प्रोफेसरों ने छात्रों से कहा कि जो हो रहा है उसे होने दो और जैसा विश्वविद्यालय प्रशासन चाहता है, वैसा करो। प्रोफेसरों ने धमकी देते हुए कहा- "हम लोग तो बाहर बैठे रहेंगे फिर भी हमें रुपए मिलते रहेंगे, तुमलोग अपना सोचो। करियर चौपट कर दिया जाएगा तुम सबका।"
वीसी का पुतला-दहन करने वाले छात्रों ने आरोप लगाया कि कई अन्य विभागों में इसी तरह अयोग्य नियुक्तियाँ की गई हैं, जिनकी जाँच होनी चाहिए। उनका आरोप था कि फ़िरोज़ ख़ान की नियुक्ति की आड़ में वीसी अन्य अयोग्य नियुक्तियों को दबाने का प्रयास कर रहे हैं।
अगर मामला सिर्फ विचारधारा के आधार पर किसी के समर्थन और किसी के विरोध का है, और जेएनयू एवं FTII जैसे संस्थानों के वाम मजहब के छात्र “शिक्षा का भगवाकरण” कहकर किसी नियुक्ति का विरोध कर सकते हैं, तो वही अधिकार आखिर BHU के छात्रों को क्यों नहीं मिलना चाहिए? समस्या की जड़ में यही दोमुँहापन है।
छात्रों ने कल प्रशासन को अपना माँग पत्र सौंपते हुए कई सवालों का विश्वविद्यालय प्रशासन से जवाब माँगा है। जिसे लेकर देर रात SVDV के संकाय प्रमुख, अन्य विभागाध्यक्षों और VC के बीच मीटिंग चली लेकिन किसी भी नतीजे पर नहीं पहुँचा गया।
"हिन्दू धर्मशास्त्र कौन पढ़ाएगा? उस धर्म का व्यक्ति जो बुतपरस्ती कहकर मूर्ति और मन्दिर के प्रति उपहासात्मक दृष्टि रखता हो और वो ये सिखाएगा कि पूजन का विधान क्या होगा? क्या जिस धर्म के हर गणना का आधार चन्द्रमा हो वो सूर्य सिद्धान्त पढ़ाएगा?"
सहिष्णुता, प्लूरलिज्म आदि अपने मूल को बचाते हुए, दूसरों को ससम्मान उनके मूल को बचाने में सहयोग देना है। इसका मतलब ये बिलकुल भी नहीं है कि चूँकि उसे पता है कि मंदिर में घंटी बजाना होता है तो वो मंदिर की घंटी तक न पहुँचे तो हम उसे अपने सामने शिवलिंग पर लात रख कर घंटी तक पहुँचते देखते रहें, और कुछ न करें।
प्रभु चावला ने बताया है कि मुस्लिमों व ईसाइयों द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों में उसी ख़ास महजब के लोगों को विभिन्न पदों पर नियुक्त किया जाता है। इसके लिए बाकायदा विज्ञापन भी निकाले जाते हैं। यह सब खुल्लम-खुल्ला होता है और कोई मुँह नहीं खोलता।
जब मुस्लिम और ईसाई एक तरफ अल्पसंख्यक होने के नाम पर अपना मजहब और उसकी शुद्धता बनाए रखेंगे और दूसरी तरफ भजन, गीत, संगीत के आभूषणों के साथ संस्कृत भाषा सीखकर आपके हिन्दू धर्म, सनातन मूल्यों, वैदिक साहित्य और अनुष्ठानों की अपने तरह की व्याख्या करेंगे। तब आप सर्वधर्म समभाव का झुनझुना बजाते रहिएगा।
अगर किसी फिरोज खान को हिंदू धर्म की शिक्षा देने की जिम्मेदारी दी जा रही है तो क्या यह पूछा नहीं जाना चाहिए कि मालवीय जी के आदेश का क्या होगा? फिरोज खान जिस धर्म से ताल्लुक रखते हैं वो हिंदुओं को काफिर और वाजिबुल कत्ल मानता है। अगर वो इससे सहमत नहीं हैं तो घर वापसी कर लें।
विश्वविद्यालय के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर ने कहा है कि यह कोरी अफवाह है। उन्होंने आगे बताया कि कोर्स में किसी भी तरह का बदलाव एकेडमिक काउंसिल करती है, और ऐसा अभी कुछ नहीं हुआ है। उनके अनुसार यह सब विश्वविद्यालय को बदनाम करने की साजिश है।