दिल्ली के जामिया नगर में जहॉं यह यूनिवर्सिटी स्थित है जिहादी नारे लगाए गए। कथित प्रदर्शनकारी 'हिंदुओ से लेंगे आजादी, छीन के लेंगे आजादी और लड़ के लेंगे आजादी' जैसे नारे लगा रहे थे। हिंसा भी हुई। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए करीब 50 छात्रों को हिरासत में लिया। हालॉंकि देर रात उन्हें छोड़ दिया गया।
हिंसक प्रदर्शन का ठीकरा जामिया प्रशासन ने 'बाहरी' लोगों के सिर फोड़ा हो, लेकिन कैंपस की दीवारों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ ख़ूब ज़हर उगला गया है।
कथित कॉमेडिन कुणाल कमरा के फैन का जब बंगाल में असली दंगाइयों से पाला पड़ा तो क्या हुआ, पढ़िए एक वकील की आपबीती। दंगाइयों के बीच फॅंसने से कुछ वक्त पहले ही वकील साहब ने पीएम मोदी का मजाक उड़ाते हुए कमरा का एक जोक शेयर किया था।
हिंसक प्रदर्शन को लेकर जामिया प्रशासन ने कहा है कि इसमें शामिल ज्यादातर लोग बाहरी थे। उल्लेखनीय है कि यूनिवर्सिटी के आसपास के इलाकों में समुदाय विशेष के लोगों की घनी आबादी है। तो क्या इस प्रदर्शन के पीछे कोई साजिश रची गई थी?
संविधान में आस्था है तो पुलिस पर पत्थरबाज़ी कैसे कर लेते हो? वो इसलिए कि तुम्हें पता है कि वो 'उम्माह' तुम्हारी खातिर जहाँ कहीं भी है, उठ खड़ा होगा और बोलेगा। अगर ये प्रदर्शन सिर्फ नागरिकता कानून को ले कर होता, और तुम सिर्फ विद्यार्थी होते तो इस प्रकरण में न तो पत्थर आता, न ही अल्लाह!
तेरा मेरा रिश्ता क्या-ला इलाहा इल्लल्लाह, ये शहर जगमगाएगा- नूर-ए-इलाहा से। वैसे ही नारे जैसे कश्मीर में पाकिस्तान के समर्थन में आतंकी लगाते हैं। जामिया में प्रदर्शन के दौरान पुलिस को उकसाने के किए गए तमाम जतन। कहा- पुलिस बचकर जाने न पाए। उसे छोड़े ना।
चाकुओं से गोदने और रेतने में वही अंतर है जो झटका और हलाल में होता है। एक में पीड़ित को सिर्फ मारना उद्देश्य होता है, एक में तड़पा कर मारना, और शायद कोई मैसेज देना।