चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक शाम 6:40 बजे तक की गिनती के मुताबिक आम आदमी पार्टी को सिर्फ 33637 वोट मिले हैं जबकि NOTA के तहत 189792 वोट पड़ चुके है।
दुमका से ख़ुद झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन मैदान में थे। पिछले चुनाव में उन्हें भाजपा की डॉक्टर लुइस मरांडी ने पटखनी दे दी थी। जामा से हेमंत की भाभी सीता सोरेन काँटे की टक्कर में पीछे चल रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड में चुनाव प्रचार के दौरान 9 रैलियाँ की। पूर्व कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने 5 सीटों पर जनसभाएँ की और प्रियंका गाँधी ने मात्र एक सीट पर चुनाव प्रचार किया। परिणामों व ट्रेंड के अनुसार इन सीटों की क्या स्थिति है, इसका पूरा डिटेल यहाँ से जानें।
पत्थलगड़ी हिंसा फैलाने वाले उपद्रवियों के ख़िलाफ़ सैंकड़ों मामले दर्ज हैं, जो चुनाव का मुद्दा भी बनी। कुल 19 मामलों में 172 नामजद आरोपित हैं। भाजपा के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार का एक मुद्दा यह भी रहा। शिबू सोरेन ने कहा अगर उनकी सरकार बनती है तो सारे केस वापस ले लिए जाएँगे।
संबित पात्रा के साथ गौरव वल्लभ के टीवी डिबेट का एक वीडियो सोशल मीडिया में खूब चला था। इससे उत्साहित होकर कॉन्ग्रेस ने गौरव को झारखंड के चुनावी मैदान में उतार दिया। लेकिन, जमशेदपुर पूर्वी सीट पर उनका गणित बुरी तरह गड़बड़ा चुका है।
झारखंड से चुनाव लड़ने वाले दो ही उम्मीदवार पीएचडी हैं। इनमें एक लुइस मरांडी हैं। दुमका में कभी सहायक शिक्षिका रहीं लुइस कैसे बनी झारखंड की 'The Giant Killer'?
रवीश बार-बार यह बात भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में एक आम आदमी के वोट की कीमत वही होती है जो उनके जैसे परम ज्ञानियों के वोट की है। शायद यही अभिजात्यता और घमंड उन्हें हर मतदान के बाद यह कहने पर मजबूर कर देता है (भाजपा की जीत की स्थिति में) कि युवाओं को रोजगार से मतलब नहीं।
हेमंत सोरेन को महज 3492 वोट मिले हैं, वहीं लुइस मरांडी 9821 वोटों के साथ उनसे काफ़ी आगे दिख रही हैं। दुमका में सोरेन परिवार की प्रतिष्ठा दाँव पर है, क्योंकि ये 'गुरुजी का गढ़' रहा है। शिबू सोरेन यहाँ से 8 बार सांसद रह चुके हैं।
सरयू राय की बगावत और मुख्यमंत्रियों से झारखंड की जनता के पुराने वैर ने जमशेदपुर पूर्वी सीट को हॉटकेक बना रखा है। पॉंच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री रघुवर दास क्या नया इतिहास बनाने में कामयाब होंगे?
बिहार से अलग होकर अस्तित्व में आया झारखंड 19 साल के सफर में ही राजनीति के इतने मोड़ देख चुका है कि उसकी सियासी चालों पर हमेशा पूरे देश की नजर रहती है। क्या इस बार भी विधानसभा चुनाव के नतीजे नए सियासी पन्ने खोलेंगे?