इंग्लैंड में इंडो-यूरोपियन कश्मीर फोरम और हिंदू काउंसिल यूके ने बर्मिंघम के विक्टोरिया स्क्वायर में अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त किए जाने का समर्थन किया है। ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में भी प्रदर्शन किया गया।
क्या लद्दाख के बौद्ध लोगों का डर नाजायज है कि जब कश्मीरी आतंकी वहाँ लहसुन-ए-हिन्द चिल्लाकर नारा-ए-अदरक लगाते आएँगे तो उन्हें वहाँ से भाग कर कहीं और नहीं जाना पड़ेगा?
इन लोगों से ये वादा किया गया कि इन्हें स्थायी नागरिक का दर्जा दिया जायेगा। मगर इस स्थायी नागरिकता के साथ शर्त ये थी कि आने वाले परिवार और उनकी आगे की पीढियाँ सिर्फ सर पर मल ढोने का काम ही करेंगी। और वो शर्त आज भी लागू है।
अनुच्छेद 370 को हटाने को लेकर जितना विवाद है उससे अधिक इसकी गलत व्याख्या की जाती रही है। इस अनुच्छेद की व्याख्या में अनर्गल तर्क देने वाले बुद्धिजीवी यहाँ तक कहते रहे हैं कि 370 ‘कश्मीर को असाधारण स्वायत्ता’ प्रदान करता है।
14 मई 1954 को एक ऐसा संवैधानिक आदेश भारत के राष्ट्रपति द्वारा जम्मू कश्मीर राज्य में लागू करवाया गया जिसने भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ दिया।