पिछले दिनों की कुछ खबरों पर चर्चा जिसमें आज हुए BJP प्रेस कॉन्फ्रेंस, राहुल गाँधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस, मीडिया के समुदाय विशेष के लोगों के ट्रोल बन कर सिमट जाने की बात और सोनिया गाँधी के मिशन 272 की बात शामिल है।
आज हम समय के उसी मोड़ पर खड़े हैं जहाँ इस्लामी आक्रांताओं ने एक बार फिर रूप बदल लिया है, और गायों का झुंड हमारी तरफ छोड़ दिया है क्योंकि वो जानते हैं कि वाजपेयी जी की भाजपा इन गायों को प्रणाम कर के, उनके सींगों में झुनझुने बाँधने में व्यस्त हो जाती।
बीबीसी हिन्दी वालो, विकल्प है तुम्हारे पास: वेश्यावृति की ईमानदारी या पत्रकारिता के नाम पर वैचारिक दोगलापन, चुन लो। कारण जो भी हो, लेकिन जब आप वेश्यालय की ओर रुख़ करते हैं तो आपको पता होता है कि आपको वहाँ क्या मिलेगा। बीबीसी के साथ ऐसा नहीं है।
मायावती मोदी का राजनीतिक विरोध करते-करते भूल गईं कि अनुसूचित जाति/दलितों के उलट पिछड़ी जातियों के पिछड़ेपन के विमर्श में आर्थिक फैक्टर महत्वपूर्ण हो जाता है।
लोगों में “भाजपा आएगी तो…” का भय फैलाने के आरोप के जवाब में उन्होंने आरोप दोहराए कि भाजपा आई तो संविधान पुनर्लिखित कर दिया जाएगा, प्रधानमंत्री भ्रष्ट हैं और संस्थाओं में ‘एक खास विचारधारा’ (संघ की विचारधारा) के लोगों को भरकर संस्थाएँ बर्बाद कर रहे हैं।
राहुल के भुंअन बाई के घर खाना खाने से पहचान तो मिली लेकिन जीवन की किसी समस्या का समाधान नहीं। टपरियन आज भी स्कूल, पेयजल की कमी, बेरोजगारी से दो-चार है।
कृष्णा फोटोशॉप पर लोगों से हमेशा मसखरी करते हैं- खासकर नेताओं को तो वह बिलकुल नहीं बख्शते। यहाँ तक कि मोदी-शाह भी उनके फोटोशॉप के हमले से ‘महफूज’ नहीं रह पाए।