अगर आरक्षण के प्रावधानों से पिछड़ों-दलितों-वंचितों का सशक्तीकरण होता है, तो उन लाभार्थियों की भावी पीढ़ियों को क्रीमी लेयर में शामिल करके भविष्य में आरक्षण लाभ से वंचित क्यों नहीं किया जाना चाहिए? ऐसा करने से ही आरक्षण जैसे संवैधानिक प्रावधान का लाभ त्वरित गति से नीचे तक पहुँचेगा और आरक्षण के क्षेत्र में भी 'ट्रिकल डाउन' की सैद्धान्तिकी सचमुच फलीभूत होगी।
जो शिवसेना कभी महाराष्ट्र में धर्म के आधार पर आरक्षण देने के सख्त खिलाफ थी, उसी ने आज कॉन्ग्रेस और एनसीपी के आगे झुककर इस प्रस्ताव को सहमति दी। मुस्लिम समुदाय को 5% आरक्षण के लिए कॉन्ग्रेस और NCP की तरफ से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर पहले से ही दबाव बनाया जा रहा था।
उस समय विजय बहुगुणा के नेतृत्व में राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार चल रही थी। उसी सरकार ने निर्णय लिया था कि एससी-एसटी को आरक्षण दिए बिना राज्य में सारे सार्वजनिक पदों को भरा जाएगा। आज जब सदन में सच्चाई बताई गई तो कॉन्ग्रेस सांसद वॉकआउट कर गए। राहुल गाँधी मोहन भागवत को दोष दे रहे।
"राज्य सरकार आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। कोई भी मूलभूत अधिकार ऐसा नहीं है, जो प्रमोशन में आरक्षण के किसी व्यक्तिगत दावे को मान्यता प्रदान करता हो। कोर्ट राज्य सरकारों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए आदेश जारी नहीं कर सकता।"
"आरक्षण का हक लेने के लिए हमारे समाज ने काफी संघर्ष किया। 73 लोगों ने अपनी जान गँवा दी थी। हम किसी भी हाल में दूसरी जातियों को इसमें (विशेष पिछड़ा वर्ग) आरक्षण नहीं लेने देंगे।"
सत्ता के लिए भीम को मीम के साथ आना पड़ा। गेस्टहाउस कांड वाले बुआ-भतीजा हो गए। बात दलितों की कभी हुई ही नहीं, बात हमेशा गणित की, सीट पाने की, सत्ता में पहुँचने की थी। लालू-मुलायम-माया-सोनिया आदि ने दलितों-गरीबों को दलित और गरीब रखने पर विशेष काम किया।
अधिकारियों ने बताया कि निजी क्षेत्र में आरक्षण दिए जाने की व्यवहारिकता, स्वीकार्यता, संभावनाओं और प्रभावों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। सरकार इसके लिए व्यापार जगत से बातचीत करेगी और उनकी प्रतिक्रिया आते ही इसे मूर्त रूप दिया जाएगा।