पूरा कॉन्ग्रेस-लेफ्ट इकोसिस्टम 2024 तक इस बदलाव की झूठी उम्मीदों को जिन्दा रखने की पूरी कोशिश करेगा। फासीवाद का रोना रोकर भी जो अवसर न मिल पाया, इस इकोसिस्टम को वह अवसर कोरोना वायरस में दिखाई दिया है।
कॉन्ग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव और अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडीशा और सिक्किम के विधानसभा चुनावों में प्रचार अभियान के लिए 820 करोड़ रुपए खर्च किए थे। यह आँकड़ा 2014 में पार्टी द्वारा आम चुनाव के दौरान खर्च किए गए 516 करोड़ रुपए से कहीं ज्यादा है।
जिन कंपनियों को लवासा मामले में खोजबीन करने के लिए कहा है, उनमें एनटीपीसी, एनएचपीसी लिमिटेड, पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड और आरईसी लिमिटेड शामिल हैं। इस पत्र के साथ ऊर्जा मंत्रालय ने एक सूची भी नत्थी की है, जिसमें उन 14 कंपनियों के नाम हैं जिनमें अशोक लवासा की पत्नी नावेल लवासा डायरेक्टर के पद पर तैनात रह चुकीं हैं।
यह महज़ संयोग है या फिर साज़िशन ऐसा किया गया? क्या 'द वायर' की पोलिटिकल रिपोर्टिंग वाक़ई बकवास और अनुभवहीन है, या जान-बूझ कर चुनावों को प्रभावित करने के लिए ऐसे लेख लिखे गए?
वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल तीन 3 जून 2019 को समाप्त हो रहा है। इससे पहले केंद्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार (मई 24, 2019) को 16वीं लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर दी है। नए सदन का गठन 3 जून से पहले हो जाना चाहिए।
"साध्वी प्रज्ञा की भाजपा से उम्मीदवारी ‘भगवा या हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा' के खिलाफ भाजपा का सत्याग्रह है।" लोकसभा उम्मीदवार घोषित होने के पहले साध्वी प्रज्ञा ने भी एक सवाल के जवाब में कहा था, ‘‘मैं धर्मयुद्ध के लिए तैयार हूँ।''
एग्जिट पोल के दिन से ही नरेंद्र मोदी की यात्रा और गुफा वाली तस्वीरों को छोड़कर इस संक्रामक मीडिया गिरोह की एक टुटपुँजिया टुकड़ी को गोभी के पत्तों में कीड़े होने की जाँच करते हुए देखा गया है।
जीत का आँकड़ा धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है। बीजेपी की धमाकेदार इंट्री हो रही है। लेकिन सबसे मजेदार दौर देखने को मिला जब EVM राग छेड़कर महागठबंधन से लेकर लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने हार के प्रति वो कितने आश्वस्त हैं, इसका परिचय दिया।