शब्दों का इस्तेमाल गलत कार्य के लिए मत कीजिए। किसी दिन उँगली जवाब दे देगी और गला सूख जाएगा। कई बार ऐसा होता है कि ज्ञान का इस्तेमाल गलत कार्य के लिए हो तो वह ज्ञान गायब हो जाता है।
मतलब, संकट मोचन मंदिर से लेकर लोकतंत्र के मंदिर संसद तक हमले में मरने वाले अधिकतर लोग हिन्दू ही होते हैं (क्योंकि जनसंख्या ज्यादा है और टार्गेट पर भी वही होते हैं) और मारने वाले हर बार कट्टरपंथी होते हैं, फिर भी असली हिंसा तो गौरक्षकों द्वारा गौतस्करों को सरेराह पीट देना है।
रवीश मुहल्ले की गली का वो लौंडा है जो किसी लड़की के नाम से हाथ काट लेता है, और लड़की को पता भी नहीं होता कि उसका नाम क्या है। रवीश के ऐसे प्रोग्रामों को देख कर मैं बस इसी इंतज़ार में हूँ कि वो किस दिन कलाई का नस काट कर कहेंगे कि उन्हें कुछ होगा तो ज़िम्मेदार मोदी ही होगा।
दिक्कत है मामले की गंभीरता और शब्दों के चुनाव से छिछोरेपन को, सेक्सिस्ट बयान को, नारीविरोधी शब्दों को 'तंज' और 'ज़ुबानी जंग' के नाम पर ऐसे प्रस्तुत करना जैसे इतना तो चलता है।
लायोनेल बार्बर अपने समाचारपत्र फाइनेंशियल टाइम्स की ओर से भारत के आम चुनावों को कवर कर रहे हैं। इसी दौरान अपने एक दौरे पर, लिखते हुए उन्होंने जयाप्रदा पर आजम की टिप्पणी का उल्लेख किया और लिखा, "कोई बुरा कथन नहीं है, हालाँकि इसके लिए खान पर अस्थाई प्रतिबंध लगा दिया गया।”
रवीश एक घोर साम्प्रदायिक और घृणा में डूबे व्यक्ति हैं जो आज भी स्टूडियो में बैठकर मजहबी उन्माद बेचते रहते हैं। साम्प्रदायिक हैं इसलिए उन्हें मजहबी व्यक्ति की रिहाई पर रुलाई आती है, और हिन्दू साध्वी के चुनाव लड़ने पर यह याद आता है कि भाजपा नफ़रत का संदेश बाँट रही है।
लड़ाई मजेदार है। इस चुनाव में AAP-कॉन्ग्रेस से लेकर उन तमाम न्यूट्रल पक्षकारों की भी अस्मिता दाँव पर लगी है जो अभी तक विभिन्न संस्थाओं पर कब्ज़ा जमाकर सत्ता की मलाई खा रहे थे।
बहस के दौरान कॉन्ग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने आज तक चैनल की एंकर अंजना ओम कश्यप को ‘बहनजी’ कह दिया। इस 'बहन जी' शब्द से अंजना इतनी आहत हुई कि उन्होंने तुरंत कॉन्ग्रेस प्रवक्ता को बदले में 'आंटी जी' कह दिया।