सुप्रीम कोर्ट ने बहुप्रतीक्षित फ़ैसला सुनाया दिया है। अयोध्या की पूरी विवादित ज़मीन रामलला की है। मंदिर वहीं बनेगा। मस्जिद के लिए अयोध्या में ही कहीं और 5 एकड़ ज़मीन दी जाएगी।
देश के कई मुस्लिम आज भी कबायली प्रवृतियों का अनुसरण करते नजर आते हैं। अल्पसंख्यक इलाकों में अशिक्षा, भुखमरी, दरिद्रता और तमाम प्रकार की गरीबी आज भी उसी तरह से नजर आती है, जिस हाल में बहादुर शाह जफ़र छोड़कर गए थे।
उत्तराखंड में दीपावली के 11 दिन या एक माह बाद माने जाने के पीछे एक और मान्यता बताई जाती है। कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के अयोध्या पहुँचने की खबर दीपावली के ग्यारह और कुछ स्थानों में एक माह बाद मिली और इसीलिए ग्रामीणों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए बाद दीपावली का त्योहार मनाया था और इसी परंपरा को निभाते गए।
ख़ान और बिस्मिल की दोस्ती की आज भी कसम खाई जाती है। दोनों ही कविताओं के शौक़ीन थे और दोनों के ही मन में भारत को आज़ाद कराने का जज्बा था। दिसंबर 19, 1927 को क्रूर ब्रिटिश सरकार ने दोनों को अलग-अलग जेलों में फाँसी पर लटका दिया।
"इस्लाम मुस्लिमों को कबूल नहीं करने देगा की भारत उनकी मातृभमि है। वे कभी नहीं कबूल करेंगे कि हिन्दू उनके स्वजन हैं।" राजनीतिक फायदे के लिए आंबेडकर के नाम का इस्तेमाल करने वाले भी आखिर क्यों आज उनकी इन बातों की चर्चा नहीं करते?
22 दिसंबर 1926 को स्वामीजी पुरानी दिल्ली के अपने मकान में आराम कर रहे थे। अब्दुल रशीद नाम का एक व्यक्ति उनके कमरे में दाखिल हुआ। स्वामीजी के सेवक को पानी लाने के बहाने बाहर भेजा और सामने से तीन गोलियाँ मार दी।
दुर्योधन ने चीरहरण का आदेश दिया। युधिष्ठिर ने बिना कौरवों का नाम लिए घोर आपत्ति जताई और बोले- "ऐसे भी कुछ लोग हैं जो परस्त्रियों को निर्वस्त्र करना चाहते हैं। विश्व समुदाय को इनका संज्ञान लेना होगा। अमेरिका को भी अवश्य इन पर कार्यवाही करनी चाहिए।"
"चूँकि इतिहास लिखने-लिखवाने की ज़िम्मेदारी उन्हीं लोगों के पास थी, जिन्होंने एक के बाद एक कई गलतियाँ की थीं, परिणामस्वरूप सही तथ्य लोगों तक नहीं पहुँच पाए और सच्चाई छिप गई। अब सही इतिहास लिख कर लोगों के सामने पेश करने का समय आ गया है। अब ग़लत इतिहास में सुधार करने का वक़्त आ चुका है।"
"पूरी दुनिया भारत को देख रही है। जाति, पंथ, धर्म, लिंग और क्षेत्र पर आधारित सभी मौजूदा सामाजिक बुराइयों को दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि हम वन नेशन और वन पीपल हैं। हमें अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए, जो देश में शांति और सद्भाव बनाए रखने के अलावा जीवन जीने का एक तरीका है।"
रामधारी सिंह दिनकर भरे सदन में नेहरू की आलोचना से नहीं हिचकते थे। समसामयिक समस्याओं का समाधान वह द्वापर से खोज लाते थे। राष्ट्रकवि दिनकर 'कुरुक्षेत्र' में भीष्म और 'रश्मिरथी' में कर्ण के संवादों में आज के युग के हिसाब से प्रासंगिकता खोज रहे होते हैं।