अतिथि विद्वान 28 दिन से धरने पर हैं। कफन ओढ़कर प्रदर्शन कर चुके हैं। खून से दीया जला चुके हैं। शहर की सड़कों पर शू पॉलिश कर विरोध जता चुके हैं। लेकिन, कमलनाथ कैबिनेट का मतभेद है कि मिटता नहीं।
पद यात्रा, मुंडन, धरना-प्रदर्शन के बाद ही शुरू हो पाई नियुक्ति प्रक्रिया। फिर भी मेरिट लिस्ट में आईं आरक्षित वर्ग की महिलाओं को नहीं दिया नियुक्ति पत्र। अतिथि विद्वान भी भविष्य को लेकर सशंकित।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत को आधुनिक बनाने में युवा पीढ़ी की बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है। उन्हें विश्वास है कि भारत में यह दशक न सिर्फ़ युवाओं के विकास का होगा, बल्कि युवाओं के सामर्थ्य से देश का विकास करने वाला भी साबित होगा।
"यह अपनी तरह का देश का पहला विश्वविद्यालय होगा। इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। अगले साल 15 जनवरी से इस यूनिवर्सिटी में दाखिला मिलेगा। फरवरी-मार्च से कक्षाएँ शुरू हो जाएँगी।"
‘भूत विद्या’ विशुद्ध विज्ञान है। यह आष्टांग आयुर्वेद से जुड़ा है। भूत विद्या की शिक्षा लेने वाले मनोदैहिक विकार का उपचार करने में समर्थ होंगे। इस तरह के विकार मन में पैदा होकर शरीर को कष्ट देते हैं।
व्याख्याता परीक्षा का मुद्दा राजस्थान में गरमा गया है। छात्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री इसे इगो का मुद्दा बना रहे हैं। गौर करने लायक बात यह है कि ज्यादातर नाराज़ छात्र मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक हैं।
मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार बनने के बाद विश्वविद्यालय में राजनीतिक प्रयोगों का जो सिलसिला शुरू हुआ था, उसके तहत ही कुछ महीने पहले दिलीप मंडल और मुकेश कुमार की अनुबंध पर नियुक्ति हुई थी। आरोप है कि दोनों प्रोफेसर छात्रों के बीच जातिगत भेदभाव कर माहौल खराब कर रहे हैं।
अपने ही प्रोफेसरों से प्रताड़ित माखनलाल के छात्रों के साथ बीते दिनों पुलिस ने भी जोर-जबर्दस्ती की थी। बावजूद इसके जब ये भोपाल की सड़कों पर निकले तो कोई शोर-शराबा नहीं हुआ। न सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुॅंचाया गया।
यह पहला मौका नहीं है जब जेएनयू के छात्रों ने वीसी पर हमला किया हो। इससे पहले भी जेएनयू में प्रवेश परीक्षा कंप्यूटर आधारित होने पर यहाँ के छात्रों ने विरोध किया था और कुलपति जगदीश कुमार के घर में लगभग 400-500 छात्रों ने हमला किया था।
कुछ लोगों ने महात्मा गाँधी का नाम भी सुझाया तो छात्रों ने यह कहकर इसे ख़ारिज किया कि वाराणसी में पहले से ही महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ है। उन्होंने कहा कि सावरकर का नाम भी चल सकता है क्योंकि वो भी महामना के सहयोगी रहे हैं।