रदर्शन कर रहे गुंडों ने बदसलूकी की। यही नहीं, उनके साथ हाथापाई करने के बाद उनका कैमरा भी तोड़ दिया गया।
ट्विटर पर कनव शर्मा नाम के एक व्यक्ति ने, जो कि 'A.T. Kearney' नाम की एक कम्पनी में मैनेजमेंट कंसल्टेंट के तौर पर काम करते हैं (उनके ट्विटर द्वारा प्राप्त जानकारी) ने अपने ट्विटर अकाउंट के जरिए एक ओला कैब ड्राइवर के प्रति अपनी नफरत को जाहिर किया है।
महेश्वरी अम्मा सईनुद्दीन के घर उन बच्चों की पहचान करने के लिए गई थीं, जिन्हें पोलियो का टीका नहीं लगा था। पूछताछ के बाद, सईनुद्दीन परिवार ने आशा कार्यकर्ताओं को सूचित किया कि उनके यहाँ पाँच वर्ष से कम आयु का कोई बच्चा नहीं है।
"मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी कि ऐसे शब्द पेन पर छपे थे। जब दूकानदार दुकान पर पहुँचे, तो एक मुस्लिम लड़के ने पेन देखा और वो वहाँ से चला गया। एक अन्य व्यक्ति दुकान पर आया, उसने पेन की तस्वीर ली और उसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया।"
जब से क्रांति कुमार उर्फ़ केके दिल्ली के मशहूर 'विष-विद्यालय' से अपनी सदियों से चली आ रही पीएचडी पूरी कर गाँव लौटा था, तब से वो बुझा-बुझा सा रहने लगा था। गाँव में न गंगा ढाबा का सस्ता किन्तु लजीज खाना था, ना ही सस्ते हॉस्टल और ना ही ढपली बजाने के लिए किसी तरह की कोई सब्सिडी।