जब कुम्भ के समय दलित को महामंडलेश्वर बनाया गया था, तब 'द वायर' जैसे प्रपंची पोर्टलों ने इसे चुनाव से पहले दलित वोटों को लुभाने वाला उपक्रम भी करार दिया था।
धर्म आस्था का विषय है, व्यक्तिगत विषय है। लेकिन शायद सबके लिए नहीं! कर्नाटक के बेलगाम में एक मस्जिद में गई भीड़ के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। इस भीड़ के लिए नमाज पढ़ने से ज्यादा मस्जिद में नमाज पढ़ना जरूरी है।
"कोरोना वायरस का इलाज अल्लाह ताला ने दिमाग में डाल दिया है। ये इलाज एकदम परफेक्ट है। बस कबूतर के विष्ठा को पानी में मिलाकर तीन बार पीना है। चूँकि कबूतर अल्लाह-अल्लाह करता है इसलिए ये इलाज सही है।"
"अगर तुम 'रसूल के गुलाम' हो तो तुम्हें 'ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुन रसूलुल्लाह' की कसम है कि तुम हिन्दुओं के पट्रोल पंप पर नहीं जाओगे। न तो हिन्दुओं की गाड़ियों पर चढ़ो और न ही उनकी दुकानों से दवाइयाँ खरीदने जाओ।"