Sunday, October 13, 2024
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नौकरी या प्रमोशन में आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं: SC ने पलटा 2012 में दिया हाई कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के 2012 के निर्णय को पलटते हुए नौकरी व प्रमोशन में आरक्षण को मूलभूत अधिकार मानने से इंकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण और कोटा को मूलभूत अधिकार मानने से इनकार कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह राज्यों को कोटा देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि वो राज्यों को लोक सेवाओं में कुछ समुदायों के असमान प्रतिनिधित्व संबंधी डेटा की अनुपस्थिति में ऐसे किसी प्रावधान को अपनाने के लिए मजबूर भी नहीं कर सकता।

उत्तराखंड के पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (पीडब्ल्यूडी) में असिस्टेंट इंजीनियर (सिविल) के पदों पर प्रमोशन के लिए SC/ST समुदाय के लोगों द्वारा दायर अपील पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि कोई भी “मूलभूत अधिकार” ऐसे किसी दावे का समर्थन नहीं करता।

रिपोर्ट्स के अनुसार 7 फरवरी को जस्टिस एल नागेश्वर राव तथा हेमंत गुप्ता की पीठ ने अपील पर निर्णय देते हुए कहा, “निःसंदेह राज्य सरकार आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। कोई भी मूलभूत अधिकार ऐसा नहीं है, जो प्रमोशन में आरक्षण के किसी व्यक्तिगत दावे को मान्यता प्रदान करता हो। कोर्ट राज्य सरकारों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए आदेश जारी नहीं कर सकता।”

सुप्रीमकोर्ट ने अपने इस निर्णय के द्वारा 2012 में उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस निर्णय को पलट दिया है, जिसमें हाईकोर्ट ने राज्य को कुछ विशेष समुदायों के लिए कोटा मुहैया कराने का आदेश दिया था।

उस वक्त कपिल सिब्बल और दूसरे वकीलों ने हाईकोर्ट के सामने अपनी दलील में कहा था कि राज्य का कर्तव्य बनता है कि वह अनुच्छेद 16(4) और 16(4-अ) के अंतर्गत SC/ST समुदाय की सहायता करे।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए अपने निर्णय में कहा कि हालाँकि ये अनुच्छेद राज्य को आरक्षण देने की शक्ति प्रदान करते हैं लेकिन यह सिर्फ तभी हो सकता है, जब राज्य की नजर में इन समुदायों का सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व युक्तिसंगत नहीं ठहरता हो।

कोर्ट ने आगे कहा, “यह स्थापित कानून है कि राज्य को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए आदेश नहीं दिया जा सकता। इसी प्रकार राज्य को SC/ST के लिए पदों में प्रमोशन के लिए भी बाध्य नहीं किया जा सकता।”

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य को इस संदर्भ में लिए गए अपने निर्णयों तक पहुँचने के लिए समुचित आँकड़ों की सहायता लेनी चाहिए, जिसे न्याय संगत ठहराया जा सके।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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